Delhi AIIMS anesthesia department anesthesiologist Yudhyavir Singh
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दिल्ली एम्स के डॉक्टर से जानें एनेस्थिसिया से जुड़ी सभी जरूरी बातें

सर्जरी कराने से पहले एनेस्थिसिया के बारे में जरूर जानें ये बातें?

दिल्ली एम्स के सीनियर डॉक्टर ने बताया कि सिजेरियन से लेकर सर्जरी तक हर जगह महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एनेस्थिसियोलॉजिस्ट इतने गुमनाम क्यों रह जाते हैं...


Importance Of Anesthesia: चिकित्सा की दुनिया में एनेस्थिसिया एक ऐसा विभाग है, जिसे अंडरवैल्यूड कहा जा सकता है यानी इस विभाग को उतना महत्व और प्रसिद्धि नहीं मिल पाई है, जितनी की मिलनी चाहिए थी। और इसके बारे में लोगों में जानकारी का भी खासा अभाव देखने को है। हालांकि ये विभाग और इसमें काम करने वाले डॉक्टर्स का रोल किसी व्यक्ति के जीवन में जन्म से लेकर किसी भी शल्य चिकित्सा (सर्जरी) या दुर्घटना (एक्सिडेंट) होने की स्थिति में बहुत अहम होता है। एनेस्थिसिया देने वाले डॉक्टर्स को एनेस्थिसियोलॉजिस्ट कहते हैं। अर्थात वो डॉक्टर जो मरीज को डिलीवरी या सर्जरी से पहले बेहोश करने या उसके शरीर के किसी खास हिस्से को सुन्न करने का काम करते हैं। दिल्ली एम्स के सीनियर एनेस्थिसियोलॉजिस्ट डॉक्टर युद्धवीर सिंह ने इस बारे में कई जरूरी बातें साझा कीं...

सर्जरी या डिलिवरी में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट का रोल

किसी भी मरीज को ट्रीट करने से पहले हम इस बात पर विशेष ध्यान देते हैं कि मरीज की स्थिति के अनुसार उसे एयर-वे यानी सांस के रास्ते दवाई देनी है या आईवी यानी नस के माध्यम से दवाई देंगे। जब रीढ़ की हड्डी के रास्ते (स्पाइनल ब्लॉक) दवाई देने में कोई दिक्कत होती है तो नाक या मुंह (एयर-वे) के द्वारा ट्यूब लगाते हैं। फिर देखते हैं कि सांसों की गति को (ब्रीदिंग) कैसे स्थिर रखेंगे। ब्लड देना या फ्लूइड देना है, जो भी देना है, उसका स्तर बनाए रखने के तरीकों पर ध्यान देना होता है क्योंकि ये हर रोगी की स्थिति पर निर्भर करता है।

गर्दन, नाक, गला चेक करते हैं, नाड़ी देखते हैं (वेन कैल्कुलेशन) देखते हैं। फिर मरीज की डिजीज हिस्ट्री देखते हैं और फिर ये देखना होता है कि किस तरह की दवाएं कितने लंबे समय तक चली हैं, अभी कौन-सी बीमारी है, जिसका इलाज होना है, उस बीमारी के साथ ही कोई दूसरी बीमारी तो नहीं है, उससे जुड़ी। अगर है तो उससे जुड़ी जानकारी लेते हैं। इनमें भी ध्यान रखना होता है कि क्या पहले कोई सर्जरी या कोई गंभीर बीमारी हुई हो, जन्म के समय से या बचपन से तो कोई बीमारी नहीं है, इत्यादि।

