Beatles Ashram redo: गुजरात के आर्किटेक्ट बिमल पटेल को मिला एक और बेहतरीन प्रोजेक्ट
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Beatles Ashram redo: गुजरात के आर्किटेक्ट बिमल पटेल को मिला एक और बेहतरीन प्रोजेक्ट

उत्तराखंड सरकार ने पिछले सप्ताह एचसीपी डिजाइन को बीटल्स आश्रम के रेनोवेशन का ठेका दिया है. इस आश्रम को महर्षि महेश योगी ने 1961 में ऋषिकेश में स्थापित किया था.


उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित प्रतिष्ठित बीटल्स आश्रम में ब्रिटिश म्यूजिक बैंड 'द बीटल्स' ने योग का अभ्यास किया था. बैंड ने यहां गाने लिखे और कंपोज भी किया था. अब इस आश्रम का फेमस आर्किटेक्ट बिमल पटेल की अहमदाबाद स्थित कंपनी एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा रेनोवेशन करने जा रही है.

बता दें कि सेंट्रल विस्टा के पीछे के व्यक्ति बिमल पटेल हाल के वर्षों में काफी विवादों में रहे हैं. उनके समय के और सीनियरों ने उन पर परंपराओं में कम रुचि दिखाने का आरोप लगाया है. क्योंकि उनकी परियोजनाओं का झुकाव ज़्यादातर शहरी कंक्रीटीकरण की ओर रहा है. बिमल पटेल ने गुजरात और राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के लिए कई परियोजनाएं की हैं.

मुख्य अनुबंध

उत्तराखंड सरकार ने पिछले सप्ताह एचसीपी डिजाइन को आश्रम के जीर्णोद्धार का ठेका दिया था, जिसे मूल रूप से महर्षि महेश योगी ने 1961 में ऋषिकेश में 7.5 हेक्टेयर वन भूमि पर स्थापित किया था. चौरासी कुटिया (84 झोपड़ियां) आश्रम को लोकप्रियता तब मिली जब बीटल्स बैंड के चार सदस्य जॉन लेनन, पॉल मेकार्टनी, जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार 1968 में तीन महीने तक वहां रहे. इसे बीटल्स आश्रम कहा जाता है. एचसीपी डिजाइन के परियोजना प्रमुख आनंद पटेल ने द फेडरल को बताया कि हालांकि यह उत्तराखंड सरकार की परियोजना है. लेकिन हम जानते हैं कि केंद्र सरकार मूलरूप से मई 2023 में ऋषिकेश में जी-20 बैठक के ठीक बाद इस विचार के साथ आई थी.

नवीकरण की लागत

आनंद पटेल ने कहा कि हमें यह प्रोजेक्ट मिलने की खुशी है और हम 2024 के अंत तक काम शुरू कर देंगे. नवीनीकरण की अनुमानित लागत 90 करोड़ रुपये होगी और इसे पूरा होने में डेढ़ साल लग सकता है. इस दौरान आश्रम जनता के लिए बंद रहेगा. चूंकि यह स्थान 50 साल से भी ज़्यादा पुराना है. इसलिए हम इसके चरित्र में कोई बदलाव किए बिना इसकी मरम्मत करेंगे, ताकि आगंतुकों को इसके मूल आकर्षण का अंदाज़ा हो सके. हम आश्रम परिसर में कुल 25 संरचनाओं में से 12 का जीर्णोद्धार करेंगे. उन्होंने आगे कहा कि हम बाकी 13 को वैसे ही छोड़ देंगे, ताकि लोगों को आश्रम के पुराने स्वरूप का अंदाजा हो सके. हमने एक ऐसा स्थान बनाने की भी योजना बनाई है, जहां बीटल्स, महर्षि महेश योगी, योग और संगीत पर प्रदर्शनियां लगाई जाएंगी.

बड़ी परियोजनाएं

खास बात यह है कि बिमल पटेल के स्वामित्व वाली इस फर्म के कर्मचारियों के लिए इतनी बड़ी परियोजना कोई नई बात नहीं है. इसने सेंट्रल विस्टा, नए संसद परिसर और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और अहमदाबाद में गांधी आश्रम के चल रहे पुनर्विकास सहित कई बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है. 63 वर्षीय बिमल पटेल, 2001 में नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके लिए मार्गदर्शक बन गए हैं. गुजरात स्थित वास्तुकार और एक अन्य प्रसिद्ध वास्तुकार दिवंगत बीवी दोशी की पूर्व छात्रा मानसी भार्गव ने द फेडरल को बताया कि उन्होंने 1980 के दशक के मध्य में अपने पिता हसमुख पटेल के साथ अपने करियर की शुरुआत की, जिन्होंने 1992 में गुजरात हाई कोर्ट का निर्माण किया था. उन्होंने कहा कि बिमल वास्तुकला की दुनिया में चहेते थे. वे हसमुख पटेल के पुत्र और दिग्गज बीवी दोषी के छात्र थे. लेकिन जैसे-जैसे वे अपने करियर में आगे बढ़े, अधिकांश वास्तुकार उनकी अभिजात शहरी वास्तुकला शैली से असहमत होने लगे, जिसमें किसी परियोजना से जुड़ी मानवीय लागत पर विचार नहीं किया जाता था.

