
नाइट शिफ्ट से बढ़ सकता है कैंसर का खतरा! जानें इसकी वजह
लगातार कई साल तक नाइट शिफ्ट में काम करना, कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। क्योंकि शरीर के अंदर बहुत कुछ ऐसा घटता है कि कैंसर सेल्स बढ़ने लगती हैं...
Cancer Risk And Circadian Clock: जिस तरह का डेटा सामने आ रहा है और जिस दर से कैंसर के मरीजों का ग्राफ बढ़ रहा है, इसे देखते हुए अब कैंसर एक्सपर्ट्स यह मानने को मजबूर हैं कि हमारी लाइफस्टाइल और आदतें हमें कैंसर की ओर धकेलती हैं। खासकर ऐसी आदतें, जो हमारी नींद को प्रभावित करती हैं, ये दीर्घकालीन कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। इसमें एक सबसे अनदेखा लेकिन महत्वपूर्ण खतरा है हमारे शरीर की आंतरिक घड़ी यानी सार्केडियन क्लॉक (Circadian Clock) का बिगड़ना। और ये बायलॉजिकल क्लॉक आर्टिफिशियल लाइट्स खासकर डिजिटल स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी के कारण तेजी से प्रभावित होती है।
कैंसर का रिस्क बढ़ा रही नाइट शिफ्ट!
कैंसर एक्सपर्ट्स (ऑन्कोलॉजिस्ट) का मानना है कि “शाम के समय नीली रोशनी से मस्तिष्क को यह भ्रम होता है कि दिन अभी खत्म नहीं हुआ है। इससे मेलाटोनिन हार्मोन का सीक्रेशन देर से होता है। मेलाटोनिन एक ऐसा हॉर्मोन है, जो नींद आने और नींद की क्वालिटी को बढ़ाने का काम करती है। यानी गहरी नींद का अर्थ है कि बॉडी में मेलाटोनिन का स्तर जरूरत के अनुसार हो रहा है। इसके अलावा मेलाटोनिन शरीर की कोशिकाओं (Body Cells) को हेल्दी रखने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जरूरी होती है।
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने माना है कि नाइट शिफ्ट में काम करने से बायलॉजिकल क्लॉक में गड़बड़ी आती है, जो कैंसर होने की संभावनाओं को बढ़ा सकती है। अलग-अलग कैंसर रिसर्च से पता चलता है कि मेलाटोनिन ट्यूमर के विकास को रोकने में भी मदद करता है। जब इसका स्तर लगातार कम रहता हैं तो शरीर में ऐसा वातावरण बन सकता है जहाँ कैंसर कोशिकाएं विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। रात की शिफ्ट में काम करने वालों में स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर के केस अधिक देखने को मिल रहे हैं।
बायलॉजिकल क्लॉक का महत्व
हमारी जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) DNA की रिपेयरिंग, हार्मोन रिलीज़ और कोशिका विभाजन को नियंत्रित करती है। इसका बिगड़ना शरीर में सूजन पैदा कर सकता है, बॉडी सेल्स की रिपेयरिंग की क्षमता कम कर सकता है। इससे हमारी इम्युनिटी कमजोर होती है और शरीर की असामान्य कोशिकाओं को पहचानने की क्षमता कम हो सकती है या खत्म भी हो सकती है, जिससे कैंसर का रिस्क बढ़ता है। दरअसल, हम सभी की बॉडी में कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाएं तो लगातार बनती रहती हैं लेकिन हमारे शरीर का डिफेंस मैकेनिज़म इन सेल्स को खत्म करता रहता है, जिससे शरीर कैंसर बचा रहता है। लेकिन जब ये डिफेंस मैकेनिज़म यानी इम्युनिटी कमजोर होने लगती है तो कैंसर जनित सेल्स की लगातार ग्रोथ का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है।
नींद की कमी और कैंसर का खतरा
नींद की खराब क्वालिटी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। सर्केडियन रिदम एक 24 घंटे का आंतरिक घड़ी है, जो ब्रेन में पर्यावरण की रोशनी के अनुसार जागरूकता और नींद के साइकिल को नियंत्रित करती है। बॉडी की इस नैचरल क्लॉक को मेलाटोनिन नामक हार्मोन नियंत्रित करता है, जो मस्तिष्क की पाइनियल ग्रंथि से बनता है।
शरीर की जैविक घड़ी, जो नींद और कई अन्य कार्यों को नियंत्रित करती है, स्तन, कोलन, अंडाशय और प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है। कई वर्षों तक रात की शिफ्ट में काम करते समय रोशनी के संपर्क में आने से मेलाटोनिन का स्तर घट सकता है, जिससे कैंसर बढ़ावा पा सकता है।
नींद की कमी इम्युनिटी को कमजोर करती है और शरीर में सूजन बढ़ाती है। कैंसर से जुड़ी कई अलग-अलग रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि शरीर में लगातार बढ़ी हुई ये सूजन कैंसर के रिस्क को काफी हद तक बढ़ा देती है।
बुजुर्गों में कैंसर का कारण
एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि लगातार कई साल तक नींद की खराब क्वालिटी का बने रहना, कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। इस स्टडी में 10 हजार लोगों को शामिल किया गया और इन पर नींद की क्वालिटी और कैंसर के खतरे के बीच कनेक्शन को जानने का प्रयास किया गया। रिसर्च में सामने आया कि बुजुर्गों में नींद की कमी, उनमें कैंसर के लॉन्ग टर्म रिस्क को बढ़ा देता है। यानी उनमें भविष्य में कैंसर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यह बात The English longitudinal study of ageing में सामने आई।
कैंसर और नींद आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। कैंसर के मरीजों को अक्सर मानसिक तनाव और उपचार के कारण नींद संबंधी समस्याएं भी होती हैं। इसलिए गहरी और हेल्दी नींद के लिए कुछ आदतें जैसे, रात में स्क्रीन का कम इस्तेमाल करना, सूर्यास्त के बाद रोशनी कम करना और सोने-जागने के लिए एक टाइम-टेबल अपनाना, केवल मेंटल क्लियरिटी और एनर्जी लेवल को ही नहीं बढ़ाता है। बल्कि कैंसर के खतरे को कम करने में भी महत्वपूर्ण हो सकता है। इसलिए अच्छी नींद का कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि ये हमारी बॉडी के लिए सबसे अच्छी इम्युनिटी बूस्टर और डिफेंस मैकेनिज़म है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।