मुमताज़ से मूरत तक, प्रेम, कला और स्थापत्य का शाश्वत संवाद
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मुमताज़ से मूरत तक, प्रेम, कला और स्थापत्य का शाश्वत संवाद

दिल्ली आर्ट गैलरी की प्रदर्शनी ‘The Mute Eloquence of the Taj Mahal’ ताज के चित्रों, फ़ोटोग्राफ़ों और इतिहास के ज़रिए शाहजहाँ-मुमताज़ के प्रेम को नए रूप में दिखाती है।


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मुग़ल शासकों ने भारत पर केवल अपना शासन ही नहीं छोड़ा, बल्कि उन्होंने यहां की धरती पर अपनी कला, स्थापत्य और बाग़बानी की ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी “जन्नत की कल्पना” का मूर्त रूप मानी जाती है। उनकी यह अटूट लालसा कि वे धरती पर ही स्वर्ग का रूप गढ़ सकें, आज भी दिल्ली और आगरा के कोनों में बिखरी उनकी इमारतों, मकबरों और बागों में महसूस की जा सकती है। सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी लोग बार-बार हुमायूं का मकबरा, आगरा किला और तमाम मस्जिदों व बागों को निहारते नहीं थकते।

पिछले तीन शताब्दियों में अनगिनत कवि, इतिहासकार और चित्रकार इन स्मारकों के सामने खड़े होकर उनके आकार, सौंदर्य और उद्देश्य को समझने की कोशिश करते रहे हैं। क्या यह प्रेम का प्रतीक था? क्या यह केवल शाश्वत विश्राम का सुंदर स्थल था? या फिर यह भौतिक सुख-संपदा से परे जाकर स्वर्ग की खोज का प्रयास था?

ताजमहल: सुंदरता और अमरता का शिखर

इन सभी स्मारकों में ताजमहल का स्थान सबसे ऊँचा है — सुंदरता और अमरता दोनों में। दिल्ली आर्ट गैलरी (अब DAG) की प्रदर्शनी “The Mute Eloquence of the Taj Mahal: Ba-Zaban-E B-Zabani” इस अमर स्मृति को एक नई दृष्टि से सामने लाती है। मध्यकालीन इतिहास की विदुषी और भारत की सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक राणा सफ़वी द्वारा संयोजित इस प्रदर्शनी में तीन सौ वर्षों की चित्रकृतियाँ और फोटोग्राफ़ शामिल हैं, जो दिसंबर तक प्रदर्शित की जाएँगी। यह संग्रह दर्शकों को इतिहास, कला और कल्पना के उस भूले हुए संसार में ले जाता है जहाँ से ताजमहल की कहानी शुरू होती है।

‘रौज़ा-ए-मुनव्वरा’ और शाहजहाँ का स्वप्न

शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने ताजमहल को “रौज़ा-ए-मुनव्वरा” कहा था — यानी प्रकाश से आलोकित मकबरा। सफ़वी के अनुसार यह मकबरा शाहजहाँ और मुमताज़ महल की आस्थाओं, इच्छाओं और जीवन की स्थिति को अभिव्यक्त करता है। यह निजी प्रेम की स्मृति भी है और एक सम्राट के वैभव का प्रतीक भी।

कंपनी पेंटिंग्स और औपनिवेशिक दृष्टि

प्रदर्शनी में कंपनी कालीन चित्रों की संख्या सबसे अधिक है, जिनमें भारतीय चित्रकारों ने ताजमहल की सूक्ष्म बारीकियों को बखूबी उकेरा है — दीवारों के नक़्क़ाशीदार पैटर्न से लेकर संगमरमर की झिलमिलाहट तक। वहीं औपनिवेशिक और ब्रिटिश कलाकारों ने ताजमहल को एक रोमांटिक प्रतीक के रूप में चित्रित किया।

चार्ल्स विलियम बार्टलेट की “Taj Mahal from the Desert” और “Taj Mahal at Sunset” जैसी चित्रकृतियाँ इसका सशक्त उदाहरण हैं। इसी तरह फ्रेडरिक स्विनर्टन की “View of Agra with the Taj in the background” में ऊँटों के साथ यमुना तट का दृश्य आश्चर्यजनक यथार्थता के साथ प्रस्तुत किया गया है। डच कलाकार मारियस बाउर की “The Gateway of the Taj” जलरंग में बनी चित्रकृति भी दर्शकों को मोह लेती है।

