SIR 2.0 पर तमिलनाडु और केरल का विरोध क्यों? | Talking Sense With Srini
x

SIR 2.0 पर तमिलनाडु और केरल का विरोध क्यों? | Talking Sense With Srini

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने चुनाव आयोग की SIR 2.0 योजना को “मतदाता दमन की कोशिश” बताया है। उनका कहना है कि बिहार में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए जाने के बाद अब यह प्रक्रिया देशभर में चिंता पैदा कर रही है।


चुनाव आयोग द्वारा 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) 2.0 की घोषणा ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, खासकर दक्षिण भारत के उन राज्यों में जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं — जैसे तमिलनाडु और केरल। दोनों मुख्यमंत्रियों — एम.के. स्टालिन और पिनाराई विजयन — ने इस कदम की निंदा करते हुए कहा कि यह “मतदाता दमन का अभियान” है और चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़ रहा है।

समय पर सवाल

द फेडरल के एडिटर-इन-चीफ एस. श्रीनिवासन के अनुसार, इस पहल का समय कई वैध सवाल उठाता है। उन्होंने कहा, “जब यह प्रक्रिया बिहार में शुरू हुई थी, तब चुनाव आयोग ने कहा था कि यह पूरे भारत में लागू की जाएगी। उस हिसाब से दूसरा चरण अपेक्षित था।”

लेकिन उन्होंने जोड़ा, “सवाल यह है कि क्या आयोग ने बिहार से कोई सबक सीखा है, जहां उसकी साख को झटका लगा था, और क्या यह चरण संरचनात्मक रूप से अलग होगा।”

EC की साख पर सवाल

इस साल बिहार में हुए पहले चरण के दौरान आयोग पर मतदाता नामों की बड़ी संख्या में विलोपन और मताधिकार छीनने के आरोप लगे थे।

श्रीनिवासन ने कहा, “आयोग ने इस प्रक्रिया में अपनी छवि को सुधारने के बजाय और धूमिल कर लिया। बिहार के बाद उसकी साख पर सवाल उठे। एक वास्तविक चिंता यह है कि ऐसी कवायद का इस्तेमाल उन मतदाताओं को हटाने के लिए किया जा सकता है जिन्हें सत्तारूढ़ दल के लिए प्रतिकूल माना जाता है।”

बिहार के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता

बिहार के अनुभव ने पहले ही चेतावनी के संकेत दिए हैं। श्रीनिवासन ने बताया, “कुल 65 लाख नामों के विलोपन में से 25 लाख मुसलमान थे,” उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव की सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का हवाला देते हुए कहा। उन्होंने कहा, “जबकि बिहार की आबादी में मुसलमान केवल 17 प्रतिशत हैं, तो इतने बड़े अनुपात में नाम हटना यह दर्शाता है कि यह प्रक्रिया किसी खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल की गई हो सकती है

क्यों विवादास्पद है SIR 2.0

श्रीनिवासन के अनुसार, SIR 2.0 विवादास्पद इसलिए है क्योंकि चुनाव आयोग इसे “अवैध नागरिकों को हटाने” की कवायद के रूप में पेश कर रहा है — जबकि आलोचकों का कहना है कि यह उसके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

उन्होंने कहा, “नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं है। यह मुद्दा न्यायालयों के विचाराधीन है, फिर भी आयोग इसे अपनी कार्रवाई का आधार बना रहा है। यही वजह है कि इस पर संदेह बना हुआ है।”

इसके अलावा, श्रीनिवासन ने कहा कि चुनाव आयोग बड़े पैमाने पर मैनुअल गणना कराने के बजाय तकनीक का इस्तेमाल करके डुप्लिकेट मतदाताओं की पहचान कर सकता था। लेकिन जब मुख्य चुनाव आयुक्त से पूछा गया कि डुप्लिकेशन हटाने के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है, तो उन्होंने कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं है। श्रीनिवासन ने टिप्पणी की — “यही बात आयोग के असली इरादों पर और गहरा संदेह पैदा करती है।”

दक्षिणी राज्यों का विरोध

हालांकि पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विपक्षी दलों ने भी चिंता जताई है, लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया दक्षिणी राज्यों — तमिलनाडु और केरल — से आई है।

