
ऐसे बच्चों को शिकार बनाते हैं अपराधी, माता-पिता को समझनी होगी ये बात
बच्चों से यौन हिंसा करने वाले अपराधियों ने अलग-अलग मामलों में स्वीकारा है कि ये उन बच्चों को निशाना बनाते हैं, जिनके माता-पिता में आत्मविश्वास की कमी होती है
Child Abuse Prevention Tips: घर से लेकर स्कूल तक और कुछ मामलों में कॉलेज तक भी, बड़ी संख्या में बच्चे चाइल्ड अब्यूज का शिकार होते हैं। इसमें मुख्य रूप से बच्चों का शारीरिक शोषण शामिल है, जिसके चलते बच्चे मानसिक और भावनात्मक रूप से भी घायल हो जाते हैं। इनकी प्रतिभा पर बुरा असर पड़ता है और कई मामलों में ये खुद भी अपराधी प्रवृत्ति के बन जाते हैं।
बच्चों के प्रति होने वाली हिंसा से जुड़ी अलग-अलग रिपोर्ट्स में ये बात साबित हो चुकी है कि बच्चे को शिकार बनाने वाला व्यक्ति 99 प्रतिशत केसेज में बच्चे का कोई परिचित ही होता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर क्या देखकर कोई अपराधी किसी बच्चे को अपना टारगेट बनाता है। ऐसे में सामने आते हैं दो मुख्य कारण, पहला- जिन बच्चों के माता-पिता में आत्मविश्वास की कमी दिखती है। दूसरा- जिन बच्चों की अपने माता-पिता से बॉन्डिंग कमजोर होती है। समस्या और इस समस्या का कारण पता चलने के बाद हमने दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के सीनियर चाइल्ड सायकाइट्रिस्ट डॉक्टर दीपक गुप्ता से जाना इनका समाधान...
परेशान करने वाला सवाल
बच्चों का यौन शोषण करना क्या वाकई इतना आसान है कि हर साल लाखों की संख्या में बेटे-बेटियां अपराधियों का शिकार बन जाते हैं! आखिर ये कैसे संभव हो पाता है, जबकि हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के ज्यादातर देशों में बच्चों को परिवार की निगरानी में रखा जाता है। नजर रखने की बात की जाए तो परिवार में बेटियों की सुरक्षा को लेकर अधिक सतर्कता बरती जाती है, फिर कैसे 20 साल की उम्र से पहले हर 10 में से 1 लड़की यौन हिंसा का शिकार हो जाती है? ये गिनती हम नहीं कह रहे बल्कि यूनिसेफ इंडिया के आंकड़े बता रहे हैं।
हालात यहां भी ठीक नहीं
दुनिया के सबसे विकसित राष्ट्र यूनाइटेड स्टेट्स की बात करें तो क्राइम अगेंस्ट चिल्ड्रन रिसर्च सेंटर ( Crimes Against Children Research Center) के डायरेक्टर डेविड फिनक्लर के अनुसार, हर 5 में से एक लड़की और हर 20 में से 1 लड़का बाल यौन शोषण का शिकार होते हैं। आमतौर पर अपराधी 7 से 13 साल के बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं। अमेरिका में ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जस्टिस की रिपोर्ट के अनुसार, इन्हीं छोटे बच्चों में हर 4 में से 3 बच्चों ने स्वीकार किया कि उनके साथ गलत हरकत करने वाला व्यक्ति वो है, जिसे वो पहले से जानते हैं।
कहां हो रही है गलती?
हमने ये आंकड़े आपको डराने के लिए नहीं बताएं हैं। बल्कि जागरूक करने और उन कमियों पर ध्यान दिलाने के लिए बताएं हैं, जिन्हें आमतौर पर ज्यादातर पैरेंट्स अनजाने में करते हैं। ये गलतियां कौन-सी हैं और इनसे कैसे बचें इस बारे में डॉक्टर दीपक गुप्ता कहते हैं, बच्चों को इस संकट से बचाने के लिए पैरेंट्स को ABCD फॉर्म्युला अपनाना होगा। साथ ही अपने लिए AAAA फॉर्म्युला पर काम करना होगा।
क्या है ABCD फॉर्म्युला?
