कैंसर के लिए कीमो रक्षा कवच, डेड क्रैसिनोजेनिक सेल का क्या होता है?
कैंसर का नाम सुनते ही हिम्मत जवाब दे जाती है. लेकिन यहां पर हम बताएंगे कि उन कैंसर कोशिकाओं का क्या होता है जब ट्रीटमेंट के दौरान उन्हें नष्ट किया जाता है.
Cancer Cells: कहावत है कि दो रुपए कम कमाओ लेकिन सेहत मत गंवाओं. अब इस पर अमल करने की जिम्मेदारी हर एक शख्स की है.हालांकि कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिसके लिए कोई अकेला शख्स जिम्मेदार नहीं होता. वैसे तो कोई भी बीमारी अच्छी नहीं होती. लेकिन कुछ रोगों नाम सुनकर दिल कांप जाता है. कैंसर उनमें से एक है. कैंसर के बारे में अगर समय पर जानकारी ना मिले तो समझिए कि बच पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन यहां पर हम बात कुछ अलग हटकर करने वाले हैं. आप जानते हैं कि कैंसर के इलाज के लिए कीमो, रेडिएशन और ऑपरेशन की विधि अपनाई जाती है, इसके जरिए कैंसर सेल को हटा दिया जाता है. हम इसी विषय पर बात करेंगे कि इलाज के बाद कैंसर सेल के साथ क्या होता है.
कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी एक विकल्प
कीमोथेरेपी के जरिए क्रैसिनोजेनिक ट्यूमर सेल्स (ऐसे सेल जो कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं) को मार जाता है. इसमें कैंसर सेल खुद को नष्ट करने का काम करती हैं, इसे एपोप्टोसिस(Apoptosis) या नेक्रोटोसिस(Necroptosis) कहते हैं.लेकिन मूल सवाल यही है कि कैंसर कोशिकाओं के खत्म होने के बाद उनका क्या होता है. जब किसी कैंसर सेल की मौत होती है तो उनकी मेंब्रेन यानी झिल्लियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. मरने वाली कोशिका सिकुड़ जाती है और इसकी झिल्ली के टुकड़े ब्लब्स में टूट जाते हैं. इसकी वजह से कोशिकाओं के आंतरिक घटक बाहर आ जाते हैं. फैगोसाइट्स सेलुलर मलबे को निगलने के लिए जिम्मेदार प्रतिरक्षा कोशिकाओं को आकर्षित करते हैं.
फैगोसाइट्स डेड कैंसर कोशिकाओं को निगल लेते हैं और फिर उन्हें छोटे घटकों जैसे शर्करा और न्यूक्लिक एसिड जैसे मॉलिक्यूल्स में तोड़ देते हैं. इस प्रक्रिया के माध्यम से मृत कैंसर कोशिकाओं को घटकों में रिसाइकल किया जाता है. जिनका अन्य कोशिकाओं द्वारा दोबारा से उपयोग किया जा सकता है. एपोप्टोसिस के मामले में कोशिका मृत्यु के प्रकार के कैंसर उपचारों को पारंपरिक रूप से प्रेरित करने के लिए डिजाइन किया गया है - सेलुलर घटकों को आम तौर पर शरीर द्वारा उत्सर्जित करने के बजाय इस तरह से रिसाइकिल करते हैं. कैंसर उपचार कभी-कभी अन्य प्रकार की कोशिकाओं की मौत के लिए भी जिम्मेदार हो सकते हैं.
क्या है नेक्रोप्टोसिस
नेक्रोप्टोसिस,जिसमें कोशिकाएं सिकुड़ने के बजाय सूज और फट जाती हैं.जबकि फैगोसाइट्स भी इस प्रकार की मरने वाली सेल को निगल लेते हैं. लेकिन मरने वाली कैंसर कोशिकाएं हमेशा चुपचाप नहीं जातीं है.इस संबंध में अब तक की स्टडी से पता चलता है कि सूजन पैदा करने वाले मलबे को मुक्त करके मरने वाली कैंसर कोशिकाएं कभी-कभी जीवित कैंसर कोशिकाओं के विकास को उत्तेजित कर सकती हैं. इसे रेवेज इफेक्ट कहा जाता है. हालांकि इससे यह समझने में मदद मिलती है कि कैसे इलाज के बाद कैंसर सेल जीवित हो जाती हैं.
चूहों पर हुई थी स्टडी
पहली बार 1950 के दशक में ट्यूमर वाले चूहों में देखा गया था. 2018 में चूहों और उनके सेल कोशिकाओं पर अध्ययन किया गया था और यह पाया गया कि रेडिएशन और कीमोथेरेपी प्रिनफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को ट्रिगर कर सकती है. प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न अणु सूजन को बढ़ाते हैं जो कभी-कभी ट्यूमर के ग्रोथ में मददगार साबित होते हैं. लाइव साइंस में रिपोर्ट के मुताबिक इस अध्ययन से जुड़े बेथ इजरायल डेकोनेस मेडिकल सेंटर में पैथोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ.दीपक पाणिग्रही बताते हैं कि मैक्रोफेज एक प्रकार का फैगोसाइट है और यह कैंसर से लड़ने के प्रयास में इन अणुओं को रिलीज करता है.
शोधकर्ताओं के एक अलग ग्रुप ने 2023 के अध्ययन किया और यह पाया कि मरने वाली कैंसर कोशिकाओं के न्यूक्लियस में कभी कभी सूजन के साथ फटने की संभावना बनती है. इसकी वजह से डीएनए और अन्य अणु उनके आसपास फैल जाते हैं. चूहों मे ये बिखरे हुए अणु मेटास्टेसिस को तेज कर सकते हैं. यह स्टडी कैंसर की प्रगति और पुनरावृत्ति पर ट्यूमर कोशिका की मृत्यु पर रोशनी डालते हैं लेकिन अनुसंधान अभी भी प्राइमरी स्टेज में है. वैज्ञानिक अभी तक इंसानों में कैंसर में मरने वाली कैंसर कोशिका के संकेत को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं. 2018 के अध्ययन में मृत कैंसर कोशिका के जरिए ट्यूमर के विकास का मुकाबला करने के तरीके के बारे में बताया गया था. रिजॉल्विन,ओमेगा 3 से प्राप्त अणु जो कोशिका मलबे को हटाने में मदद करते हुए सूजन और साइटोकिन्स के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं.