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ब्रेस्ट कैंसर का पीरियड्स से गहरा संबंध होता है, यह बात कम ही महिलाएं जानती हैं

भारत में 35 और विदेशों में 50 की उम्र में बढ़ता है स्तन कैंसर, क्यों?

पीरियड्स से जुड़ा है स्तन कैंसर का खतरा, 35 की उम्र में शिकार हो रहीं भारतीय महिलाएं। डॉक्टर कनिका ने बताईं ब्रेस्ट कैंसर से जुड़ी जरूरी बातें...


Breast Cancer: अब भारत में ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) सिर्फ एक बीमारी नहीं रह गया है बल्कि एक ऐसी चुनौती बन चुका है, जो हर उम्र की महिलाओं को अपनी चपेट में ले रही है। विश्व स्तर पर महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के अधिकांश केस मिलने की उम्र 50 साल के आस-पास है। जबकि हमारे देश में ये केसेज 40-45 साल की उम्र की महिलाओं में ही मिलने लगते हैं। यानी करीब 10 साल पहले ही हमारे देश की महिलाएं इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आ जाती हैं। ऐसा क्यों है, इससे बचने के क्या उपाय हैं और किस उम्र में ब्रेस्ट कैंसर को लेकर अधिक सतर्क हो जाने की आवश्यकता है, इस सबके बारे में कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर कनिका सूद शर्मा ने विस्तार से बताया...

अब और कम उम्र में दिखने लगा है ब्रेस्ट कैंसर!

दिल्ली के धर्मशिला नारायणा हॉस्पिटल की ऑन्कॉलजी डिपार्टमेंट हेड डॉक्टर कनिका के अनुसार, हमारे देश में अपेक्षाकृत कम उम्र की महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने का मुख्य कारण तो ज्योग्राफिकल है। यानी प्राकृतिक रूप से जिस तरह के वातावरण, खान-पान और जीवनशैली के साथ हम रहते हैं, उनका बड़ा योगदान है। लेकिन रही-सही कसर तेजी से बदलती फूड हैबिट्स और लाइफस्टाइल ने पूरी कर दी है। यही कारण है कि अब 30 से 35 की उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के केस तेजी से बढ़ रहे हैं।


बढ़ा हुआ मेंटल स्ट्रेस,हॉर्मोनल इंबैललेंस और नाइट लाइफ के साथ महिलाओं का एक्सपोज़र ये कुछ ऐसे कारण सामने आए हैं, जो 30 से 35 की उम्र में ही महिलाओं को इस जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में ला देते हैं। धूम्रपान यानी स्मोकिंग और एल्कोहॉल कंजंप्शन यानी शराब के सेवन, साथ ही बदलते खान-पान और लाइफस्टाइल ने इस खतरे को कम उम्र की तरफ शिफ्ट कर दिया है।


हर साल आते हैं इतने केस

आंकड़ों की अगर बात करें तो इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (NCRP) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 2 लाख से अधिक नई महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के केस दर्ज होते हैं। सबसे गंभीर बात ये है कि इन मामलों में लगभग 50% महिलाएं स्टेज 3 या 4 में अस्पताल पहुंचती हैं यानी तब जब कैंसर शरीर में फैलने लगता है।


पीरियड्स से जुड़ा है ब्रेस्ट कैंसर का खतरा

कम ही महिलाएं इस तथ्य को जानती हैं कि ब्रेस्ट कैंसर का खतरा आमतौर पर उन महिलाओं में अधिक होता है, जिन्हें बहुत कम उम्र में पीरियड्स शुरू हो गए हों और लंबी उम्र तक पीरियड्स होते रहें। यानी जिनमें मेनोपॉज देर से आए। आमतौर पर मेनोपॉज की उम्र 45 से 55 के बीच होती है। लेकिन यदि इस उम्र में पीरियड्स आना बंद ना हो तो शरीर लंबे समय तक एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन नामक हॉर्मोन्स के संपर्क में रहता है, जिससे ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ता है।


स्तन कैंसर और मासिक धर्म का संबंध

मेनोपॉज़ जितनी देर से होता है, ब्रेस्ट कैंसर का खतरा उतना बढ़ जाता है। इसके पीछे का कारण महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) नाम के हार्मोन होते हैं।


क्योंकि महिला के मासिक धर्म शुरू होने (Menarche) से लेकर मासिक धर्म बंद होने (Menopause) तक हर महीने बच्चेदानी (ओवरीज़) से एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन निकलते हैं।


ये हार्मोन गर्भधारण और प्रजनन के लिए आवश्यक हैं। लेकिन इनका एक प्रभाव स्तन के उत्तकों में लगातार उत्तेजना भी उत्पन्न करता है यानी ब्रेस्ट टिश्यू पर लगातार स्टिमुलेशन डालता है। ऐसे में जब मेनोपॉज़ जल्दी होता है तो यह हार्मोनल स्टिमुलेशन जल्दी समाप्त हो जाता है।


