हार्ट स्क्रीनिंग में नहीं दिखते ये साइलेंट लक्षण, रिस्क में 45 % लोग
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स्क्रीनिंग के बाद भी क्यों हार्ट अटैक के रिस्क में हैं 45 प्रतिशत लोग, जानें

हार्ट स्क्रीनिंग में नहीं दिखते ये साइलेंट लक्षण, रिस्क में 45 % लोग

हार्ट से जुड़ी बीमारियों की स्क्रीनिंग में करीब 45 प्रतिशत लोगों में हार्ट अटैक से पहले मिलने वाले “साइलेंट संकेत” पकड़ में नहीं आ पाते। ये रहे कारण...


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हार्ट अटैक को एक “अचानक” होने वाली घटना माना जाता है। लेकिन सच यह है कि शरीर महीनों या सालों पहले इसके संकेत देना शुरू कर देता है। बस हमारी जांच-प्रणालियां उन संकेतों को पकड़ नहीं पातीं। हाल ही द जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी (JACC: Advances) में प्रकाशित एक अध्ययन इसी कमी को उजागर करता है, जिसमें पाया गया कि आज उपयोग होने वाले कार्डियक स्क्रीनिंग टूल्स लगभग 45% जोखिम वाले लोगों को पहचानने में असफल हो जाते हैं। अब सवाल उठता है आख़िर ऐसा क्यों होता है? आइए इसे गहराई से समझते हैं।


1. रिस्क स्कोरिंग टूल्स शरीर के अंदर हो रही असली बीमारी को नहीं देख पाते

आज डॉक्टर जिस प्रमुख टूल का उपयोग करते हैं, वह है ASCVD रिस्क स्कोर, जो उम्र, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, धूम्रपान आदि के आधार पर यह अनुमान लगाता है कि अगले 10 वर्षों में हार्ट अटैक की संभावना कितनी है। लेकिन रिसर्च बताती है कि यह टूल सिर्फ बाहरी डेटा देखता है। खून में क्या चल रहा है, दवाओं का प्रभाव क्या है, आपकी धमनियों की वास्तविक अंदरूनी सेहत कैसी है, इसकी सीधी जानकारी इसमें नहीं मिलती।

इसी कारण, Mount Sinai Atherosclerosis Imaging Program (2025) के मुताबिक, जिन लोगों को बाद में हार्ट अटैक हुआ, उनमें से लगभग आधे लोगों को स्क्रीनिंग में “लो रिस्क” बताया गया था। यानी टूल ने खतरे को देखा ही नहीं क्योंकि अंदर जमा प्लाक की स्थिति इसमें शामिल नहीं की जाती।


2. PREVENT जैसे नए टूल भी 100% समाधान नहीं हैं

रिसर्चर्स ने PREVENT (एक नया और अधिक वेरिएबल्स वाला रिस्क मॉडल) भी जांचा। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले थे। क्योंकि 61% मरीज, जिन्हें बाद में हार्ट अटैक आया, PREVENT में भी लो या बॉर्डरलाइन रिस्क में थे। यह दिखाता है कि चाहे मॉडल कितना ही आधुनिक क्यों न हो, जब तक वह वास्तविक एथेरोस्क्लेरोसिस यानी धमनी की दीवारों पर जमा प्लाक को नहीं देखेगा, तब तक जोखिम को पूरी तरह पहचानना संभव ही नहीं।

3. देर से आते हैं ये लक्षण

हार्ट अटैक से ठीक पहले आने वाले लक्षण बेहद देर से आते हैं। शोध के अनुसार, लगभग 60% लोगों को हार्ट अटैक से सिर्फ 48 घंटे पहले लक्षण शुरू होते हैं। जैसे...

• छाती में अचानक दर्द

• सांस फूलना

• असहजता

• बांह या जबड़े में दर्द

अब सोचिए कि अगर लक्षण सिर्फ 2 दिन पहले दिखाई देते हैं तो नियमित जनरल चेकअप में इस रोग को पकड़ पाना कितना मुश्किल है। यही कारण है कि सिर्फ लक्षणों पर आधारित पहचान अपने-आप में पर्याप्त नहीं है।

4. यह है असली समस्या

असली समस्या “साइलेंट प्लाक” का बढ़ना है, जो बिना दर्द के बढ़ता है। हार्ट अटैक तब होता है जब धमनियों में जमा Atherosclerotic Plaque अचानक फट जाता है और खून का थक्का दिल तक पहुँचने वाली नली को बंद कर देता है।

समस्या यह है कियह प्लाक शांत,धीमे और बिना किसी दर्द के बढ़ता है। और किसी भी उम्र में बढ़ सकता है। यहां तक कि शुरुआती स्तर पर ये में खून की जांच में भी पकड़ नहीं आता। यही वजह है कि रिस्क स्कोर भले ही “नॉर्मल” बताएं लेकिन अंदर प्लाक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका हो।


5. एथेरोस्क्लेरोसिस इमेजिंग है जरूरी

रिसर्च का स्पष्ट संदेश है कि सिर्फ रिस्क स्कोर नहीं बल्कि एथेरोस्क्लेरोसिस इमेजिंग जरूरी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगली पीढ़ी की हृदय-जांच में प्राथमिकता धमनियों की वास्तविक तस्वीर को दी जानी चाहिए। इस दौरान इन पर विशेष ध्यान देना होगा। जैसे,

- सीएसी (Coronary Artery Calcium Score) CT scan धमनियों में जमा कैल्शियम की मात्रा बताता है, यह प्लाक का सबसे मजबूत संकेत माना जाता है।

- Carotid Ultrasound (IMT Test) गर्दन की धमनियों की मोटाई को मापता है। अमेरिका और यूरोप में इसे “early atherosclerosis marker” माना जाता है।

- CT Angio (उन्नत स्तर पर) धमनियों के “soft plaque” को भी देख सकता है, जिसे कैल्शियम स्कोर मिस कर सकता है। शोध बताता है कि इन इमेजिंग तकनीकों के उपयोग से हार्ट अटैक की पहचान सालों पहले की जा सकती है, जब हस्तक्षेप सबसे प्रभावी होता है।


6. बड़े स्तर पर क्या बदलेगा?

यह शोध पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को चुनौती देता है कि क्या हमारी स्क्रीनिंग प्रणाली आधुनिक बीमारियों की गति के अनुसार तैयार है? क्या सिर्फ कोलेस्ट्रॉल रिपोर्ट सही आना “सुरक्षित” होने का प्रमाण है? क्या धमनियों की इमेजिंग को नियमित हेल्थ चेकअप में शामिल करने का समय आ गया है? इनका उत्तर है-हां। क्योंकि डेटा साफ बताता है कि खतरा वहीं छिपा है, जहां आज हम देखते ही नहीं अर्थात धमनियों के भीतर।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें।


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