
साल 2025: भारत ने कैसे पाकिस्तान के परमाणु ब्लैकमेल को किया बेअसर?
India-Pakistan tension: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच रणनीतिक भाषा बदल चुकी है। परमाणु हथियार अब पारंपरिक जवाबी कार्रवाई को हमेशा के लिए नहीं रोक सकते।
India military strategy: दक्षिण एशिया की राजनीति और सुरक्षा व्यवस्था में एक खामोश ऐतिहासिक बदलाव आ चुका है। क्योंकि पिछले कई सालों से पाकिस्तान, भारत को परमाणु हमले की गीदड़ भभकी देते आ रहा है। भारत भी इसी वजह अपने पड़ोसी मुल्क पर सैन्य जवाब देने से बचता रहा। हालांकि, अब दौर बदल चुका है और इसका जीता-जागता उदाहरण 'ऑपरेशन सिंदूर' है। भारत ने यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान अगर कोई गुस्ताखी करेगा तो भारत भी उसका माकूल जवाब देगा। यह महज एक सैन्य ऑपरेशन नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच शक्ति संतुलन बनाने और परमाणु रणनीति को नए सिरे से लिखने वाला मोड़ साबित हुआ है।
पिछले दो दशकों से अधिक समय तक पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत की बढ़ती सैन्य ताकत के सामने एक रणनीतिक ढाल के रूप में काम करते रहे हैं। पाकिस्तान की परमाणु नीति का मकसद कभी भी सीधे युद्धक्षेत्र में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं था, बल्कि भारत पर मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दबाव बनाना था, ताकि किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई को रोका जा सके। इस रणनीति के जरिए पाकिस्तान न केवल बड़े सैन्य हमलों को रोकना चाहता था, बल्कि सीमित भारतीय कार्रवाई को भी हतोत्साहित करना चाहता था। इसी “परमाणु डर” की आड़ में पाकिस्तान लंबे समय तक आतंकवाद और छद्म युद्ध जैसी गतिविधियां करता रहा।
पुरानी सोच से बड़ा बदलाव
लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने इस स्थापित रणनीतिक समीकरण को चुनौती दी। भारत ने यह दिखा दिया कि वह सटीक, सीमित और लगातार पारंपरिक सैन्य कार्रवाई कर सकता है, बिना परमाणु युद्ध की स्थिति पैदा किए। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की ओर से न तो कोई बड़ा परमाणु संकेत मिला और न ही हालात बेकाबू हुए। इससे यह साफ हुआ कि भारत की पारंपरिक ताकत और पाकिस्तान की परमाणु सीमा के बीच जो रिश्ता पहले माना जाता था, वह अब बदल चुका है। भले ही पाकिस्तान की परमाणु क्षमता खत्म नहीं हुई, लेकिन उसकी डर पैदा करने वाली ताकत कमजोर जरूर हुई।
पाकिस्तान की परमाणु रणनीति
पाकिस्तान ने भारत की सैन्य बढ़त के जवाब में “फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस” जैसी अवधारणाएं अपनाईं। इसका मकसद यह था कि युद्ध के हर स्तर पर परमाणु खतरे की अनिश्चितता बनी रहे, ताकि भारत कोई भी कदम उठाने से पहले डरे। इस अस्पष्टता ने पाकिस्तान को यह मौका दिया कि वह आतंकवाद और गुप्त हिंसा जैसे तरीकों का इस्तेमाल करता रहे, जबकि भारत की प्रतिक्रिया सीमित बनी रहे। यहां तक कि टैक्टिकल न्यूक्लियर हथियारों का विकास भी इसी चेतावनी का हिस्सा था कि छोटे स्तर का युद्ध भी परमाणु हमले में बदल सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर से क्या बदला?
ऑपरेशन सिंदूर ने यह धारणा तोड़ दी कि बड़े और खुले पारंपरिक हमले अपने आप परमाणु युद्ध को जन्म देंगे। भारत की एयर स्ट्राइक और अन्य सैन्य कार्रवाई के बावजूद पाकिस्तान ने कोई असाधारण या परमाणु प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे यह साफ हो गया कि पाकिस्तान के निर्णयकर्ता अब भी लाभ-हानि के तर्क के आधार पर फैसले लेते हैं। नतीजतन, परमाणु सीमा के नीचे पारंपरिक युद्ध की गुंजाइश और बढ़ गई।
एयर पावर
इस ऑपरेशन का एक बड़ा असर यह भी रहा कि वायु शक्ति को लेकर बनी मनोवैज्ञानिक दीवार टूट गई। पहले एयर स्ट्राइक को परमाणु युद्ध की शुरुआत माना जाता था, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि सटीकता, संयम और स्पष्ट राजनीतिक संदेश के साथ एयर पावर का इस्तेमाल किया जा सकता है। अब एयर स्ट्राइक को पूर्ण युद्ध की भूमिका नहीं, बल्कि नपे-तुले जवाब के रूप में देखा जाने लगा है।
ऑपरेशन के कुछ हफ्तों बाद चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने परमाणु युद्ध की आशंकाओं को खारिज किया। उन्होंने कहा कि संघर्ष के दौरान दोनों पक्षों ने काफी “तर्कसंगत सोच” दिखाई। जनरल चौहान ने कहा कि मुझे लगता है कि संघर्ष के समय सबसे तर्कसंगत लोग वर्दी में होते हैं। इस ऑपरेशन के दौरान दोनों पक्षों के विचार और कदम काफी संतुलित थे। परमाणु सीमा पार होने से पहले बहुत जगह होती है और इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि अब पारंपरिक सैन्य अभियानों के लिए काफी स्पेस बन चुका है और यही आगे का नया मानक होगा।
पाकिस्तान की परमाणु रणनीति को झटका
भारत की निर्णायक लेकिन सीमित कार्रवाई ने पाकिस्तान की उस रणनीति को कमजोर कर दिया है, जो जानबूझकर परमाणु डर पैदा करने पर आधारित थी। अगर बड़े पारंपरिक हमलों के बावजूद परमाणु धमकी काम न करे तो उसकी विश्वसनीयता खुद-ब-खुद घट जाती है। इस मायने में ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान की परमाणु नीति को व्यवहारिक रूप से “नया रूप” दे दिया है। अब परमाणु हथियार पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुए हैं, लेकिन वे पहले जैसे सर्वशक्तिमान भी नहीं रहे।

