उत्तराखंड के जंगलों में क्यों लगती है आग, वजह नेचुरल या इंसान खुद
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उत्तराखंड के जंगलों में क्यों लगती है आग, वजह नेचुरल या इंसान खुद

उत्तराखंड के जंगलों में हर साल की तरह इस साल भी आग लगी हुई है. यहां हम समझने की कोशिश करेंगे कि इसके पीछे की वजह क्या है.


Uttarakhand forest fire: गर्मी के दिनों में आगलगी की खबरों से हम वाकिफ होते रहते हैं. आग लगने की वजह से जान माल दोनों का नुकसान होता है. कुछ घटनाएं इरादतन तो कुछ मामलों में असावधानी की बात सामने आती है. इन सबके बीच यहां पर हम जिक्र करेंगे उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के बारे में. महीना यही अप्रैल और मई का होता. साल बदलते रहते हैं लेकिन एक खबर जो कभी नहीं बदलती वो उत्तराखंड के जंगलों की आग से जुड़ी होती है.यहां हम समझने की कोशिश करेंगे कि आग लगने के पीछे की वजह क्या है. हालांकि उससे पहले उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल, जंगल और आग से प्रभावित होना वाला हिस्सा कितना है.

उत्तराखंड के इतने इलाके में जंगल

उत्तराखंड राज्य 53, 483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है. जिसमें 24305 वर्ग किमी पर जंगल है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया यानी एफएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक .2 फीसद आग को लेकर अति संवेदनशील, 1.6 फीसद संवेदनशील, 1.6 फीसद में खतरा बहुत ज्यादा, 9.3 फीसद में खतरा अधिक, 21.7 फीसद में मध्यम दर्ज का खतरा और 67.25 में कम खतरा है. उत्तराखंड के वन विभाग ने 25 लाख हेक्टेअर में फैले जंगल को 13 श्रेणी में बांटा है. इनमें से 3.94 लाख हेक्टेअर में चीड़ पाइन के जंगल है. इन जंगलों में आग लगने का खतरा सबसे अधिक रहता है. इस समय कुमाऊं रीजन में जो आग लगी है उसमें चीड़ पाइन के पेड़ सर्वाधिक हैं.

चीड़ के जंगलों में लगती है आग

उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि दरअसल खाना बनाने के लिए लोग चीड़ पाइन के जंगलों में जाते हैं. जंगल से वो सूखी पत्तियां लाकर ईंधन का इस्तेमाल करते हैं. पारंपरिक तौर पर खेती करने वाले नई घास की उम्मीद में जंगल की सतह पर पड़ी पत्तियों में आग लगा देते हैं और उसकी वजह से आग दूसरे इलाकों को चपेट में ले लेती है. कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि जंगलों में लगने वाली आग के पीछे यह बड़ी वजह है.

वजह नैचुरल या मानवीय

राज्य सरकार की तरफ से आग को रोकने के लिए फायर लाइंस बनाई गई हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की 1981 की रुलिंग बाधा बन जाती है. इस आदेश के तहत एक हजार मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में स्थित पेड़ों को काटा नहीं जा सकता है. अब आग लगने के लिए तीन आवश्यक साधन यानी ईंधन, आग और ऑक्सीजन का होना जरूरी होता है. अगर आर चीड़ पाइन की सूखी पत्तियों और पेड़ों को हटा दें तो आगलगी की घटना सामान्य रहेगी. जब जंगल की सतह पर इस तरह से सूखी पत्तियों या पेड़ों की संख्या बढ़ जाती है तो मानवीय दखल की वजह से आग लगने के मामलों में बढ़ोतरी हो जाती है.


अगर 2024 में अप्रैल महीने की बात करें तो वन विभाग को ने आग लगने की छोटी- बड़ी सात हजार से अधिक अलर्ट मिले थे. जबकि पिछले साल यह संख्या महज 925 थी. मौसम के जानकारों का कहना है कि हिमालय के इलाकों में ठंड में आने वाली कमी यूं कहें कि गर्मी के महीनों में इजाफा बड़ी वजह है. इसके साथ ही लोग जिस तरह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते हैं उसकी वजह से जंगल में आग धधक रही है.

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