क्या मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं करते, कुछ और इशारा करते हैें ये आंकड़े
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क्या मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं करते, कुछ और इशारा करते हैें ये आंकड़े

मुस्लिम समाज के बारे में कहा जाता है कि वो बीजेपी के खिलाफ मत देते हैं.आंकड़ों को देखें तो यह धारणा पुष्ट होती है, लेकिन कुछ फीसद मुस्लिम वोटर्स ने बीजेपी को मत दिया है.


आम चुनाव 2024 के नतीजों के बाद अब चीरफाड़ इस बात को लेकर हो रही है कि किस समाज ने किसे मत दिया. अगर हम सिर्फ नमूने के तौर पर उत्तर प्रदेश का उदाहरण लें तो एक बात साफ है कि इस दफा गैर यादव ओबीसी जातियां बीजेपी से छिटक गईं और उसका असर नतीजों में भी दिखाई दिया. बीजेपी 62 के आंकड़े से 33 के आंकड़े पर सिमट गई. यहीं पर एक और सवाल मुस्लिम समाज को लेकर भी है. मुस्लिम समाज के बारे में आम धारणा है कि यह समाज बीजेपी के खिलाफ ही वोट करता है. एक तरह से टैक्टिकल वोटिंग करता है. इसका अर्थ यह कि जिस किसी लोकसभा या राज्यसभा में जो बीजेपी के खिलाफ मजबूत होता है उसके समर्थन में मतदान. इस दफा कि तस्वीर भी कुछ ज्यादा अलग नहीं है,हालांकि आठ फीसद मुसलमानों ने बीजेपी के समर्थन में मत दिया है.

इतने फीसद मुस्लिम वोटर्स को भाए बीजेपी के नारे

सीएसडीएस लोकनीति के सर्वे के मुताबिक बीजेपी को मिले आठ फीसद वोट में करीब 11 फीसद गरीब, 7 फीसद निम्न तबका, 5 फीसज मध्य वर्ग, अमीर 6 फीसद, बड़ी जातियां यानी अशरफ 12 फीसद और ओबीसी यानी पसमांदा समाज ने 5 फीसद वोट किया है. अब इसके दो पक्ष है कि इतने फीसद मुस्लिमों ने ही बीजेपी को मत क्यों दिया और 92 फीसद खिलाफ चले गए. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि देश का 92 फीसद मुस्लिम समाज को बीजेपी की कोर हिंदुत्व राजनीति रास नहीं आ रही है. अधिकांश मुस्लिमों को लगता है कि बीजेपी उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानती है. बीजेपी के सत्ता में आने का अर्थ यह होगा कि वो लोग धीरे धीरे अपने अधिकार खो बैठेंगे. उनकी आस्था पर प्रहार होगा. दरअसल इस तरह की सोच के विपक्षी दल उत्प्रेरक की तरह काम करते हैं. अब दूसरे विषय को समझने की आवश्यकता है आखिर मुस्लिम समाज के अलग अलग तबकों ने मत क्यों दिया.

आरक्षण वाला डर यहां भी था
इस सवाल का जवाब कुछ यूं हैं. पीएम मोदी ने जिस तरह से सबका साथ सबका विकास का नारा दिया उसे गरीब निम्न वर्ग के मुसलमानों ने सराहा. जैसे ट्रिपल तलाक, पीएम आवास योजना, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान योजना का लाभ बिना भेदभाव उन लोगों को मिला जो मुख्यधारा से कटे हुए थे. उस समाज को लगा कि वैचारिक तौर पर मत भले ही अलग हो कम से कम लाभ तो मिल रहा है. हालांकि अगर आप राज्यों के हिसाब से देखें तो तस्वीर अलग है, जैसे गुजरात में 29 फीसद मुसलमानों ने बीजेपी का समर्थन किया वहीं यूपी में यह महज 2 फीसद था. इसी तरह अगर मुसलमानों में अगड़े समाज की बात करें तो 12 फीसद अशरफ और ओबीसी के पांच फीसद ही बीजेपी के समर्थन में आए, इससे साफ है कि अगड़े मुसलमानों को बीजेपी की नीति भाई. लेकिन मुसलमानों में पिछड़े समाज को हिंदूओं के पिछड़े समाज की तरह लगा कि बीजेपी आरक्षण छीन लेगी.

अगर मिडिल क्लास और आर्थिक तौर पर कमजोर तबके को देखें तो कहीं न कहीं कमजोर तबके को लगा कि मोदी की स्कीम से तो उन्हें फायदा हो रहा है. विपक्ष की सरकारें भले ही विकास के वादे और दावे करती रही हैं उनकी सेहत में असल मायने में सुधार तो बीजेपी की रिजीम में ही आया. लेकिन अगर बड़े कैनवास पर देखें तो मुस्लिम समाज के अधिकांश तबके को लगता है कि बीजेपी की नीति पारदर्शी नहीं है. जिस दिन उनके पास पर्याप्त ताकत होगी वो मुस्लिमों को दोयम दर्ज का नागरिक बना देंगे.

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