ये सब देखने के बाद फिर नंबर आता है वर्तमान मेडिकल रिपोर्ट्स का। जरूरी होने पर दिल के डॉक्टर यानी कार्डियोलॉजिस्ट या फेफड़ों के डॉक्टर यानी पल्मो एक्सपर्ट से चर्चा करके बीमारी की गहन जानकारी लेते हैं। फिर रोगी का उपचार शुरू किया जाता है और सर्जरी के बाद की स्थिति सही बनी रहे, रोगी की हीलिंग ठीक से हो यानी सर्जरी के बाद घावों को भरने में, दर्द को खत्म होने में और कमजोरी दूर होने में सामान्य रूप से जितना समय लगना चाहिए, उतना ही लग रहा है या ज्यादा समय लग रहा है। अगर समय अधिक लग रहा है तो इसका कारण क्या है, इस पर ध्यान देने में भी एनेस्थिसियोलॉजिस्ट का फीडबैक महत्वपूर्ण होता है। इस तरह मरीज की सर्जरी की शुरुआत से लेकर उसके पूरी तरह ठीक होने तक एनेस्थिसियोलॉजिस्ट की एक अहम भूमिका होती है।

एनेस्थिसिया डॉक्टर के बारे में ज्यादा लोग क्यों नहीं जानते?

डॉक्टर्स के बारे में एक आम धारण है कि वो किसी एक डिपार्टमेंट को संभालते हैं। जैसे, कोई आंखों का डॉक्टर है, कोई फिजिशियन है या कोई बाल रोग विशेषज्ञ। साथ ही डॉक्टर्स हैं तो स्टेथोस्कोप लेकर मिलेंगे, जबकि हमारे यहां ऐसा कुछ होता नहीं है। साथ ही एनेस्थिसिया एक्सपर्ट्स का मरीज से सीधा संपर्क नहीं होता है। इसलिए भी लोगों को एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के बारे में कम जानकारी होती है।

एनेस्थेसिया से जान का खतरा

हमने डॉक्टर सिंह से पूछा कि एनेस्थेसिया के कारण मरीज की जान भी जा सकती है क्या? इस पर डॉक्टर सिंह कहते हैं कि एनेस्थेसिया के कारण ऐसा नहीं होता है लेकिन इससे जुड़ी जो बाकी स्थितिया हैं, उनके कारण ऐसा हो सकता है। जैसे, ड्रग की कंसिस्टेंसी, क्योंकि इससे पूरी कैल्कुलेशन गड़बड़ा सकती है। आसान भाषा में कहें तो हमारे पास कंपनी से जो दवाई आई है, अगर वो हमेशा मिलने वाली दवाई से अधिक गाढ़ी आ गई तो एनेस्थिसियोलॉजिस्ट को बहुत सावधानी से उस दवाई की मात्रा को लेकर उसकी सघनता को उस स्तर पर लाना होगा, जहां वो दवाई मरीज को दी जा सके। अगर इस गणना में कहीं कोई चूक हुई तब दिक्कत हो सकती है। यानी दवाई की गुणवत्ता और एनेस्थिसियोलॉजिस्ट की दक्षता दोनों का सही होना आवश्यक होता है।

एनेस्थेसिया की ड्रग्स बॉडी के फंक्शन को सप्रेस करती हैं। ये ड्रग रैपिड ऐक्टिंग होती है। मतलब तुरंत असर दिखाने वाली, जो दिल की धड़कन वगैरह को नियंत्रित करती है। अगर दवाई की सघनता (कंसिस्टेंसी) ज्यादा है तो डोज गड़बड़ा जाती है। या दवाई में किसी तरह के फंगस, बैक्टीरिया पनप गए हैं यानी ड्रग कॉन्टेमिनेट हो गई तब दिक्कत हो जाती है। या फिर किसी ड्रग के फैट इम्पल्सिफायर में दिकक्त हो गई तो भी मरीज को खतरा हो सकता है। कुल मिलाकर एनेस्थिसिया से मरीज की जान नहीं जाती है। यहां बताए गए किसी दूसरे कारण के चलते ऐसा हो सकता है।

सबसे ज्यादा मौत देखने वाले डॉक्टर्स

आपको ये जानकर हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि एनेस्थिसियोलॉजिस्ट वो डॉक्टर्स होते हैं, जो सबसे अधिक मौतें देखते हैं। क्योंकि पेशेंट लिवर, किडनी या हार्ट किसी भी अंग से जुड़ी बीमारी का इलाज करा रहा हो या सड़क दुर्घटना का कोई केस हो। अगर मरीज की मृत्यु हो जाती है तो उसे मृत घोषित करने से पहले लास्ट कमेंट एनेस्थिसियोलॉजिस्ट का ही लिया जाता है। ऐसे में मानवीय पहलू से देखें तो आखिर डॉक्टर्स भी तो इंसान ही होते हैं, ऐसी स्थिति में अपने मन और भावनाओं को संभालने के लिए ये क्या करते हैं?