A से अर्थ है अर्थ है अवेलेबिलिटी। यानी अपने बच्चे के लिए उपलब्ध होना। माता-पिता होने के नाते आपको हर दिन अपने बच्चे के साथ कुछ समय तो बिताना ही है। साथ ही जब आपके बच्चे को आपकी जरूरत हो तब भी आपको उसके लिए उपस्थित रहना होगा। आप इस बात का ध्यान रखेंगे तो बच्चे को आपके साथ जुड़ने में आसानी होगी और आप उसकी मासूम दुनिया का अहम हिस्सा बन पाएंगे। वो खुलकर आपसे अपनी बात कह पाएगा। इस फॉर्म्युला में ए सबसे अहम है क्योंकि बी सी और डी इसी की कड़िया हैं।
B से अर्थ है, बिलीव। अपने बच्चे पर विश्वास करें। जब वो कुछ अच्छा करे तो उसकी प्रशंसा करें। जब कुछ गलती कर दे तो प्यार से समझाएं। साथ ही ये भी बताएं कि जब आप छोटे थे तो आपने कोई गलती की थी तो आपके पापा-मम्मी ने आपको क्या समझाया था। ऐसे उदाहरण बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करते हैं, वो समझ पाता है कि वो अकेला नहीं है, जिससे गलती होती है, सभी करते हैं। उसे बताएं कि गलती करना बुरा नहीं है, जानबूझकर गलती करना बुरा है।
C से अर्थ है, कनेक्ट- कम्युनिकेट और कॉन्फिडेंस। ये काफी हद तक ए और बी में कवर हो चुके हैं। आप जब बच्चे से कनेक्ट करेंगे तो वो आपको अपने से जुड़ी हर बात बता पाएगा। जब आप उसे सलाह देंगे, समझाएंगे या कहेंगे कि आप उसके साथ हैं तो उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। ऐसे में कोई उसके साथ कुछ गलत हरकत करने का प्रयास करेगा तो वो पूरे आत्मविश्वास से उसका विरोध भी करेगा और आपसे अपनी बात भी कह पाएगा।
D का अर्थ है डिजिटल लिट्रेसी। आप बच्चे को मोबाइल, लैपटॉप या टीवी से दूर रखने का प्रयास ना करें। इससे भावनात्मक दिक्कतें हो सकती हैं और बच्चा चोरी-छिपे ये काम करने का प्रयास करेगा। इसकी जगह आप बच्चे को सोशल मीडिया से जुड़ी जानकारियां खुद दें। साथ ही साथ उसे इसके सही उपयोग के बारे में बताएं। समय-सीमा तय करें और समय-सीमा तय करने का कारण भी उसे बताएं जैसे, 'तुम अभी छोटे हो, तुम्हारी आंखें और ब्रेन अभी विकसित हो रहे हैं। ऐसे में स्क्रीन की रेज तुम्हारी आंखों पर बुरा असर डाल सकती है। ज्यादा देर उपयोग करने से तुम्हारे मस्तिष्क पर खराब असर होगा।' ऐसा नहीं है कि बच्चे ये बात नहीं समझ पाएंगे। ये निर्भर करता है आपके समझाने के तरीके पर। यदि आपको दिक्कत आए तो चाइल्ड सायकाइट्रिस्ट की मदद लेने में बिल्कुल ना हिचकें। आखिर ये बच्चे के भविष्य से जुड़ा है।
क्या है AAAA फॉर्म्युला?