गुलदस्ते और ईंट-पत्थर

भार्गव ने याद करते हुए कहा कि उनकी पहली एकल सफलता 2001 में नए आईआईएम-अहमदाबाद परिसर को डिजाइन करने के साथ मिली, जो 1974 में अमेरिकी वास्तुकार लुइस काह्न द्वारा डिजाइन किए गए पुराने परिसर का विस्तार है. उन्होंने कहा कि साल 2005 में अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट परियोजना के लिए उन्हें सराहना और आलोचना दोनों मिली. उन दिनों वह सुरेंद्र पटेल के करीबी हुआ करते थे, जो उस समय अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी थे.

उन्होंने कहा कि कहा जाता है कि सुरेंद्र पटेल ने साबरमती रिवरफ्रंट और कांकरिया लेक वाटरफ्रंट परियोजनाओं को बिमल को सौंपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. लेकिन मेरी इच्छा है कि उन्होंने परियोजना शुरू होने से पहले बीवी दोशी के साथ योजनाओं को साझा किया होता. दोशी अंततः परियोजना के सबसे कड़े आलोचकों में से एक बन गए. तथ्य यह है कि अहमदाबाद के पारंपरिक वास्तुकला के लंबे इतिहास के बावजूद, बिमल परंपरा में बहुत कम रुचि दिखाते हैं. उनकी परियोजनाएं ज़्यादातर शहरी कंक्रीटीकरण की हैं.

गुरु के साथ मतभेद

हालांकि, रिवरफ्रंट परियोजना के खिलाफ कड़े विरोध और आलोचना के बावजूद, बिमल पटेल ने गांधीनगर में राज्य सचिवालय भवन स्वर्णिम संकुल को डिजाइन किया. साल 2015 में, उन्हें अहमदाबाद में अपने अल्मा मेटर, सीईपीटी विश्वविद्यालय के जीर्णोद्धार का ठेका मिला. हालांकि, बिमल पटेल के शिक्षक और सीईपीटी के संस्थापक निदेशक बीवी दोशी के बीच परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान मतभेद हो गया था. दोशी, जिन्होंने 1962 में परिसर का डिजाइन तैयार किया था, ने बिमल से बिना उनसे सलाह किए इमारत की मूल अवधारणा में बदलाव करने के लिए कहा. विडंबना यह है कि दोशी को 2015 में सीईपीटी के सदस्य मंडल से इस्तीफा देना पड़ा और बिमल ने योजना के अनुसार परियोजना को आगे बढ़ाया.

बिमल पटेल के साथ सीईपीटी में अध्ययन करने वाले एआर श्रीवत्सना ने द फेडरल को बताया कि सिर्फ दोषी ही नहीं, बोर्ड के अन्य सदस्य भी बिमल की योजनाओं से सहमत नहीं थे. फिर भी इससे उनका प्रोजेक्ट नहीं रुका. इसके बजाय वास्तुकला की दुनिया के दिग्गज व्यक्ति दोषी को उस संस्थान से इस्तीफा देना पड़ा, जिसे उन्होंने अपने हाथों से बनाया था. यह बात अपने आप में बहुत कुछ कहती है.

गुजरात की और परियोजनाएं

साल 2017 तक बिमल पटेल गुजरात में सरकारी परियोजनाओं का पर्याय बन गए. उन्होंने अच्युत कनविंदे के अहमदाबाद टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन (एटीआईआरए), फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल), हसमुख सी पटेल के न्यूमैन हॉल, लुइस काहन के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, चार्ल्स कोरिया के साबरमती आश्रम में गांधी स्मारक संग्रहालय, बालकृष्ण दोशी के एलआईसी हाउसिंग कॉम्प्लेक्स, टैगोर मेमोरियल हॉल और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) जैसे प्रमुख संस्थानों को डिजाइन किया.

अगस्त 2021 में, उनकी फर्म को एक और प्रतिष्ठित परियोजना मिली - अहमदाबाद में साबरमती आश्रम या गांधी आश्रम का पुनर्विकास. गुजरात सरकार की 1,200 करोड़ रुपये की परियोजना की गांधीवादियों ने तुरंत आलोचना की. क्योंकि उन्होंने इस कदम को आश्रम का 'डिज़्नीफिकेशन' कहा. महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने गुजरात हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की. लेकिन इसे खारिज कर दिया गया. याचिका में कहा गया है कि जिस तरीके और पद्धति से पुनर्विकास की योजना बनाई गई है, वह न केवल महात्मा गांधी की व्यक्तिगत इच्छा और विरासत के बिल्कुल विपरीत है, बल्कि इससे आश्रम के प्रबंधन ढांचे में भी बदलाव आएगा.

गांधीवाद विरोधी?

गांधी आश्रम परिसर में रहने वाले गांधीवादी धीमंत बढिया ने द फेडरल को बताया कि कलेक्टर ने 200 परिवारों, जिनमें ज्यादातर दलित थे, के लिए पुनर्वास आदेश पारित किया था और उन्हें गांधी आश्रम स्मारक और परिसर विकास परियोजना नामक 1,200 करोड़ रुपये की परियोजना को लागू करने के लिए 60 लाख रुपये की पेशकश की थी. बधिया ने कहा कि यह मुझे या परिसर में रहने वाले कई गांधीवादियों को स्वीकार्य नहीं है. यह कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह गांधीवाद के खिलाफ है. विरोध के बावजूद, मोदी ने श्रमभूमि वंदना (आधारशिला रखना) की और मार्च 2024 में परियोजना के मास्टरप्लान का अनावरण किया. बधिया ने कहा कि ये परिवार अब पूरे अहमदाबाद में रहते हैं. 60 परिवारों में से 20 ने पैसे स्वीकार किए और अपनी मर्जी से चले गए. शेष परिवारों को लगातार पुलिस उत्पीड़न के कारण बाहर जाना पड़ा.

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