क्या है डायबिटीज और हार्ट फेल्योर का रिश्ता? घातक होता है ये कनेक्शन
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डायबिटीज और हार्ट अटैक एक-दूसरे से काफी गहराई से जुड़े हैं

क्या है डायबिटीज और हार्ट फेल्योर का रिश्ता? घातक होता है ये कनेक्शन

डायबिटिक व्यक्ति में हार्ट फेल्योर का खतरा 2 से 4 गुना अधिक होता है। हैरानी की बात यह है कि यह खतरा तब भी बना रहता है, जब कोरोनरी धमनियां पूरी तरह बंद न हों...


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डायबिटीज को केवल ब्लड शुगर बढ़ाने वाली बीमारी मान लिया जाता है। लेकिन असल में यह एक ऐसी स्थिति है, जो धीरे-धीरे शरीर के हर अंग की संरचना और कार्यप्रणाली को बदल देती है। जब लंबे समय तक खून में ग्लूकोज़ का स्तर अधिक बना रहता है तो यह केवल रक्त में तैरता नहीं रहता बल्कि दिल की कोशिकाओं के भीतर जाकर जैविक स्तर पर बदलाव शुरू कर देता है। यहीं से डायबिटीज और हार्ट फेल्योर का खतरनाक रिश्ता बनता है...


केवल ब्लॉकेज नहीं है हार्ट फेल्यॉर

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट्स साफ बताती हैं कि डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति में हार्ट फेल्योर का खतरा सामान्य व्यक्ति की तुलना में 2 से 4 गुना अधिक होता है। और हैरानी की बात यह है कि यह खतरा तब भी बना रहता है, जब कोरोनरी धमनियां पूरी तरह बंद न हों। इसका अर्थ यह है कि हार्ट फेल्योर केवल ब्लॉकेज की बीमारी नहीं बल्कि दिल की मांसपेशियों की बीमारी भी है, जिसे डायबिटीज चुपचाप जन्म देती है।

लंबे समय तक बढ़ा हुआ ग्लूकोज़ दिल की मांसपेशियों में ग्लूको-टॉक्सिसिटी पैदा करता है। इससे दिल की कोशिकाओं के भीतर ऊर्जा बनाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया कमजोर होने लगते हैं। परिणामस्वरूप दिल की पंप करने की क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है। इस स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में डायबिटिक कार्डियोमायोपैथी कहा जाता है। यह वह अवस्था है, जिसमें दिल बिना किसी बड़े हार्ट अटैक के भी कमजोर पड़ने लगता है।

अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के (CDC) अनुसार, लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज दिल की संरचना को स्थायी रूप से बदल सकती है। दिल की दीवारें मोटी हो सकती हैं, लचीलापन कम हो सकता है और रक्त पंप करने की क्षमता धीरे-धीरे घटती जाती है। यही बदलाव आगे चलकर हार्ट फेल्योर का आधार बनते हैं।


डायबिटिक लोगों में हार्ट फेल्यॉर के लक्षण

डायबिटीज शरीर में लगातार सूजन बनाए रखती है। यह सूजन दिल की मांसपेशियों को कठोर बना देती है, जिससे दिल ठीक से फैल और सिकुड़ नहीं पाता। यही कारण है कि कई डायबिटिक मरीजों में हार्ट फेल्योर साइलेंट तरीके से विकसित होता है। जैसे, बिना तेज सीने में दर्द हुए केवल थकान, सांस फूलना और पैरों में सूजन जैसे लक्षणों के साथ।

लंबे समय तक हाई ब्लड शुगर बने रहना दिल की मांसपेशियों में ऑक्सीडेटिव तनाव और सूक्ष्म सूजन को बढ़ाता है। इससे दिल की कोशिकाओं की ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है और वे सामान्य रूप से संकुचित-विस्तारित नहीं हो पातीं। बिना किसी बड़े हार्ट अटैक या धमनी रुकावट के भी दिल धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। यही कारण है कि कई डायबिटीज मरीजों में हार्ट फेल्योर के लक्षण अचानक सामने आते हैं। जैसे, सांस फूलना, थकान, पैरों में सूजन इत्यादि। जबकि पहले तक उन्हें कोई गंभीर हृदय रोग महसूस नहीं होता।

ऐसे बढ़ता है हार्ट फेल्यॉर का जोखिम

डायबिटीज में इंसुलिन रेजिस्टेंस भी इस कनेक्शन को और खतरनाक बनाता है। इंसुलिन केवल शुगर कंट्रोल करने का हार्मोन नहीं है बल्कि यह दिल की कोशिकाओं के लिए भी एक पोषण संकेतक (Nutrition Indicator) की तरह काम करता है। जब कोशिकाएं इंसुलिन को पहचानना बंद कर देती हैं तो दिल की मांसपेशियों को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती। इससे हार्ट फेल्योर का जोखिम और बढ़ जाता है।

यह कनेक्शन तब घातक हो जाता है, जब डायबिटीज के साथ हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, किडनी की कमजोरी और लंबे समय तक अनियंत्रित शुगर जुड़ जाती है। ऐसे मामलों में हार्ट फेल्योर अचानक बिगड़ सकता है और अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ सकती है। कई अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि डायबिटीज से ग्रस्त हार्ट फेल्योर मरीजों में मृत्यु दर अधिक होती है।

हाल के वर्षों में प्रकाशित क्लिनिकल स्टडीज, जिनमें EMPA-REG OUTCOME और DAPA-HF जैसे बड़े ट्रायल शामिल हैं। ये शोध दिखाते हैं कि ब्लड शुगर को सही तरीके से नियंत्रित करना और कुछ नई पीढ़ी की एंटी-डायबिटिक दवाएं हार्ट फेल्योर के खतरे को कम कर सकती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि डायबिटीज और हार्ट फेल्योर का रिश्ता रोका जा सकता है अगर समय रहते इसे बढ़ने से रोका जाए।


डायबिटीज ऐसे बढ़ाती है हार्ट फेल्योर का खतरा

हार्ट अटैक का खतरा केवल हाई ब्लड प्रेशर या मोटापे के कारण ही नहीं होता है। बल्कि डायबिटीज भी हार्ट फेल्योर का खतरा स्वतंत्र रूप से भी बढ़ाती है। इस विषय से जुड़ा एक शोध यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज से जुड़े जर्नल Diabetologia में प्रकाशित हुआ। इस शोध में वैज्ञानिकों ने एक खास तरीके से विश्लेषण किया, जिसमें 47 अलग-अलग दीर्घकालिक अध्ययनों और लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोगों के आंकड़ों का एक साथ अध्ययन किया गया।

शोध के परिणाम में सामने आया कि हार्ट अटैक केवल हाई ब्लड प्रेशर या मोटापे की वजह से नहीं हुआ था बल्कि इसके पीछे अन्य जैविक कारण भी काम कर रहे थे। इसी अध्ययन में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी सामने आया है कि महिलाओं में डायबिटीज से जुड़ा हार्ट फेल्योर का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक था। विशेष रूप से टाइप-1 डायबिटीज वाली महिलाओं में यह जोखिम कई गुना तक बढ़ा हुआ पाया गया। इससे यह संकेत मिलता है कि हार्मोनल बदलाव और मेटाबॉलिक तनाव मिलकर महिलाओं के दिल पर अधिक प्रभाव डाल सकते हैं।


हार्ट फेल्योर के कारण डायबिटीज होना

पबमेड (PubMed) पर प्रकाशित कई समीक्षात्मक अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि यह संबंध केवल एक दिशा में नहीं चलता। हार्ट फेल्योर से पीड़ित मरीजों में भी समय के साथ इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ने लगता है, जिससे प्री-डायबिटीज या डायबिटीज विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। यानी डायबिटीज दिल को कमजोर करती है और कमजोर दिल शरीर की शुगर नियंत्रण प्रणाली को और बिगाड़ सकता है।

अंततः यह समझना आवश्यक है कि डायबिटीज केवल मीठे से परहेज की बीमारी नहीं है बल्कि दिल को चुपचाप कमजोर करने वाली अवस्था है। अगर शुगर कंट्रोल के साथ-साथ दिल की सेहत पर भी ध्यान दिया जाए तो नियमित जांच, संतुलित आहार, शारीरिक सक्रियता और तनाव नियंत्रण के माध्यम से इस घातक कनेक्शन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हृदय और शुगर को अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही कड़ी के रूप में समझना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।


कब यह कनेक्शन घातक हो जाता है?

जब डायबिटीज और हार्ट फेल्योर दोनों एक साथ मौजूद होते हैं, तब स्थिति सबसे अधिक गंभीर हो जाती है। Journal of the American College of Cardiology और पबमेड पर प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, ऐसे मरीजों में बार-बार अस्पताल में भर्ती होने, हार्ट फेल्योर की स्थिति तेजी से बिगड़ने और मृत्यु का जोखिम स्पष्ट रूप से बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि डायबिटीज सूजन, तरल संतुलन, किडनी फंक्शन और रक्तचाप चारों को एक साथ प्रभावित करती है। ये सभी तत्व हार्ट फेल्योर की स्थिति को तेज कर देते हैं।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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