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तनाव बढ़ाने वाले हॉर्मोन कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ने पर शरीर में ये लक्षण दिखाई देते हैं।

केवल तनाव नहीं बढ़ाता कॉर्टिसोल, इन गंभीर बीमारियों की भी बनता है वजह

कॉर्टिसोल एक स्टेरॉयड हार्मोन है, जिसे “स्ट्रेस हार्मोन” कहा जाता है क्योंकि यह तनाव, डर, भूख या किसी भी आपात स्थिति में शरीर को तैयार करने में मदद करता है...


Cortisol Stress Hormone: क्या आपने कभी सोचा है कि जब हमें बहुत अधिक डर लगता है या तेज गुस्सा आता है तो हमारे अंदर इतनी शक्ति कहां से आ जाती है। यानी हम गुस्से में कुछ भी उठाकर फेंकने, लड़ने या धक्का मारने के लिए तत्पर रहते हैं। वहीं, जब बहुत अधिक डर लग रहा होता है तो जान बचाकर भागने की ताकत कहां से आ जाती है? दरअसल, यह ऊर्जा हमें इसी कॉर्टिसोल नामक हॉर्मोन से मिलती है। क्योंकि हमारा शरीर जब बहुत अधिक तनाव में होता है तो 'फाइट या फ्लाइट' मोड में चला जाता है।

अर्थात ऐसी स्थिति जहां हमारे शरीर को न्यूरॉन्स से संकेत मिलता है कि या तो लड़ो या जान बचाकर भागो। इन दोनों ही स्थितियों में शरीर को ऊर्जा चाहिए होती है और ये ऊर्जा देने के लिए शरीर कॉर्टिसोल का रिसाव अधिक मात्रा में करता है। यानी इस स्थिति में ये हॉर्मोन शरीर के लिए आवश्यक भी होता है और अच्छाभी। हालांकि अगर हर समय इसका स्तर अधिक बना रहे तो शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव डालता है। शरीर में इस हॉर्मोन की उपयोगिता, लाभ और हानि के बारे में हमें विस्तार से बताया मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज के सीनियर सायकाइट्रिस्ट डॉक्टर राजेश कुमार ने...


कॉर्टिसोल क्या है?

कॉर्टिसोल (Cortisol) एक स्टेरॉयड हार्मोन है, जिसे अक्सर “स्ट्रेस हार्मोन” कहा जाता है क्योंकि यह तनाव, डर, भूख या किसी भी आपातकालीन स्थिति में शरीर को तैयार करने में मदद करता है। यह हमारे शरीर की मेटाबॉलिज़्म (metabolism), इम्यून सिस्टम (immune system), ब्लड प्रेशर (blood pressure) और ब्लड शुगर लेवल को रेगुलेट करने में भी अहम भूमिका निभाता है।


कॉर्टिसोल शरीर में कहां से रिलीज़ होता है?

कॉर्टिसोल का उत्पादन मुख्य रूप से एड्रिनल ग्लैंड्स (Adrenal glands) से होता है। ये ग्रंथियां हमारी किडनी यानी गुर्दे के ऊपर स्थित छोटी-सी त्रिकोण आकार की ग्रंथियां होती हैं। एड्रिनल ग्लैंड्स की “एड्रिनल कॉर्टेक्स” (बाहरी परत) में यह हार्मोन बनता है। इस हॉर्मोन का रिसाव संतुलित मात्रा में ही हो इसके लिए हाइपोथैलेमस-पिट्यूटरी-एड्रिनल (HPA) ग्लैंड इसे रेग्युलेट करने का काम करती हैं।

हाइपोथैलेमस दिमाग का वह छोटा-सा हिस्सा है, जो हार्मोन कंट्रोल सेंटर की तरह काम करता है। पिट्यूटरी ग्लैंड यह दिमाग के बिल्कुल नीचे स्थित एक मटर के दाने जितनी छोटी ग्रंथि है, लेकिन इसे “मास्टर ग्रंथि” कहा जाता है क्योंकि यह पूरे शरीर की लगभग सभी हार्मोन बनाने वाली ग्रंथियों को नियंत्रित करती है। एड्रिनल कॉर्टेक्स हमारी अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland) का बाहरी हिस्सा होता है। अधिवृक्क ग्रंथियां हमारी किडनी के ऊपर स्थित होती हैं और इनका आकार एक छोटे त्रिकोण जैसा होता है। ब भी शरीर तनाव (Stress) में होता है, तो पियुष ग्रंथि (Pituitary) ACTH नाम का हार्मोन रिलीज़ करती है, जो सीधे Adrenal Cortex को Cortisol बनाने का सिग्नल देता है।

इस तरह दिमाग और एड्रिनल ग्लैंड्स मिलकर कॉर्टिसोल के लेवल को कंट्रोल करते हैं। सरल भाषा में समझें तो जब हम तनाव (stress) में होते हैं तब दिमाग एड्रिनल ग्लैंड्स को सिग्नल भेजता है और वे कॉर्टिसोल रिलीज़ कर देती हैं। यही हार्मोन शरीर को “फाइट या फ्लाइट” मोड में लाता है। यानी किसी भी चुनौती से निपटने के लिए ऊर्जा (energy) और सतर्कता (alertness) बढ़ाता है।


हाई कॉर्टिसोल शरीर पर कैसा असर डालता है?