लेकिन जब मेनोपॉज़ देर से होता है (late menopause यानी 55 साल के बाद) तो महिला का शरीर लंबे समय तक इन हार्मोनों के संपर्क में रहता है। और ये हॉर्मोन स्तन की कोशिकाओं में अनावश्यक वृद्धि का कारण बनते हैं, जो बढ़ते-बढ़ते कैंसर का रूप ले सकती है।


अमेरिकन कैंसर सोसायटी द्वारा किए गए एक शोध (American Cancer Society और The Lancet Oncology में प्रकाशित अध्ययन) में यह सामने आया कि हर एक साल देरी से होने वाला मेनोपॉज़, ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क लगभग 2–3% बढ़ा देता है।


यही कारण है कि जिन महिलाओं का मेनोपॉज़ देर से होता है, उनमें ब्रेस्ट कैंसर, एंडोमेट्रियल कैंसर और ओवरी कैंसर का खतरा अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है।


सरल शब्दों में कहें तो जितना लंबा reproductive lifespan (पहले पीरियड से लेकर मेनोपॉज़ तक का समय) होगा, उतना अधिक हार्मोनल exposure होगा और उतना ही अधिक स्तन कैंसर का खतरा।


ब्रेस्ट कैंसर से कैसे बचें?

डॉक्टर कनिका ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए उम्र के अनुसार, समय-समय पर कुछ जरूरी टेस्ट कराने और दिनचर्या में कुछ आवश्यक सुधार करने का सुझाव देती हैं। इनका कहना है कि उम्र और रिस्क फैक्टर के हिसाब से कुछ ज़रूरी टेस्ट और स्क्रीनिंग होती हैं। जैसें...


Breast Self-Examination (BSE) यानी स्तन की स्वयं जांच करना। हर महिला को 20 साल की उम्र से ही महीने में एक बार (पीरियड खत्म होने के 5 से 7 दिन बाद) अपने स्तन खुद जाँचने चाहिए। देखना चाहिए कि कहीं कोई गांठ, मोटापन, त्वचा में बदलाव या निप्पल से डिस्चार्ज जैसी समस्या तो नहीं हो रही है।


Clinical Breast Examination (CBE) यानी डॉक्टर द्वारा किया जाने वाला स्तन परीक्षण। हर महिला को 20 से 40 साल की उम्र में हर 3 साल में एक बार और 40 की उम्र के बाद हर साल एक बार यह टेस्ट जरूर कराना चाहिए।


Mammography (मैमोग्राम) यह सबसे सटीक स्क्रीनिंग है और 40 से 44 साल की महिलाएं चाहें तो सालाना मैमोग्राम शुरू कर सकती हैं। वहीं, 45 से 54 साल की महिलाओं को हर साल ज़रूर मैमोग्राम कराना चाहिए। इसके बाद 55 साल उम्र होने पर हर 2 साल में यह टेस्ट कराना चाहिए।


अल्ट्रासाउंड या एमआरआई भी इसकी जांच में सहायक हो सकते हैं। अगर किसी महिला की फैमिली हिस्ट्री है (जैसे मां या बहन को ब्रेस्ट कैंसर हुआ हो) या BRCA gene mutation का खतरा हो तो डॉक्टर MRI और अल्ट्रासाउंड भी करवाने की सलाह देते हैं।


महिलाओं को क्या सतर्कता बरतनी चाहिए?

ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के लिए कुछ दैनिक जीवन से जुड़ी कुछ जरूरी बातें...

वज़न नियंत्रित रखें – मोटापा, खासकर मेनोपॉज़ के बाद, कैंसर का खतरा बढ़ाता है।

नियमित व्यायाम करें – हफ्ते में कम से कम 150 मिनट वॉक या एक्सरसाइज़।

संतुलित डाइट – फल, सब्ज़ियां, फाइबर युक्त अनाज, और कम प्रोसेस्ड फूड।

अल्कोहल और स्मोकिंग से बचें – ये सीधे ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क से जुड़े हैं।

ब्रेस्टफीडिंग – जो महिलाएं बच्चों को लंबे समय तक स्तनपान कराती हैं, उनमें रिस्क कम पाया गया है। हालांकि इस बात को लेकर अलग-अलग राय देखने को मिलती है।

हार्मोन थेरेपी का ध्यान – मेनोपॉज़ के दौरान ली जाने वाली हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT) को डॉक्टर की सख्त निगरानी में ही लें।

फैमिली हिस्ट्री पर ध्यान – अगर परिवार में किसी को ब्रेस्ट या ओवरी कैंसर हुआ है तो डॉक्टर से Genetic Counseling और BRCA testing करवाएं।

डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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