
फेफड़ों के संक्रमण में जान बचाता है रक्त का थक्का, शोध ने दी नई दिशा
रिसर्च में चौंकाने वाली बात सामने आई कि फेफड़ों के अंदर बनने वाला हर क्लॉट बुरा नहीं होता। बल्कि कुछ थक्के फेफड़ों के लिए सुरक्षा कवच बनकर जान बचाते हैं...
शरीर में जब कोई गंभीर इन्फेक्शन फैल जाता है और इम्यून सिस्टम नियंत्रण खो देता है, तब शरीर अपने ही अंगों पर हमला करने लगता है। इसी स्थिति को सीप्सिस कहते हैं। यह तेज़ी से बिगड़ती है और समय पर इलाज न मिले तो जानलेवा भी हो सकती है।
सीप्सिस के मुख्य लक्षण
सीप्सिस के लक्षण अचानक या धीरे-धीरे दोनों तरह से दिख सकते हैं। अक्सर लोग साधारण बुखार समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, इसलिए इन्हें पहचानना बहुत ज़रूरी है।
1. तेज़ बुखार या बहुत कम तापमान। शरीर का तापमान 101°F से ऊपर या तापमान असामान्य रूप से बहुत कम हो जाना।
2. दिल की धड़कन बहुत तेज़ होना। हार्ट रेट 90 से अधिक और बेचैनी जैसी महसूस होना।
3. बहुत तेज सांस लेना या सांस लेने में समस्या होना। बहुत जल्दी-जल्दी सांस लेना, सांस उखड़ना, ऑक्सीजन स्तर गिरना।
4. कंफ्यूजन या ध्यान भटकना। दिमाग सुस्त पड़ना, चक्कर आना, बातचीत करने में उलझन होना।
5. ब्लड प्रेशर गिरना, BP बहुत कम हो जाना। शरीर ठंडा और पसीने से भरा महसूस होना, यह सेप्टिक शॉक का संकेत हो सकता है।
6. पेशाब कम होना। दिनभर में बहुत कम पेशाब आना। किडनी प्रभावित होने का संकेत।
7. त्वचा में बदलाव। त्वचा का पीला या नीला पड़ना, चिपचिपी या बहुत ठंडी त्वचा। रैशेस होना।
सीप्सिस के मुख्य कारण
सीप्सिस किसी भी छोटे-बड़े इन्फेक्शन से शुरू हो सकता है। लेकिन कुछ खास जगहों के इन्फेक्शन से इसका खतरा अधिक होता है। जैसे...
1. फेफड़ों का इन्फेक्शन निमोनिया (Pneumonia सीप्सिस का सबसे आम कारण। बैक्टीरिया या वायरस से फेफड़ों में सूजन।
2. यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI)। खासकर बुज़ुर्गों और महिलाओं में किडनी तक इन्फेक्शन फैल जाए तो खतरा बढ़ जाता है
3. पेट का संक्रमण। अपेंडिक्स फटना। लीवर या गॉल ब्लैडर का इन्फेक्शन। आंतों में छेद।
4. त्वचा या घाव का इन्फेक्शन। जलने वाले घाव। कट या चोट में पस बनना। सर्जरी के बाद संक्रमण।
5. ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन (रक्त में इन्फेक्शन)। किसी भी बैक्टीरिया या फंगस का सीधे खून में जाना। यह सबसे तेज़ी से सीप्सिस बना सकता है।
किसे सीप्सिस का खतरा अधिक होता है?
बहुत छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों में।
कमजोर इम्यून सिस्टम वाले (कैंसर, HIV, स्टेरॉइड दवाओं का सेवन)
डायबिटीज़
लंबे समय से अस्पताल में भर्ती मरीज
बड़े ऑपरेशन के बाद मरीज।
हर थक्का बुरा नहीं होता
यह बात हम सभी जानते हैं कि सीप्सिस (Sepsis) एक बहुत गंभीर स्थिति होती है। शरीर में जब बहुत तेज़ इंफेक्शन फैलता है तो हमारा इम्यून सिस्टम दुश्मन को मारने के जोश में इतना उग्र हो जाता है कि खुद हमारे अंगों को चोट पहुंचाने लगता है। इसमें सबसे पहले और सबसे अधिक प्रभावित होते हैं फेफड़े (lungs)।
लेकिन इस नई रिसर्च ने एक चौंकाने वाली बात बताई कि फेफड़ों के अंदर बनने वाला छोटा-सा थक्का (clot) वास्तव में उन्हें बचा भी सकता है। यानी हर थक्का बुरा नहीं होता। बल्कि कुछ क्लॉट फेफड़ों के लिए सुरक्षा कवच बन जाते हैं। आइए इसे बहुत आसान भाषा में समझते हैं...
सीप्सिस में अंदर क्या होता है?
जब शरीर को बड़ा संक्रमण पकड़ लेता है और तब इम्यून सिस्टम फटाफट केमिकल सिग्नल छोड़ता है। इससे खून की नलियों में बहुत सूजन आती है और नलियां लीक करने लगती हैं इससे फेफड़ों के भीतर पानी भरने लगता है और गैस एक्सचेंज रुक जाता है। इसी वजह से कई मरीज एक्यूट लंग इंजरी (ALI) तक पहुंच जाते हैं। जहां सांस लेना ही मुश्किल हो जाता है।
थक्का कैसे काम करता है?