डॉक्टर कुमार बताते हैं कि स्ट्रेस हॉर्मोन होने के बाद भी कॉर्टिसोल शरीर के लिए बेहद जरूरी हॉर्मोन है। यहां "अति सर्वत्र वर्जयेत्" की कहावत फिट बैठती है। यानी अति हर चीज की बुरी होती है। जैसे, खाना भी एक सीमा से अधिक खाएंगे तो वह भी हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाएगा। ठीक इसी तरह जब कॉर्टिसोल अधिक मात्रा में निकलता है तो शरीर पर इसके नकारात्मक प्रभाव नज़र आने लगते हैं। जैसे...

शारीरिक, मानसिक व्यवहार में बदलाव आते हैं

मानसिक तौर पर चिड़चिड़ापन बढ़ता

नींद कम होना यानी इनसोमनिया की समस्या होने लगती है।

एंग्जाइटी बढ़ने लगती है। इसमें घबराहट, धड़कनें तेज होना जैसी दिक्कतें होती हैं।

लिबिडो कम होने लगती है।

याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो जाती है।

ध्यान ना लगा पाना किसी काम में यानी फोकस की कमी होना।


शारीरिक क्षमता पर कॉर्टिसोल का प्रभाव (फिजिकल इफेक्ट्स)

इनफर्टिलिटी यानी गर्भधारण में समस्या होना।

मेंस्ट्रुअल डिस्टर्बेंस। मासिकधर्म ठीक से ना होना।

हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को ट्रिगर कर सकता है।

हाई ब्लड शुगर रहना जिसके कारण टाइप टु डायबीटीज का खतरा रहता है।

मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है। खासतौर पर चेहरे और कंधों पर फैट जमा होने लगता है। चेहरे पर फैट जमा होने से जो असर दिखता है, उसे मेडिकल की भाषा में मून फेस कहते हैं। और कंधे पर जमा फैट को बफेलो हंप कहते हैं।

कॉर्टिसोल का प्रभाव त्वचा पर भी पड़ता है और इसकी मात्रा अधिक होने से त्वचा बहुत नाजुक और पतली हो जाती है। ऐसे में हल्की-सी चोट लगने पर भी ब्लीडिंग होने लगती है।

कॉर्टिसोल का अधिक स्तर मांसपेशियों को भी कमजोर बनाता है।

शरीर में अनवॉंटेड हेयर ग्रोथ बढ़ जाती है। जैसे, महिलाओं में चेहरे पर बाल उग आना।


हाई कोलेस्ट्रॉल की पहचान के की-पॉइंट्स

वजन बढ़ना

मूड में बार-बार बदलाव होना

त्वचा का पतला, कमजोर होना और अस्वस्थ दिखना

नींद से जुड़ी समस्याएं होना

भूख बढ़ना और हर समय खुद को थका हुआ अनुभव करना

अधिक पसीना आना

अक्सर और बिना कारण जल्दी-जल्दी सिरदर्द होना

मांसपेशियों का कमजोर होना।

जल्दी-जल्दी बीमार होना और बीमारी ठीक होने में अधिक समय लगना।

याददाश्त कम होना और किसी काम में ध्यान ना लगना।


किन स्थितियों में बढ़ता है कॉर्टिसोल का रिसाव?

क्रॉनिक स्ट्रेस होने पर कॉर्टिसोल का सीक्रेशन अधिक बढ़ जाता है। यानी ऐसा तनाव जो गंभीर स्थिति में होता है और लंबे समय तक बना रहता है। इसे ठीक करने के लिए क्लीनिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है।

नींद ठीक से ना लेने पर यानी हर दिन 7 से 8 घंटे ना सोने पर और सही समय पर ना सोना शामिल हैं। साथ ही लंबे समय तक स्टेरॉइड्स का यूज करना। हाई शुगर और प्रोसेस्ड फूड। शराब का अधिक सेवन, मोटापा। शारीरिक गतिविधियों की कमी होना। इसके अलावा कुछ लोगों में कुशिंग सिंड्रोम और एड्रिनल ग्लैंड का कैंसर भी हाई कोलेस्ट्रोल का कारण बनता है।


कॉर्टिसोल का उपचार क्या है?

कॉर्टिसोल के उपचार में जनरल फिजिशियन और साइकाइट्रिस्ट दोनों डॉक्टर्स का रोल अहम होता है। आप अपने शरीर में दिखने वाले लक्षणों के आधार पर इनमें से किसी भी डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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