मिल्क एलर्जी से परेशान बच्चों के लिए वैज्ञानिकों का आसान समाधन
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मिल्क एलर्जी से परेशान बच्चों के लिए आसान समाधान।

मिल्क एलर्जी से परेशान बच्चों के लिए वैज्ञानिकों का आसान समाधन

यह खोज दूध से एलर्जी वाले बच्चों और उनके परिवारों के लिए जीवन-परिवर्तनकारी है। क्योंकि अब ओरल इम्यूनोथेरेपी (OIT) अधिक प्रभावी और सुरक्षित भी बनाई जा सकती है


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मां जब बच्चे को दूध पिलाती है और बच्चा रोने लगे, पेट पकड़ ले, उल्टी कर दे तो दर्द सिर्फ बच्चे को नहीं होता बल्कि पूरे परिवार को होता है। दूध,जो दुनिया का सबसे पहला और सबसे पवित्र आहार माना जाता है, वही कुछ बच्चों के लिए सबसे बड़ा दर्द बन जाता है। इसे स्थिति को कहते हैं मिल्क एलर्जी (Milk Allergy)। अब तक इस एलर्जी का इलाज भी आसान नहीं था। क्योंकि इलाज के दौरान ही बच्चे को सबसे अधिक पीड़ा होती थी और बच्चे के साथ-साथ माता-पिता का दिल भी रोता था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ऐसा शोध किया है, जिसके माध्यम से बच्चों को बिना दर्द के दूध से होने वाले लाभ मिल सकते हैं...

यह है नया शोध

बच्चों में मिल्क एलर्जी और ओरल इम्यूनोथेरेपी (OIT) पर जिस नए शोध का उल्लेख किया गया है, वह कोई सामान्य स्टडी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय एलर्जी जर्नल Allergy में प्रकाशित एक निर्णायक शोध है। मिल्क एलर्जी (Milk Allergy) वाले बच्चों को ओरल इम्यूनोथेरेपी (OIT) दी जाती है। अर्थात शरीर को दूध की बहुत कम मात्रा देकर धीरे-धीरे इसकी आदत डालना, ताकि शरीर का सिस्टम दूध को दुश्मन न समझे। लेकिन पुराने प्रोटोकॉल में यही इलाज कई बच्चों के लिए और भारी पड़ रहा था। पेट में अधिक दर्द, लगातार उल्टी, भूख न लगना इत्यादि। डॉक्टर्स ने इन्हें प्रेरित जठरांत्रीय इओज़िनोफिलिक प्रतिक्रियाएं (OIT-induced gastrointestinal eosinophilic reactions (OITIGER) नाम दिया। इसका कारण है, शरीर में इओज़िनोफिल्स (eosinophils) नाम की इम्यून कोशिकाएं बहुत बढ़ जाती थीं और पाचन तंत्र में सूजन शुरू हो जाती थी।

वैज्ञानिकों ने उपचार नहीं विधि बदली

फिर वर्ष 2017 से 2021 के बीच वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कुछ परिवर्तन करने की ठानी ताकि समस्या का समाधान किया जा सके। हालांकि इसके लिए इलाज नहीं बदला बल्कि इसे दिए जाने का तरीका बदला। अर्थात इस दूध को प्रारंभ में कम मात्रा में दिया जाता है और धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ाई जाती है। और जैसे-जैसे डोज़ बढ़ती गई, शरीर को उसे अपनाने का समय मिलता गया।

नए और पुराने उपचार का प्रभाव

फिर 269 बच्चों के परिणामों की तुलना उन 604 बच्चों से की गई, जिन्हें पुराना तरीका अपनाकर उपचार दिया गया था और यहीं खेल बदल गया। क्योंकि दोनों ग्रुप्स में दूध एलर्जी वाली प्रतिक्रियाओं की दर लगभग समान रही। जैसे, नए प्रोटोकॉल के साथ 8.2% जो पुराने प्रोटोकॉल के साथ 9.1% थीं।

लेकिन असली जीत यहां छिपी थी कि कठोर पाचन संबंधी समस्याएं जैसे,एक महीने में 3+ बार उल्टी या गंभीर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परेशानी होना, से बच्चों को अत्यधिक राहत मिली। क्योंकि पुराने प्रोटोकॉल के साथ ये समस्याएं 72.7% तक दिखती थीं और इस नई विधि को अपनाने के बाद अब केवल 45.5% तक रह गईं।

अर्थात गंभीर पाचन साइड-इफेक्ट लगभग 70% कम हुए। वह भी केवल इसलिए क्योंकि थेरेपी की शुरुआत को पहले की तुलना में थोड़ा-सा परिवर्तित कर दिया गया। अब आप सोचिए कि उपचार नहीं बदला, दवाई नहीं बदली केवल विधि में बदलाव किया गया और पूरा अनुभव बदल गया।

रिसर्च ने दिखाई नई राह

यह रिसर्च दुनिया के लिए इस बात का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आई है कि कभी-कभी दर्द उपचार में नहीं बल्कि उसकी गति में छिपा होता है। आप कह सकते हैं कि नई रिसर्च का यह परिणाम आयुर्वेद के पुरातन सिद्धांतों से मेल खाता है।