डॉक्टर गु्प्ता कहते हैं कि ये फॉर्म्युला पैरेंट्स को खुद पर लागू करना है, बतौर अभिभावक खुद को ग्रूम करने के लिए। ताकि आपके बच्चे को निशाना बनाने से पहले अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की हिम्मत खुद ही टूट जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि मजबूत माता-पिता के बच्चों को ठेस पहुंचाने के बारे में अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी जल्दी से नहीं सोच पाते...
A- अवेयरनेस। सबसे पहले जागरूकता बढ़ाएं। देखें कि पैरेंट्स के तौर पर हमारा जो दायित्व है क्या हम उसे पूरी तरह निभा पा रहे हैं। यदि कहीं कोई कमी है तो उसे देखें, ऊपर बताए गए ABCD फॉर्म्युला को बच्चे के साथ अपने रिश्ते पर लागू करके विचार करें कि कहीं कोई कमी तो नहीं है।
A- एक्सेप्टेंस। केवल कमी जान लेना ही काफी नहीं है, उसे स्वीकार भी करना होता है। क्योंकि कमी जान लेना अलग बात है और ये स्वीकार कर पाना कि मुझमें ये कमी है ये हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है। लेकिन स्वीकार करेंगे तभी विकास संभव है।
A- एक्शन। जब कमी पता चल जाए तो उसे दूर करने का प्रयास करें। ग्रूमिंग क्लासेस जॉइन करें, पैरेंटिंग क्लास अटेंड करें। ये सब भी समझ ना आए तो अगेन आप चाइल्ड सायकाइट्रिस्ट की मदद लें। वहां से आपको पता चलेगा कि आपको किस दिशा में खुद पर काम करने की आवश्यकता है।
A- एक्नॉलिजमेंट। किसी भी सुधार या बदलाव के बाद जब सकारात्मक परिणाम मिले तो खुद की पीठ थपथपाने में कोई दिक्कत नहीं है। ये एक्नॉलिजमेंट आपको जीवन की अन्य दिशाओं में भी आगे बढ़ने और कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करेगा।
सच्चाई जो जाननी चाहिए
American Psychological Association की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है या जो बार-बार दूसरों पर निर्भर रहते हैं, जैसे कि दोस्त बनाने में कठिनाई, दूसरों से जल्दी डर जाना या ना कहने की हिम्मत न होना। ऐसे बच्चे साइकोलॉजिकल प्रीडेटर्स के लिए आसान शिकार बन जाते हैं।
University of Huddersfield (UK) के क्रिमिनोलॉजी डिपार्टमेंट की एक स्टडी में 27 बाल अपराधियों से बातचीत की गई, जिन्होंने बच्चों के साथ यौन शोषण या अपहरण जैसे अपराध किए थे। लगभग 70% अपराधियों ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने जानबूझकर ऐसे बच्चों को चुना, जो "अकेलेपन के शिकार", "कमज़ोर" या "डरे-सहमे" दिखाई देते थे। उनमें से एक अपराधी ने कहा – “अगर बच्चा आंख में आंख मिलाकर बात नहीं करता, डरते हुए बोलता है तो समझो कि वो आसान टारगेट है।”
साल 2018 में अमेरिका के Minnesota Child Abuse Center ने एक रिपोर्ट में बताया कि कई मामलों में बच्चों ने अपराधी से इसलिए दोस्ती कर ली थी क्योंकि उन्हें लगा – “कम से कम ये तो मेरी बात सुनता है।”
कई बार माता-पिता अपने व्यस्त जीवन या अपने ही तनावों के कारण बच्चों को पर्याप्त भावनात्मक सुरक्षा नहीं दे पाते। बच्चा जब बार-बार यह महसूस करता है कि उसकी भावनाओं को कोई समझ नहीं रहा, तब वह चुपचाप दुनिया से कटने लगता है। और ऐसे में अगर कोई बाहरी व्यक्ति उसकी बात सुने, थोड़ा सहानुभूति दिखाए तो बच्चा उसी की तरफ झुक जाता है, फिर चाहे उसकी नीयत कितनी भी खराब क्यों न हो।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।