ना थकेगा दिमाग ना भूलेगा काम, डॉक्टर ने बताए यंग ब्रेन के 5 सीक्रेट्स
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मस्तिष्क को युवा रखने के 5 आसान उपाय

ना थकेगा दिमाग ना भूलेगा काम, डॉक्टर ने बताए यंग ब्रेन के 5 सीक्रेट्स

अमेरिका के न्यूरोसर्जन डॉक्टर जे जय जगन्नाथन के अनुसार, दिमाग न तो अचानक कमजोर होता है और न ही अचानक मजबूत। ये रोज की छोटी आदतों से बनता है या नष्ट होता है...


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दिमाग के बारे में अक्सर हम मान लेते हैं कि दिमाग की सेहत उम्र के साथ अपने-आप ढलती जाती है। याददाश्त कमजोर होना, ध्यान भटकना, भावनात्मक अस्थिरता इन्हें हम उम्र बढ़ने के सामान्य लक्षण मानते हुए अनदेखा कर देते हैं। लेकिन न्यूरोसाइंस कुछ और ही कहानी कहता है।

अमेरिका के न्यूरोसर्जन डॉ. जय जगन्नाथन के अनुसार, दिमाग न तो अचानक कमजोर होता है और न ही अचानक मजबूत वह रोज की छोटी-छोटी आदतों से या तो रीबिल्ड (अर्थात अपने आपको दोबारा गठित करता है) होता है या धीरे-धीरे डिग्रेड (अर्थात क्षति होना)। और यही बात आधुनिक रिसर्च भी बार-बार साबित कर रही है। यहां डॉक्टर जगन्नाथन द्वारा बताई गई ऐसी 5 आदतों के बारे में डिटेल से बताया गया, जो मस्तिष्क की सेहत को अच्छा रखने के लिए अतिआवश्यक हैं। इन आदतों से संबंधित मेडिकल रिसर्च को भी यहां बताया गया है...


नींद है दिमाग की रात की मरम्मत प्रक्रिया

नींद को अक्सर आराम समझ लिया जाता है। जबकि असल में यह मस्तिष्क की मरम्मत का समय होता है। हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल (Harvard Medical School) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजिंग (National Institute on Aging) की रिसर्च बताती है कि गहरी नींद के दौरान दिमाग का ग्लाइम्फैटिक प्रणाली(glymphatic system) सक्रिय होती है, जो न्यूरॉन्स के बीच जमा ज़हरीले प्रोटीन जैसे β-amyloid — को बाहर निकालता है। यही प्रोटीन आगे चलकर अल्जाइमर (Alzheimer) और संज्ञानात्मक गिरावट (cognitive decline) से जुड़ा पाया गया है।

नेचर न्यूरोसाइंसेज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन दिखाता है कि जो लोग लगातार कम या अनियमित नींद लेते हैं, उनमें हिप्पोकैम्पस का सिकुड़ना और याददाश्त की गिरावट जल्दी शुरू हो जाती है। यानी 6–8 घंटे की नियमित नींद कोई लक्ज़री नहीं बल्कि दिमाग के अस्तित्व की आवश्यकता है।


स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से मसल्स नहीं, न्यूरॉन्स भी मजबूत होते हैं

अक्सर व्यायाम को केवल शरीर से जोड़ दिया जाता है, लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी (University of Sydney) और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (University of British Columbia) की रिसर्च बताती है कि स्ट्रेंथ ट्रेनिंग सीधे मस्तिष्क की बनावट को प्रभावित करती है।

जर्नल ऑफ अल्जाइमर डिजीज (Journal of Alzheimer’s Disease) में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, नियमित वेट ट्रेनिंग से BDNF (Brain-Derived Neurotrophic Factor) का स्तर बढ़ता है। यही वह प्रोटीन है, जो नए न्यूरॉन्स को जन्म देता है और पुराने न्यूरल नेटवर्क को टूटने से बचाता है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से मस्तिष्क के अग्र ललाट क्षेत्र (प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स) और स्मृति केंद्र हिप्पोकैम्पस पर देखा गया, जो निर्णय लेने की क्षमता और याद रखने की शक्ति को नियंत्रित करते हैं। अर्थात सुबह की हल्की वेट ट्रेनिंग, दिमाग को उम्र से लड़ने का हथियार देती है।


ध्यान से दिमाग की संरचना सचमुच बदलती है

ध्यान अर्थात मेडिटेशन को लोग मानसिक शांति तक सीमित मानते हैं। लेकिन तंत्रिका-विज्ञान इसे केवल भावनात्मक बदलाव नहीं बल्कि मस्तिष्क की संरचना में होने वाला वास्तविक परिवर्तन मानता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सारा लाज़र की टीम द्वारा किए गए एमआरआई आधारित अध्ययन में यह सामने आया कि केवल 8 सप्ताह की माइंडफुलनेस ध्यान साधना से मस्तिष्क के तनाव केंद्र (एमिग्डाला) की सक्रियता कम हो जाती है, जबकि स्मृति केंद्र हिप्पोकैम्पस में ग्रे मैटर की मात्रा बढ़ जाती है।

Psychiatry Research: Neuroimaging नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन ने पहली बार यह प्रमाणित किया कि ध्यान केवल मन को नहीं बल्कि दिमाग की बनावट तक को बदलने की क्षमता रखता है। यानी यह केवल मन शांत करने की तकनीक नहीं बल्कि दिमाग को दोबारा आकार देने की प्रक्रिया है।


बर्नआउट से होता दिमाग को चुपचाप नुकसान

लगातार थकान को हम अक्सर मेहनत का प्रमाण मान लेते हैं। लेकिन Rockefeller University का McEwen Stress Model बताता है कि यदि कॉर्टिसोल यानी स्ट्रेस हॉर्मोन का स्तर लंबे समय तक अधिक बना रहता है तो इससे हिप्पोकैम्पस के न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाता है।

द लैंसेट सायकाइट्री नामक जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार, क्रॉनिक बर्नआउट से जूझ रहे लोगों में याददाश्त, निर्णय क्षमता और भावनात्मक नियंत्रण तीनों पर दीर्घकालिक असर देखा गया है। यानी बर्नआउट कोई मानसिक स्थिति नहीं बल्कि मस्तिष्क पर होने वाली धीमी चोट है।


ओवरवर्क से बूढ़ा होता है दिमाग

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (World Economic Forum) की रिपोर्ट साफ कहती है कि सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करने वालों में स्ट्रोक और संज्ञानात्मक बधिरता (cognitive impairment) का खतरा अधिक होता है।

न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित साल 2022 की स्टडी बताती है कि काम और जीवनशैली के बीच असंतुलन (work-life imbalance) सीधे मस्तिष्क की उम्र बढ़ने के जैविक संकेतक (Brain aging biomarkers) से जुड़ा पाया गया। लगातार काम करना, आराम को कमजोरी समझना और थकान को गर्व बनाने जैसी ये आदतें दिमाग को समय से पहले बूढ़ा कर देती हैं।

नींद, व्यायाम, ध्यान, विश्राम और जीवन में संतुलन, ये कोई मोटिवेशनल मंत्र नहीं हैं। बल्कि ये न्यूरोसाइंस-आधारित ब्रेन रिपेयर टूल्स हैं। न्यूरोसर्जन की सलाह और वैज्ञानिक रिसर्च दोनों एक ही बात कहती हैं कि दिमाग की सेहत भविष्य की चिंता नहीं, आज की आदतों का परिणाम है। जो आज उसे समय, आराम और पोषण देता है, वही कल याददाश्त, स्पष्टता और भावनात्मक मजबूती पाता है।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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