
दिल्ली के सीनियर सायकाइट्रिस्ट ने बताया बच्चों में ऑटिज्म का कारण
जिन बच्चों को ऑटिज्म की समस्या होती है, उनके पैरेंट्स का दर्द शब्दों में बयां करना असंभव है! लेकिन यदि सही समय पर सही इलाज मिल जाए तो बच्चे की लाइफ संवर सकती है..
Autism Treatment And Therapy: आजकल ऑटिज्म (Autism) एक गंभीर मानसिक विकास संबंधी विकार बनकर सामने आ रहा है, जिसका असर बच्चों के संज्ञानात्मक, सामाजिक और संचार कौशल पर पड़ता है। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जो मुख्य रूप से बचपन में ही दिखने लगता है। लेकिन आखिर क्यों कुछ बच्चे ऑटिज्म का शिकार हो जाते हैं? क्या इसके लिए कोई विशेष कारण जिम्मेदार हैं? और क्या इससे बचाव या इलाज संभव है? इन सभी सवालों का जवाब विस्तार से दिया दिल्ली के सीनियर सायकाइट्रिस्ट डॉक्टर राजेश कुमार ने...
ऑटिज्म क्या है?
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चों के सामाजिक संपर्क, संचार और व्यवहार में असामान्यता देखी जाती है। इसका असर बच्चों के मानसिक विकास पर पड़ता है, जिससे वे सामान्य बातचीत, हाव-भाव और सामाजिक संबंधों को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं और इन पर अन्य बच्चों की तरह प्रतिक्रिया भी नहीं दे पाते हैं।
बच्चे ऑटिज्म का शिकार क्यों होते हैं?
डॉक्टर कुमार का मानना है कि ऑटिज्म के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें जेनेटिक, पर्यावरणीय और न्यूरोलॉजिकल फैक्टर शामिल हैं। हालांकि अब तक कोई एक निश्चित कारण सामने नहीं आया है। इसके साथ ही गर्भावस्था के दौरान मां को किसी प्रकार का संक्रमण (Infection), हाई ब्लड प्रेशर (High BP) डायबिटीज या अन्य जटिलताएं हों तब भी इससे बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ सकता है। इनके अतिरिक्त गर्भावस्था के दौरान प्रदूषित वातावरण, भारी धातु या रसायनों के संपर्क में आना भी ऑटिज्म को ट्रिगर कर सकता है।
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज्म के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं और हर बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं। मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं...
दूसरों के साथ बातचीत में रुचि न लेना
आँखों में आँखें डालकर बात न करना
भाषा और बोलने में देरी
हावभाव और इशारों को समझने में कठिनाई
बार-बार एक ही काम को दोहराना (Repetitive Behaviors)
सामाजिक मेल-जोल में परेशानी महसूस करना
अचानक गुस्सा आना या अजीब हरकतें करना
ऑटिज्म की जांच कैसे की जाती है?
ऑटिज्म का कोई निश्चित मेडिकल टेस्ट नहीं होता बल्कि इसके लक्षणों के आधार पर विशेषज्ञों द्वारा इसका निदान किया जाता है। आमतौर पर निम्नलिखित तरीकों से ऑटिज्म की पहचान की जाती है...
बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा प्राइमरी जांच
साइकोलॉजिकल और न्यूरोलॉजिकल टेस्टिंग
बच्चे के व्यवहार का अवलोकन
माता-पिता और शिक्षकों से फीडबैक लेना
क्या ऑटिज्म से बचाव संभव है?
ऑटिज्म से पूरी तरह बचाव संभव नहीं है, लेकिन कुछ सावधानियां बरतकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है।
गर्भावस्था के दौरान संतुलित और पोषणयुक्त आहार लें।
डॉक्टर की सलाह से नियमित हेल्थ चेकअप कराएं।
शराब, धूम्रपान और अन्य नशीली चीजों से बचें।
मानसिक तनाव से दूर रहें और योग-ध्यान करें।
ऑटिज्म एक जटिल न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। लेकिन सही समय पर पहचान और उपचार से बच्चों का जीवन सामान्य बनाया जा सकता है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज न करें और विशेषज्ञ की सलाह लें। प्यार, धैर्य और सही थेरेपी से ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे भी एक सफल जीवन जी सकते हैं। ऐसे बच्चों के लिए विशेष शिक्षण तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे वे बेहतर सीख सकें।
ऑटिज्म का ट्रीटमेंट
ऑटिज्म के ट्रीटमेंट पर बात करते हुए डॉक्टर कुमार कहते हैं कि 'इसका डायग्नोसिस साइकोलॉजिकल अस्समेंट के बाद किया जाता है। इसमें ये पता किया जाता है कि ऑटिज्म का स्तर क्या है, जैसे ये माइल्ड है, मॉडरेट है या सीवियर है। स्थिति पता चलने के बाद इसका मैनेजमेंट करना होता है। इसमें कई वैरायटी हैं और इसके सिंप्टम्स की रेंज भी बहुत बड़ी है। जैसे, सेंसरी प्रॉब्लम्स को दूर करने के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी होती है और स्पीच और लैंग्वेज प्रॉब्लम के लिए स्पीच थेरेपी दी जाती है। बहुत-से बच्चों में बिहेवियर से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के लिए अप्लाइड बिहेवियर एनालिसेस थेरेपी (एबीए) दी जाती है।
बहुत ज्यादा प्रॉब्लम होने पर एग्रेशन को रोकने के लिए मेडिसिन का उपयोग भी किया जाता है। हालांकि ऑटिज्म में दवाइयां बहुत कारगर नहीं होती हैं। लेकिन पेशेंट की कंडीशन के अनुसार कुछ सप्लिमेंट्स दिए जा सकते हैं, जो कि कंडीशन को इंप्रूव करने में मदद करते हैं। इस समस्या को पूरी तरह ठीक करने का दावा करने वाले लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है। क्योंकि कई पेशेंट्स इस तरह का दावा करने वाली ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं।'