Chief Justice Sanjiv Khanna Supreme Court of India
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वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार पर तल्ख टिप्पणी की थी। फोटो सौजन्य- पीटीआई

जब हम पीठ का हिस्सा होते हैं, खो बैठते हैं धर्म, वक्फ पर सुनवाई के दौरान SC

वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सॉलीसिटर जनरल से तीखे सवाल किये। उन्होंने कहा कि जब हम पीठ का हिस्सा होते हैं तो उस वक्त धर्म हमारे लिए मतलब नहीं रखता।


वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के प्रावधानों को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा दिए गए एक तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से कहा गया कि अगर गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में शामिल करने पर आपत्ति है, तो उसी तर्क के अनुसार हिंदू जजों को वक्फ से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने इस तुलना को अनुचित और असंगत बताया।

मुख्य न्यायाधीश की तीखी प्रतिक्रिया

PTI की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा के वी विश्वनाथन की पीठ केंद्र सरकार से यह सवाल कर रही थी कि क्या गैर-मुस्लिमों को केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में नामित किया जाना संविधान सम्मत है?

मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र से दो-टूक पूछा

"क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं कि अल्पसंख्यकों, जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं, को हिंदू धार्मिक संस्थानों के बोर्ड में भी शामिल किया जाना चाहिए? कृपया इसे स्पष्ट रूप से कहें।"

केंद्र का पक्ष और तर्क

सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होते हुए इन प्रावधानों का बचाव किया। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी सीमित है और यह इन संस्थाओं की मुस्लिम-बहुल संरचना को प्रभावित नहीं करती।लेकिन उन्होंने आगे जो तर्क दिया, उस पर कोर्ट ने खास नाराज़गी जताई। मेहता ने कहा कि यदि गैर-मुस्लिमों की उपस्थिति पर आपत्ति को मान्यता दी जाती है, तो फिर न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल उठ सकता है, क्योंकि मौजूदा पीठ में सभी न्यायाधीश हिंदू हैं।

"अगर यह तर्क मान लिया जाए कि गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड में नहीं हो सकते, तो फिर इस तर्क से यह पीठ भी इस मामले की सुनवाई करने के योग्य नहीं होगी," मेहता ने कोर्ट से कहा।

धर्म के आधार पर संस्थागत संरचना की तुलना अनुचित

कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायिक निर्णय धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और संविधान के अनुरूप लिए जाते हैं, जबकि धार्मिक संस्थानों की संरचना और सदस्यता धार्मिक सिद्धांतों और परंपराओं पर आधारित होती है। अदालत ने यह भी इंगित किया कि जिस तरह से हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में अन्य धर्मों के लोगों की नियुक्ति नहीं होती, उसी तरह वक्फ बोर्डों की संरचना भी मुस्लिम समुदाय से संबंधित है।

संवैधानिक संतुलन बनाना जरूरी

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख स्पष्ट रूप से संकेत करता है कि धार्मिक संस्थाओं की संरचना को लेकर कोई भी संशोधन या हस्तक्षेप बहुत सोच-समझकर और संवैधानिक सीमाओं में रहकर किया जाना चाहिए। यह मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन का भी प्रतीक बन चुका है।

अदालत इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश दे सकती है, लेकिन अंतिम फैसला विस्तृत सुनवाई के बाद ही आएगा। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे निर्धारित है।

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