
उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा ट्विस्ट, जमानत बहस में ‘एलके आडवाणी एंगल’
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद फिलहाल कुलदीप सेंगर को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा। अब इस मामले में अगली सुनवाई के दौरान यह तय होगा कि क्या विधायक POCSO कानून के तहत लोक सेवक माने जाएंगे या नहीं और इसका असर भविष्य के मामलों पर भी पड़ सकता है।
Unnao Rape Case: एक फैसले ने जेल के दरवाजे खुलने से पहले ही ब्रेक लगा दिया। जिस आदेश से एक सजायाफ्ता पूर्व विधायक की रिहाई तय मानी जा रही थी, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने सीधी रोक लगा दी है। उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर को मिली राहत पर विराम लगाते हुए शीर्ष अदालत ने न सिर्फ जमानत रोकी, बल्कि एक बड़ा और संवेदनशील सवाल भी खड़ा कर दिया कि 'क्या विधायक POCSO कानून के तहत ‘लोक सेवक’ माने जाएंगे या नहीं?'
सुप्रीम कोर्ट का दखल
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम CBI की अपील के बाद आया है। CBI ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से गलत बताया है। जांच एजेंसी ने कहा कि हाई कोर्ट ने कानून की व्याख्या में गंभीर गलती की है। CBI ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 1997 के चर्चित ‘एलके आडवाणी बनाम CBI’ फैसले का हवाला दिया है। यह मामला भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ा था, जिसमें वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं के खिलाफ जांच हुई थी। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि सांसद और विधायक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत “लोक सेवक” की श्रेणी में आते हैं।
CBI का तर्क
CBI का कहना है कि जब सांसदों और विधायकों को भ्रष्टाचार जैसे मामलों में लोक सेवक माना जा सकता है तो बच्चों के खिलाफ यौन अपराध जैसे गंभीर मामलों में भी यही सिद्धांत लागू होना चाहिए। एजेंसी के अनुसार, हाई कोर्ट ने POCSO कानून की बहुत संकीर्ण व्याख्या की और सुप्रीम कोर्ट के पहले से मौजूद फैसलों को नजरअंदाज कर दिया। CBI ने कहा कि अगर विधायकों को POCSO के तहत लोक सेवक की परिभाषा से बाहर रखा गया तो इससे कानून का मूल मकसद ही कमजोर पड़ जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के जमानत आदेश पर रोक लगा दी। इसके साथ ही कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को नोटिस जारी करते हुए CBI की याचिका पर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। इस पीठ में न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।
क्या है पूरा मामला
यह मामला वर्ष 2017 का है, जब उन्नाव जिले की एक नाबालिग लड़की ने तत्कालीन बांगरमऊ विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप का आरोप लगाया था। इस केस में पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत का मामला भी सामने आया था, जिसमें सेंगर को अलग से दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने बाद में रेप मामले में कुलदीप सेंगर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाई कोर्ट ने क्यों दी थी जमानत
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंगर की अपील पर सुनवाई के दौरान उनकी उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी थी और उन्हें जमानत दे दी थी। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन की पीठ ने कहा था कि केवल विधायक होने के आधार पर सेंगर को POCSO कानून के तहत “लोक सेवक” नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि POCSO कानून में लोक सेवक की परिभाषा में विधायकों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है। इसी आधार पर अदालत ने माना कि सेंगर पर POCSO के तहत लोक सेवकों के लिए तय कड़े मानक लागू नहीं होते।
अब आगे क्या
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद फिलहाल कुलदीप सेंगर को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा। अब इस मामले में अगली सुनवाई के दौरान यह तय होगा कि क्या विधायक POCSO कानून के तहत लोक सेवक माने जाएंगे या नहीं और इसका असर भविष्य के मामलों पर भी पड़ सकता है।

