अब रायबरेली संग राहुल का रिश्ता, पांच प्वाइंट्स में समझें वायनाड क्यों छोड़ा
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अब रायबरेली संग राहुल का रिश्ता, पांच प्वाइंट्स में समझें वायनाड क्यों छोड़ा

आखिर कई दिनों के मंथन के बाद राहुल गांधी ने वायनाड सीट छोड़ दी है, अब वो रायबरेली सीट से प्रतिनिधित्व करेंगे. हम यहां समझने की कोशिश करेंगे कि उन्होंने वायनाड को क्यों छोड़ा.


Rahul Gandhi News: अब यह साफ हो चुका है कि राहुल गांधी वायनाड की जगह यूपी की रायबरेली सीट अपने पास रखेंगे. हालांकि वायनाड की सीट पर गैर गांधी परिवार से चुनाव नहीं लड़ने जा रहा है. प्रियंका गांधी अब वायनाड से चुनाव लड़कर लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद में जाने की तैयारी करेंगी. यहां हम विस्तार से बताएंगे कि राहुल गांधी ने इस बार वायनाड को क्यों छोड़ दिया. पहला, सीधा और सरल जवाब ये है कि उन्हें रायबरेली सीट से भी जीत मिली है, 2019 में वो अमेठी की सीट हार गए थे. आपको याद होगा कि रायबरेली में वोटर्स को धन्यवाद देने के बाद दो दिन बाद वो वायनाड पहुंचे थे और लोगों से ही पूछा कि क्या करें बड़ी दुविधा है. वायनाड ने कहा राहुल जी हमें छोड़कर मत जाइए. लेकिन केरल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के बयान से तस्वीर साफ हो चुकी थी कि राहुल किस सीट को अपने पास रखेंगे.

वायनाड छोड़ रायबरेली से नाता जोड़ा
आपके जेहन और दिल में ये सवाल कौंध रहे होंगे कि आखिर राहुल गांधी ने उस वायनाड को क्यों छोड़ दिया जो जीत की गारंटी देता है. यहां पर सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे. देखिए, भारत की राजनीति में यूपी का महत्व सीटों की संख्या से ज्यादा है. यहां पर जीत और हार का सीधा मतलब यही है कि आप सियासी जगत में कितनी ताकत रखते हैं. आपको याद होगा कि 2019 के नतीजों के बाद भी विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आवाजा उठाता था. लेकिन 2024 के नतीजे के बाद विपक्ष कह रहा है कि हमारे पास संख्या है. हम विपक्ष की मजबूत आवाज हैं और वो कैसे संभव हो सका क्योंकि इस दफा यूपी से इंडी ब्लॉक 43 सीटें जीतने में कामयाब हुआ है. 37 सीटें समाजवादी पार्टी और 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गई है. अब यदि कांग्रेस को यूपी में और मजबूती देनी है तो जाहिर सी बात है कि राहुल गांधी और पार्टी के रणनीतिकार यही चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा समय वो यूपी को दे सकें.

2024 की तस्वीर अलग
सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं कि 2019 की तुलना में 2024 की तस्वीर अलग है. इस दफा नरेंद्र मोदी सत्ता में तो हैं लेकिन दो बैशाखी की मदद से सरकार चल रही है. यानी कि अस्थिरता का दौर बना रहेगा, ऐसी सूरत में राहुल गांधी की वायनाड छोड़ना और प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने से कांग्रेस को बड़ा फायदा संसद में मिलेगा. दोनों भाई बहन प्रखर तरीके से उत्तर और दक्षिण भारत में बीजेपी की पोल खोलने में कामयाब होंगे. अगर आप रायबरेली और वायनाड की बात करें तो ये दोनों सीटों पर कांग्रेस का परंपरागत तौर पर कब्जा रहा है.

यूपी में राजनीतिक आधार की चुनौती
राहुल गांधी द्वारा रायबरेली सीट अपने पास रखने की सबसे बड़ी उम्मीद यूपी में राजनीतिक जमीन पाने की है. 2019 में कांग्रेस सिर्फ एक सीट रायबरेली को अपने कब्जे में रख पायी थी, लेकिन इस दफा का चुनाव कांग्रेस के लिए उम्मीदों से भरा है. समाजवादी पार्टी के गठबंधन का फायदा हुआ. उससे भी बड़ी बात यह है कि बीएसपी के वोट शेयर में जो गिरावट हुई है उसका कुछ हिस्सा कांग्रेस की झोली में गए.बीएसपी का वोट शेयर 19 फीसद से घटकर 9 फीसद हो गया. ऐसा माना जा रहा है कि 10 फीसद वोट शेयर में कांग्रेस को करीब 2 से 3 फीसद वोट मिले थे.

हिंदी हॉर्टलैंड पर नजर
वायनाड छोड़ रायबरेली आने के पीछे की बड़ी वजह यह है कि हिंदी हॉर्टलैंड में जब तक कांग्रेस मजबूत नहीं होगी केंद्र की सत्ता से दूर रहना होगा. अगर आप राजस्थान, हरियाणा के नतीजों को देखें तो कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है. इस वजह से भी वायनाड छोड़ राहुल गांधी ने रायबरेली का चुनाव किया. अब इसका कितना फायदा कांग्रेस को मिलता है वो तो देखने वाली बात होगी.

वायनाड छोड़ा जरूर लेकिन...
राहुल गांधी ने वायनाड को छोड़ा जरूर है लेकिन अब वहां से उम्मीदवार कौन होगा फैसला भी हो चुका है. प्रियंका गांधी अब वहां से चुनाव लड़ेंगी. रायबरेली संग राहुल के नाता जोड़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि जब तक यूपी में कांग्रेस का पुनर्जीवन नहीं होगा. बात नहीं बनने वाली हैं. देश की 80 लोकसभा सीट यहां से आती हैं. उससे भी बड़ी बात यह है कि यूपी में जीत का मनोवैज्ञानिक फायदा होता है. आपको 4 जून की वो तारीख याद भी होगी जब राहुल गांधी ने कहा था कि वैसे तो विपक्ष की जीत में देश के हर सूबों ने जमकर सहयोग दिया है. लेकिन वो यूपी की जनता को स्पेशल थैंक्स कहना चाहेंगे जिन्होंने संविधान पर हमले को समझा था. इस तरह से राहुल गांधी ने हिंदी हॉर्टलैंड को साधने की कोशिश की. वहीं वायनाड में प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ाकर दक्षिण भारत को भी साधने की कोशिश करेंगे.

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