कैंसर रिसर्च में AI की नई भूमिका, भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में हो रही नई शुरुआत
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प्रोफेसर एमके दत्ता, खालिद रज़ा और रघुनाथन रेंगस्वामी भारत के शैक्षणिक संस्थानों में हो रही एक शांत क्रांति का हिस्सा हैं, जहां कैंसर रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए एआई का तेजी से उपयोग किया जा रहा है।

कैंसर रिसर्च में AI की नई भूमिका, भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में हो रही नई शुरुआत

AI‑आधारित शोध भारत में तेजी से बढ़ रहा है, विशेषकर कैंसर की पहचान और इलाज की दिशा में। लेकिन छोटे शहरों मे सुविधा, टेस्ट लागत की चुनौतियां भी हैं।


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अक्टूबर ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता का महीना है। ऐसे में जामिया मिलिया इस्लामिया के खालिद रज़ा और उनकी टीम कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उनका मकसद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग कर ऐसा ड्रग डिज़ाइन करना है, जिससे इस वैश्विक बीमारी से लड़ने में मदद मिले। कंप्यूटर साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर खालिद रज़ा को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से 94 लाख रुपए की अनुदान मिली है। यह शोध तीन साल का है और इसमें उनका खुद का पेटेंट किया हुआ कम्पाउंड ‘DdpMPyPEPhU’ शामिल है।

AI कैसे कर रहा मदद?

रज़ा ने कहा कि वे जेनरेटिव AI इस्तेमाल कर ड्रग अणु तैयार कर रहे हैं कि वे उन प्रोटीन टारगेट्स से सटीक बाइंडिंग करें, जो ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि बाज़ार में मौजूद कई दवाएं समान प्रोटीन पर काम करती हैं, लेकिन AI की सहायता से ज़्यादा उच्च सटीकता प्राप्त हो सकती है, यानी यह पता चलेगा कि ड्रग को प्रोटीन की किस बिंदु पर बांधना है।

पथरी‑मॉडल पर परीक्षण और साझेदारी

इस प्रोजेक्ट में AIIMS भी सहभागी है। नई दवा कम्पाउंड को PDX माउस मॉडल (जहां कैंसर ट्यूमर का टिश्यू माउस में प्रत्यारोपित किया जाता है) पर परीक्षण किया जाना है। रज़ा ने कहा कि AI सिर्फ ड्रग डिज़ाइन के लिए नहीं है, बल्कि यह यह समझने में भी मदद करेगा कि जीन अभिव्यक्ति (gene expression) या म्यूटेशन कैसे रोग को जन्म देते हैं। विभिन्न जैविक मार्ग (biological pathways) कैसे प्रभावित हो रहे हैं और रोग कैसे बढ़ रहा है — ये जानना इलाज के लिए बहुत ज़रूरी है।

अन्य शिक्षण संस्थाएं भी पीछे नहीं

IIT मद्रास (IIT‑M)

IIT‑M ने ‘PIVOT’ नामक एक AI‑आधारित उपकरण विकसित किया है, जो जीन डेटा से कैंसर‑कारक जीन पहचानता है। इसने तीन प्रकार के कैंसर पर पूर्वानुमान मॉडल तैयार किए हैं: ब्रेस्ट इनवेसिव कार्सिनोमा, कोलन एडेनोकार्सिनोमा और लंग एडेनोकार्सिनोमा। ये मॉडल जीन म्यूटेशन, जीन की अभिव्यक्ति, कॉपी नंबर वेरिएशन आदि डेटा का इस्तेमाल करते हैं।

Amity यूनिवर्सिटी

Amity यूनिवर्सिटी की AI लैब पर्सनलाइज़्ड कैंसर डिटेक्शन को सस्ते दामों पर आम जनता तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। Tier‑II / Tier‑III शहरों में मैमोग्राम, पाप स्मीयर जैसी सुविधाएँ महंगी या कम उपलब्ध हैं। AI‑मॉडल के जरिये सिर्फ एक रक्त परीक्षण + कुछ डेमोग्राफिक जानकारी से पता चलेगा कि स्वास्थ्य है या कौन सी ग्रेड का कैंसर हो सकता है। इस मॉडल की सटीकता लगभग 98% बताई जा रही है।

IIITH (हैदराबाद)

IIITH के शोधकर्ताओं ने किडनी कैंसर (renal cancer) को पहचानने, उपप्रकार (subtype) दर्ज करने और रोगी की उम्मीद‑ज़िंदगी (survival outcome) का अनुमान लगाने वाला मशीन लर्निंग मॉडल तैयार किया है। ये मॉडल डिजिटल हिस्टोपैथोलॉजिकल इमेजेज़ का उपयोग करता है और 90% से अधिक सटीकता से कैंसर ट्यूमर की पहचान करता है, तथा उपप्रकारों को लगभग 94% सटीकता से वर्गीकृत करता है।

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