
केरल में ‘ब्रेन ईटिंग अमीबा’ का कहर, दुनिया भर में फैला है संक्रमण
NCDC और राज्य स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर, बच्चों को तालाब-नदी में न जाने की सलाह; जलवायु परिवर्तन और गर्म पानी से बढ़ रहा संक्रमण.
Naegleria Fowleri Virus : केरल में दिमाग खाने वाले अमीबा (Naegleria fowleri) का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पिछले एक महीने में 6 लोगों की मौत हो चुकी है और अब तक 52 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है। संक्रमितों में 33 पुरुष और 19 महिलाएं शामिल हैं। मरीजों की उम्र 3 महीने से लेकर 91 वर्ष तक बताई जा रही है। ज्यादातर मामले मलप्पुरम, वायनाड और कोझिकोड जिलों से सामने आए हैं।
क्या है यह बीमारी?
इस संक्रमण को अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहा जाता है। यह नेगलेरिया फाउलेरी नामक अमीबा से होता है, जो नाक से शरीर में प्रवेश कर दिमाग तक पहुंचता है और मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट कर देता है।
संक्रमण के बाद 4 से 18 दिनों में गंभीर लक्षण दिखने लगते हैं और अधिकतर मामलों में मरीज की जान चली जाती है। मृत्यु दर लगभग 98% है, यानी हर 100 मरीजों में से 98 की मौत हो सकती है।
लक्षण क्या हैं?
शुरुआती लक्षण: सिरदर्द, बुखार, मतली और उल्टी। आगे चलकर: गर्दन अकड़ना, भ्रम, दौरे, मतिभ्रम और कोमा। कई बार बीमारी का पता चलते-चलते देर हो जाती है और मौत टल नहीं पाती।
क्यों कहते हैं इसे ‘ब्रेन ईटिंग अमीबा’?
यह अमीबा सीधे दिमाग की कोशिकाओं को खाता और नष्ट करता है। इससे एन्सेफलाइटिस यानी मस्तिष्क में सूजन हो जाती है। कोशिकाएं और ऊतक मरने लगते हैं, जिसके चलते मरीज की जान चली जाती है। इसी कारण इसे आम भाषा में ब्रेन ईटिंग अमीबा कहा जाता है।
बच्चों पर ज्यादा खतरा
विशेषज्ञों के अनुसार 10 से 18 साल के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि वे नदी-तालाब या बाढ़ के पानी में नहाने जाते हैं। सलाह दी गई है कि अभिभावक बच्चों को ऐसे जलस्रोतों में जाने से रोकें।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग की तैयारी
NCDC और राज्य स्वास्थ्य विभाग मिलकर निगरानी कर रहे हैं। ICMR लैब में पीसीआर तकनीक से जांच की जा रही है। कोझिकोड मेडिकल कॉलेज और अन्य अस्पतालों को अलर्ट पर रखा गया है। संक्रमित इलाकों में फीवर सर्वे, जागरूकता अभियान और पब्लिक वाटर सोर्स की क्लोरीनेशन शुरू।
स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि राज्य ने एन्सेफलाइटिस मरीजों की अनिवार्य जांच का प्रोटोकॉल बनाया है, जिससे समय रहते कई मरीजों की जान बचाई जा रही है।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ा खतरा
पहले यह संक्रमण जून-जुलाई में ज्यादा होता था, लेकिन इस साल अगस्त-सितंबर में भी मामले सामने आए। वैज्ञानिकों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की वजह से औसत तापमान 1–2 डिग्री बढ़ा है। पानी ज्यादा गर्म होने से अमीबा लंबे समय तक सक्रिय रहते हैं और इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं।
भारत और दुनिया में मामले
भारत में 2019 तक 17 मामले दर्ज हुए थे। कोरोना महामारी के बाद संक्रमणों में अचानक वृद्धि देखी गई। 2019 तक अमेरिका में 143 मामले मिले (139 की मौत), पाकिस्तान में 147, यूरोप में 24 और ऑस्ट्रेलिया में 19 मामले दर्ज हुए।
भारत में हरियाणा और उत्तर भारत के जलाशयों में भी इस अमीबा की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है।
बचाव ही सबसे बड़ा उपाय
गंदे जलस्रोतों, नदी-तालाब या बाढ़ के पानी में नहाने से बचें। बच्चों को खुले पानी में जाने से रोकें। पीने के पानी और कुओं की सफाई और क्लोरीनेशन सुनिश्चित करें। शुरुआती लक्षण पर तुरंत पीसीआर जांच कराएं।
इलाज संभव लेकिन चुनौतीपूर्ण
अभी तक इस बीमारी का कोई टीका या निश्चित दवा नहीं है। हालांकि, भारत में कुछ मरीजों को एंटीबायोटिक दवाओं के कॉम्बिनेशन से बचाया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, समय पर पहचान ही जान बचाने की सबसे बड़ी कुंजी है।