यह नई खोज दूध से एलर्जी वाले बच्चों और उनके परिवारों के लिए जीवन-परिवर्तनकारी है। क्योंकि अब ओरल इम्यूनोथेरेपी (OIT) सिर्फ प्रभावी ही नहीं बल्कि अधिक सुरक्षित भी बनाई जा सकती है। वह भी कम दर्द, कम उल्टी, कम डर और अधिक उम्मीद के साथ।

हां, क्योंकि वैज्ञानिक मानते हैं कि यह अभी इस शोध का अंत नहीं है। बल्कि लंबी अवधि में यह थेरेपी क्या परिणाम देगी, उस पर और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है।

जो साझा किया गया है, यह रिसर्च का पहला निर्णायक कदम है, जिसने दुनिया को दिखाया कि दूध एलर्जी की लड़ाई हारने के लिए नहीं, जीतने के लिए बनाई गई है। और शायद यही वैज्ञानिक प्रगति की सबसे सुंदर बात है कि कभी-कभी उपचार शरीर को बदलने से नहीं, उसकी समस्या को समझने से शुरू होता है।

बच्चों में मिल्क एलर्जी के शुरुआती संकेत

बच्चे दूध पीने के 10–30 मिनट बाद आमतौर पर ये प्रतिक्रियाएं दिखा सकते हैं...

लगातार उल्टी या तेज पेट दर्द

गैस या दस्त

दूध पीने पर अचानक रोना या बेचैनी

त्वचा पर रैशेज़ या खुजली

होंठ, आंखों या चेहरा सूज जाना

दूध पीते ही खांसी, आवाज भारी पड़ना या सांस रुकने जैसा लगना

वजन न बढ़ना और भूख कम होना

मिल्क एलर्जी और लैक्टोज इन्टॉलरेंस में अंतर अवश्य समझें

अधिकतर माता-पिता इन दोनों को एक जैसा मान लेते हैं लेकिन ये दोनों बिल्कुल अलग हैं।

मिल्क एलर्जी- इसमें इम्यून सिस्टम दूध के प्रोटीन पर हमला करता है

लैक्टोज इन्टॉलरेंस- इसमें पेट लैक्टोज नामक शुगर को पचा नहीं पाता

यानी एलर्जी में शरीर दूध को दुश्मन मानता है और इन्टॉलरेंस में शरीर उसे पचा नहीं पाता। इसलिए एलर्जी ज्यादा खतरनाक होती है और तुरंत मेडिकल गाइडेंस की आवश्यकता होती है।

बच्चे के लिए घर में किन बातों का ध्यान रखें

अगर बच्चे को दूध एलर्जी है तो केवल दूध बंद कर देना ही समाधान नहीं है। दूध का प्रोटीन अनेक खाद्य पदार्थों में छिपा होता है। इसलिए सावधानी आवश्यक है।

पैकेट फूड में केसीन (Casein), व्हे (Whey), मिल्क प्रोटीन जैसे नाम ध्यान से देखें

चॉकलेट, आइसक्रीम, बिस्कुट, केक, सूप, सीरियल्स में भी दूध प्रोटीन मौजूद हो सकता है

बच्चे के स्कूल में टीचर को उसकी एलर्जी की जानकारी देना जरूरी है

बाहर खाने पर स्टाफ को “नो मिल्क प्रोटीन” जरूर बताएं

दूध से दूरी का मतलब पोषण से दूरी नहीं

दूध से दूरी का मतलब पोषण से दूरी नहीं है क्योंकि डॉक्टर कैल्शियम, विटामिन D और प्रोटीन के सुरक्षित विकल्प सुझा सकते हैं।


कब डॉक्टर के पास पहुंचें?

यदि दूध पीने के बाद बच्चे में ये लक्षण दिखाई दें तो देर नहीं करनी चाहिए...

सांस लेने में कठिनाई

होंठ या गला सूजना

बहुत अधिक उल्टियां

सुस्ती या बेहोशी जैसी स्थिति

लगातार रोना और पेट दर्द

क्योंकि यहां देरी खतरनाक हो सकती है। एलर्जी का परीक्षण और इलाज स्वयं निर्धारित नहीं किया जा सकता, यह एलर्जी और इम्यूनोलॉजी विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाना चाहिए।

वर्ष 2023 में प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय एलर्जी जर्नल्स के अनुसार, दुनिया में लगभग 2%–3% बच्चे मिल्क एलर्जी से प्रभावित होते हैं। अच्छी खबर यह है कि उनमें से बड़ा हिस्सा उम्र के साथ धीरे-धीरे सामान्य आहार लेने में सक्षम हो जाता है। लेकिन किस बच्चे को, किस उम्र में, और किस तरीके से लाभ मिलेगा, यह पूरी तरह शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया पर आधारित है।

यही कारण है कि ओरल इम्यूनोथेरेपी (OIT) उम्मीद की सबसे बड़ी किरण बनकर उभरी है। यह इलाज बीमारी नहीं बल्कि शरीर की गलत प्रतिक्रिया को ठीक करने पर काम करता है।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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