कैद में सम्राट और मुमताज़ की स्मृति

डेनिश कलाकार ह्यूगो विल्फ्रेड पेडुसिन की पेंटिंग “The Emperor Shah Jahan Imprisoned in Agra” संभवतः प्रदर्शनी की सबसे भावनात्मक कृति है। इसमें अर्धनग्न वृद्ध शाहजहाँ को बिस्तर पर बैठे हुए दिखाया गया है, जो अपने सेवक से बात कर रहा है और दूर खिड़की से ताजमहल झलक रहा है। यह चित्र शाहजहाँ की उस पीड़ा और लालसा को जीवंत कर देता है जो उसने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अनुभव की थी।

इसी प्रदर्शनी में मुमताज़ महल की एक नग्न चित्रकृति भी प्रदर्शित है, जिसमें लाल आभा में नहाई रानी का सौंदर्य और उनकी अद्भुत आभूषण-सज्जा दर्शाई गई है। यह चित्र इस बात को भी रेखांकित करता है कि क्यों शाहजहाँ उनके प्रेम में पूरी तरह डूबा हुआ था।

ताजमहल का ‘स्वर्गिक’ बाग़

ताजमहल के स्थापत्य में उसके बाग़ का विशेष महत्व है, जो इस्लामी कल्पना में स्वर्ग का प्रतीक माना जाता है। राणा सफ़वी लिखती हैं — “ताजमहल का हृदय उसका बाग़ है, जिसमें बहती जलधाराएँ कुरान में वर्णित ‘जन्नत के बाग़’ की झलक देती हैं।”ताजमहल में कुरान की 14 संपूर्ण सूराएँ और अन्य कई आयतें अंकित हैं, जो इसे दक्षिण एशिया के किसी भी इस्लामी स्मारक की तुलना में सबसे व्यापक शिलालेखीय कार्यक्रम बनाती हैं।

कैमरे की नज़र से ताज

यूरोपीय फोटोग्राफ़रों जैसे सैम्युअल बॉर्न और फेलिस बियाटो ने ताज को विभिन्न कोणों से कैद किया — विशेष रूप से नदी के पीछे से। उनके कैमरे ने बाहरी दृश्य पर अधिक ध्यान दिया, जबकि आंतरिक सजावट और पिएत्रा ड्यूरा की नक्काशी को कम तवज्जो मिली। बॉर्न ने हालांकि ताज के तहखाने में रखे सार्कोफेगी (कब्र के आवरण) को भी फोटोग्राफ़ किया, जो इस प्रदर्शनी में देखा जा सकता है।

ताज का सामाजिक परिदृश्य

बीसवीं सदी के अनेक फ़ोटोग्राफ़ों में ताजमहल पृष्ठभूमि में दिखाई देता है, जबकि अग्रभूमि में लोग अपने सामान्य जीवन में व्यस्त हैं। यह दृष्टि विशेष रूप से प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़र रघु राय के चित्रों में दिखती है, जिन्होंने ताजमहल को नए अर्थों में पुनर्परिभाषित किया।ताजगंज क्षेत्र और आगरा किला भी कई चित्रों में दिखाई देते हैं। वहीं नूरजहाँ द्वारा अपने पिता मिर्ज़ा ग़ियास बेग के लिए बनवाया गया इतमाद-उद-दौला का मकबरा, जिसे ‘बेबी ताज’ कहा जाता है, भी कई चित्रों का हिस्सा है।

अमर सौंदर्य का उत्सव

यह प्रदर्शनी केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि इतिहास की एक जीवंत यात्रा है — एक ऐसी यात्रा जिसमें हर चित्र यह साबित करता है कि शाहजहाँ के दरबारी कवि कलीम के शब्द आज भी जीवित हैं:

“जब से स्वर्ग का गुम्बद खड़ा है,

तब से आकाश से होड़ लेने वाली ऐसी इमारत कभी नहीं उठी।

इसका रंग सुबह के उजाले जैसा है,

भीतर और बाहर दोनों तरफ़ यह शुद्ध संगमरमर है।

नहीं, यह संगमरमर नहीं —

क्योंकि इसकी नज़ाकत और सुंदरता को देखकर

आँख इसे बादल समझने की भूल कर सकती है।”

यह प्रदर्शनी ताजमहल की उस ‘मूक वाक्पटुता’ को फिर से जीवंत करती है, जिसने सदियों से दुनिया को नि:शब्द कर रखा है।

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