इस बारे में डॉक्टर सिंह बताते हैं 'हम अपने हर पेशेंट को ठीक करने का पूरा प्रयास करते हैं। जो पेशेंट बहुत क्रिटिकल सिचुएशन में होते हैं, उन्हें बचाने के लिए भी हम हर संभव कोशिश करते हैं। लेकिन फिर भी अगर पेशेंट की जान चली जाती है तो दुख तो होता ही है। और जब पेशेंट कोई बच्चा या युवा होता है तो ये दुख कई गुना और बढ़ जाता है। मैं अपना अनुभव बता सकता हूं कि इतने साल मेडिकल फील्ड में बिताने के बाद भी कई बार ऐसा होता है, जब रात को बिस्तर पर लेटकर सोच रहा होता हूं कि आखिर और ऐसा क्या किया जा सकता था कि हम इस मरीज को बचा पाते!

कई बार ऐसा भी होता है कि किसी क्रिटिकल केस में हम बहुत प्रयास कर रहे होते हैं पेशेंट को लेकर और उम्मीद भी जागती है कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन किसी भी कारण से जब अचानक पेशेंट की जान चली जातीह है तो हमें भी नींद नहीं आ पाती। हम खुद में सोचते रहते हैं कि क्या कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई...फिर अपने विचारों को समेटकर सकारात्मक दिशा में लाते हैं और सोचते हैं कि आगे कभी कोई इस तरह का पेशेंट आए तो हम ऐसा और क्या कर सकते हैं कि ऐसी स्थिति ना आए...।

छोटे शहरों में सर्जरी

जब हमने डॉक्टर सिंह से जानना चाहा कि छोटे शहरों में बड़ी सर्जरी की व्यवस्था होने के बाद भी सक्सेस अपेक्षा के अनुसार क्यों नहीं दिखाई देती? इस पर युद्धवीर सिंह का उत्तर सोचने को बाध्य करता है। क्योंकि ये बातें एक पेशेंट और उसके परिवार के अधिकारों और जागरूकता से जुड़ी हैं। डॉक्टर सिंह कहते हैं 'छोटे शहरों या प्राइवेट हॉस्पिटल्स में होने वाली सर्जरीज में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के रोल को सही से समझते हुए अधिक महत्व दिए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि छोटी-सी लापरवाही भी सर्जरी का रिजल्ट प्रभावित करती है। एनेस्थिसियोलॉजिस्ट का रोल सर्जरी के शुरू होने के पहले से और रिकवरी पूरी होने तक लगातार बना रहता है। जबकि ज्यादातर हॉस्पिटल्स में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट अपॉइंट ही नहीं किए जाते, ऐसे में उनकी उपलब्धता हर समय संभव नहीं हो पाती। इसलिए पेशेंट के परिजनों के लिए आवश्यक है कि आप अपने डॉक्टर, सर्जन, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट, सभी के बारे में जानें और सर्जरी से पहले तथा सर्जरी के बाद सभी के सजेशन भी लें। सिर्फ सर्जरी होने तक ही नहीं बल्कि रिकवरी फेज़ में भी एनेस्थिसियोलॉजिस्ट का रिव्यू पेशेंट्स के परिजनों को जरूर लेना चाहिए। सर्जरी से जुड़ी इस बात पर ध्यान देने से सर्जरी के सक्सेस रेट और मरीजों के जल्दी स्वस्थ होने की दर, दोनों में ही सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा।'

(डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।)

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