श्रीनिवासन के अनुसार, केरल और तमिलनाडु SIR 2.0 को एक “राजनीतिक हथियार” के रूप में देख रहे हैं। स्टालिन और विजयन इसे दक्षिणी मतदाताओं के अधिकार छीनने की कोशिश के रूप में पेश कर रहे हैं, जिससे यह एक क्षेत्रीय पहचान का मुद्दा बन गया है।

फिर भी, श्रीनिवासन का मानना है कि दक्षिणी राज्यों में बड़े पैमाने पर मतदाता नाम विलोपन की संभावना कम है।

उन्होंने कहा, “तमिलनाडु और केरल में DMK, वामदल और कांग्रेस जैसी पार्टियों का जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन है, जो सतर्क रहेगा। इसलिए यह विरोध प्रक्रियात्मक से ज्यादा राजनीतिक है — यानी बीजेपी के उत्तरी नैरेटिव का मुकाबला करने की रणनीति।”

असंगत रवैया

विडंबना यह है कि असम — जहां अवैध प्रवास का मुद्दा सबसे अधिक राजनीतिक रूप से संवेदनशील है — उसे SIR 2.0 से बाहर रखा गया है।

श्रीनिवासन ने कहा, “यही विरोधाभास है। अगर लक्ष्य अवैध नागरिकों की पहचान करना है, तो असम को क्यों छोड़ा गया? चुनाव आयोग का तर्क है कि NRC से जुड़े मामले न्यायालय में लंबित हैं, लेकिन यह उसके दृष्टिकोण की असंगति को उजागर करता है।”

असम में NRC और राजनीतिक गतिरोध

2019 में असम में तैयार की गई राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) की सूची में 19 लाख लोगों — हिंदू और मुस्लिम दोनों — को बाहर रखा गया था, जिससे कानूनी और राजनीतिक गतिरोध पैदा हो गया।

श्रीनिवासन ने कहा, “चूंकि NRC का अंतिम परिणाम अभी तक स्पष्ट नहीं है, यह भी स्पष्ट नहीं कि क्या चुनाव आयोग मतदाता सूची के लिए उसी सूची का आधार बनाना चाहता है।”

राज्यों की प्रतिक्रिया और राजनीतिक टकराव

केरल विधानसभा पहले ही चुनाव आयोग की इस पहल के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुकी है, जबकि तमिलनाडु ने इसे संघीय टकराव (federal confrontation) के रूप में पेश किया है।

श्रीनिवासन ने कहा, “चुनाव आयोग संवैधानिक रूप से स्वायत्त संस्था है, इसलिए राज्य सरकारें इसे रोक नहीं सकतीं। लेकिन विपक्ष शासित राज्यों के साथ टकराव की यह तस्वीर पक्षपात की धारणा को और मजबूत करती है।”

उन्होंने कहा, “यह विवाद एक बार फिर चुनाव आयोग की निष्पक्षता की परीक्षा बन गया है। अब जिम्मेदारी आयोग पर है कि वह साबित करे कि अम्पायर निष्पक्ष है। यह पारदर्शिता दिखाने का अवसर था, लेकिन आयोग का संवाद अब भी अपारदर्शी बना हुआ है।”

श्रीनिवासन ने यह स्वीकार किया कि चुनाव आयोग ने कुछ प्रक्रियात्मक रियायतें (procedural relaxations) दी हैं — जैसे परिवार के सदस्यों या स्थानीय प्रतिनिधियों को दूसरों की ओर से फॉर्म जमा करने की अनुमति देना और सभी मतदाताओं के लिए दोबारा पंजीकरण की अनिवार्यता को कम करना।

उन्होंने कहा, “ये व्यावहारिक कदम हैं, जो नागरिकों और अधिकारियों दोनों के लिए तनाव कम करेंगे। लेकिन ये उस मूल सवाल का समाधान नहीं करते — क्या यह प्रक्रिया वास्तव में मतदाता सूची को शुद्ध करने की है या इसके पीछे कोई राजनीतिक मकसद है?”

Read More
Next Story