अब सवाल यह उठता है कि फेफड़ों को बचाने वाला यह “थक्का” क्या है? और कैसे काम करता है? तो आइए रिसर्च में क्या पाया गया, इसे एक कहानी की तरह समझते हैं... शोधकर्ताओं ने चूहों (mice) में तीन तरीकों से लंग इंजरी पैदा की...
LPS नाम का बैक्टीरियल टॉक्सिन देकर
खून में microbeads डालकर
CLP नाम की सेप्सिस प्रक्रिया से
ये स्थिति है सबसे सही
इसके बाद उन्होंने देखा कि फेफड़ों में कितना clot बन रहा है और इसका असर क्या पड़ रहा है। और यहीं से कहानी उलट गई। क्योंकि इसकी तीन स्थितियां देखी गईं...
1. बहुत ज्यादा क्लोटिंग,फेफड़े बुरी तरह खराब होना। यह वही स्थिति है, जिसे हम thrombosis से जोड़ते हैं। जहां थक्का खतरनाक हो जाते हैं।
2. बहुत कम थक्के या प्लेटलेट कम, फिर भी फेफड़े खराब होना। यह इसलिए क्योंकि कोई “प्रोटेक्शन लेयर” ही नहीं बचती।
3. मॉडरेट क्लोटिंग अर्थात “थोड़ा-सा थक्का जमना”। फेफड़ों को बचाता हुआ देखा गया यही इस स्टडी का सबसे अनोखा पॉइंट है। अर्थात फेफड़ों को चोट से बचाने के लिए हल्का-सा क्लॉट आवश्यक हो सकता है।
उदाहरण के तौर पर यह फेफड़ों के लिए इसी तरह काम करता है, जैसे बाइक सवार के लिए हेलमेट होता है। यदि ये हेलमेट बहुत भारी हो तो गर्दन पर बोझ बढ़ जाता है और यदि हेलमेट हो ही नहीं तो किसी दुर्घटना में सिर का बचना लगभग असंभव है।
ये एंजाइम है असली हीरो
फेफड़ों की सबसे अंदर की लाइनिंग अर्थात एन्डोथीलियल कोशिकाएँ(endothelial cells), में एक छोटा-सा एंजाइम पाया जाता है, जिसे ALOX15 या एराकिडोनेट 15-लिपऑक्सीजनेज़ (Arachidonate 15-lipoxygenase) कहा जाता है।
सुरक्षा देने में इस एंजाइम की भूमिका बेहद बड़ी है। यह खास तरह के लिपिड बनाता है, जो फेफड़ों की नलियों को स्थिर रखते हैं और नलियों को टूटने से रोकते हैं। साथ ही सूजन को कंट्रोल करते हैं और फेफड़े को “प्रोटेक्टिव क्लॉट” बनाने में मदद करते हैं। जब शोधकर्ताओं ने इन लिपिड्स को बीमारी से ग्रस्त चूहों में दिया तो उनके फेफड़ों में हुईं दरारें (endothelial damage) कम हो गईं और वे जल्दी ठीक होने लगे।
मानव फेफड़ों में क्या मिला?
जब ARDS से मरने वाले कुछ मरीजों के फेफड़े जांचे गए। तो पता चला कि ALOX15 एंजाइम्स बनाने वाली कोशिकाओं की संख्या बहुत कम थीं। अर्थात शरीर के अंदर का “प्रोटेक्शन सिस्टम” ही टूट चुका था। इसी कारण फेफड़ों की नलियां बार-बार क्षतिग्रस्त हो रही थीं। अर्थात जिन कोशिकाओं को सुरक्षा कवच बनाना चाहिए था, वह बीमारी में गायब हो गईं थीं।
साफ हुई भविष्य की राह
इस शोध से यह बात साफ हो चुकी है कि भविष्य में हमें इस स्थिति से निपटने के लिए किस तरह की दवाई की आवश्यकता होगी। रिसर्च के अनुसार भविष्य में दो तरह की थैरेपी आ सकती हैं...
पहली है ALOX15 को बढ़ाने वाली दवा। जिससे फेफड़े खुद अपना प्रोटेक्टिव कवच बना सकें।
दूसरी है, बाहर से दिए जाने वाले ALOX15-आधारित प्रोटेक्टिव लिपिड। जो नकली सुरक्षा कवच की तरह फेफड़ों को तुरंत बचा लें।
ये दोनों ही उपाय विशेष रूप से उन मरीजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे, जिनमें प्लेटलेट्स कम रहते हैं। या जिन्हें सीप्सिस का ज्यादा जोखिम है। साथ ही जिनके फेफड़ों की नलियां पहले से कमजोर हैं या जिनमें ARDS तेजी से बढ़ रहा है।
शोध से मिली सीख
अब तक हम यह मानते आए थे कि रक्त का थक्का (clot) अर्थात जीवन का संकट। लेकिन यह स्टडी बता रही है कि शरीर में बनने वाला हर क्लॉट बुरा नहीं होता। कभी-कभी वही clot फेफड़ों को टूटने से बचा लेता है। और सीप्सिस जैसी जटिल बीमारी में मॉडरेट क्लॉटिंग + ऐक्टिव ALOX15 फेफड़ों के लिए एक चमत्कारिक सुरक्षा हो सकती है। यह अभी शुरुआती शोध है लेकिन बेहद उम्मीद जगाने वाला है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

