
चिड़चिड़े हो रहे हैं, चीजें याद नहीं रहतीं? हिपोकैंपस मदद मांग रहा है!
व्यवहार में होने वाले नकारात्मक परिवर्तन इस बात का संकेत होते हैं कि हिपोकैंपस थक चुका है, सिकुड़ रहा है और मदद मांग रहा है। जो लोग समय से संकेत समझ लेते हैं..
याददाश्त कमजोर होने लगी है, अक्सर मूड खराब रहता है, चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है... इन स्थितियों में अक्सर लोग यह मान लेते हैं कि मूड का बार-बार बदलना या नई बातें याद न रह पाना केवल तनाव में रहने,उम्र का बढ़ना या काम के दबाव का नतीजा है। लेकिन न्यूरोसाइंस एक गहरी सच्चाई की ओर इशारा करता है। इसके अनुसार,कई बार इन लक्षणों की जड़ दिमाग के एक बेहद अहम हिस्से, हिपोकैंपस के सिकुड़ने में छिपी होती है। तो सबसे पहले ये समझ लें कि हिपोकैंपस होता क्या है और क्या काम करता है...
हिपोकैंपस कहां होता है और क्या करता है?
हिपोकैंपस मस्तिष्क का वह केंद्र है जहां यादें बनती हैं, नई जानकारी को समझा जाता है, भावनाओं को संतुलित किया जाता है और तनाव के समय दिमाग को “कंट्रोल मोड” में रखा जाता है। हिपोकैंपस सही आकार में रहे और सही स्थितियां इसे मिलें तो यह प्राकृतिक रूप से ठीक काम करता है। लेकिन जब यही संरचना धीरे-धीरे आकार में छोटी होने लगती है तो असर केवल याददाश्त से जुड़ी कमजोरी तक सीमित नहीं रहता बल्कि व्यक्ति का पूरा व्यवहार बदलने लगता है।
हिपोकैंपस क्यों छोटा होता है?
न्यूरोलॉजी इसे हिप्पोकैम्पल क्षीणता (Hippocampal Atrophy) कहती है। यह कोई एक दिन में होने वाली घटना नहीं है बल्कि धीमी गति से और वर्षों तक चलने वाली जैविक प्रक्रिया है। इसकी जांच से जुड़े MRI आधारित अध्ययनों से साफ दिखता है कि हिपोकैंपस का सिकुड़ना अक्सर उन लोगों में पाया जाता है, जिनमें लंबे समय तक मानसिक तनाव रहा हो,नींद लगातार खराब रही हो, अवसाद या चिंता विकार (एंग्जाइटी) मौजूद हों या फिर जीवनशैली में शारीरिक निष्क्रियता और भावनात्मक दबाव बना रहा हो।
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी (Sheline et al., 1996 – Washington University) के अध्ययन में पाया गया कि लंबे समय तक अवसाद से जूझ रहे लोगों में हिपोकैंपस का आकार स्वस्थ लोगों की तुलना में स्पष्ट रूप से छोटा मिला। कुल मिलाकर यह समस्या दिमाग की थकान का संरचनात्मक प्रमाण है। यह शोध American Journal of Psychiatry में प्रकाशित हुआ और इसने पहली बार यह सिद्ध किया कि मानसिक बीमारी केवल भावनात्मक नहीं बल्कि संरचनात्मक मस्तिष्क परिवर्तन से जुड़ी होती है।
तनाव कैसे हिपोकैंपस को नुकसान पहुंचाता है?
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के शोध बताते हैं कि लगातार तनाव की स्थिति में शरीर में कॉर्टिसोल नामक हार्मोन लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बना रहता है। कॉर्टिसोल का सबसे सीधा और गहरा असर हिपोकैंपस के न्यूरॉन्स पर पड़ता है। क्योंकि लंबे समय तक अधिक कॉर्टिसोल रहने से नए न्यूरॉन्स बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है साथ ही पुराने न्यूरॉन्स कमजोर होने लगते हैं। इन सभी घटनाओं के चलते हिपोकैंपस का कुल आकार धीरे-धीरे घटने लगता है। इसीलिए क्रॉनिक स्ट्रेस सिर्फ मानसिक स्थिति नहीं, दिमाग की संरचना बदलने वाली अवस्था है।
रॉबर्ट सैपोल्स्की (Stanford University) के अध्ययनों में यह स्पष्ट किया गया कि लगातार ऊंचा कॉर्टिसोल स्तर हिपोकैंपस के न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाता है, न्यूरोजेनेसिस (नए न्यूरॉन्स बनने) की प्रक्रिया को रोकता है और अंततः हिपोकैंपस के आकार में कमी लाता है। यह रिसर्च Proceedings of the National Academy of Sciences (PNAS) और Science जैसी जर्नल्स में प्रकाशित हुई है।
याददाश्त कमजोर होने की वजह?
हिपोकैंपस का मुख्य कार्य अल्पकालिक स्मृति (Short-term memory) को दीर्घकालिक स्मृति (Long-term memory) में परिवर्तित करना है। जब हिपोकैंपस का आकार घटता है तो नई जानकारी इसमें ठहर नहीं पाती या कहिए कि स्टोर नहीं हो पाती। इससे बातें सुनते ही भूल जाने की आदत बढ़ती है। पढ़ा हुआ या सुना हुआ याद नहीं रहता और दिमाग बार-बार खाली महसूस होने लगता है।
अल्जाइमर रोग की शुरुआती अवस्था में सबसे पहले जिस हिस्से में बदलाव दिखता है, वह भी हिपोकैंपस ही होता है। इस विषय पर Braak and Braak Staging (1991) इस न्यूरोपैथोलॉजिकल मॉडल के अनुसार, अल्जाइमर रोग की शुरुआत हिपोकैंपस और एंटोराइनल कॉर्टेक्स से होती है और यहीं सबसे पहले न्यूरॉनल डैमेज दिखता है। यह रिसर्च आज भी अल्जाइमर डायग्नोसिस की नींव मानी जाती है।
मूड स्विंग्स और चिढ़चिढ़ापन क्यों बढ़ता है?
हिपोकैंपस केवल याददाश्त का केंद्र ही नहीं है बल्कि यह भावनाओं को नियंत्रित करने वाले नेटवर्क का भी हिस्सा है। यह अमिग्डाला (तनाव और डर का केंद्र) को संतुलन में रखता है। इसलिए जब हिपोकैंपस कमजोर पड़ता है तो व्यवहार में इस तरह के बदलाव अनुभव होने लगते हैं...
छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना
भावनात्मक प्रतिक्रिया का असंतुलन रहना
बेवजह बेचैनी और उदासी अनुभव होना
निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होना
हर समय भ्रम की स्थिति रहना।
इसीलिए कई बार व्यक्ति खुद नहीं समझ पाता कि वह इतना चिड़चिड़ा क्यों हो गया है। जबकि वास्तव में उसका दिमाग संतुलन खो रहा होता है।
हिपोकैंपस का सबसे बड़ा दुश्मन
नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, गहरी नींद के दौरान दिमाग दिनभर की जानकारी को व्यवस्थित करता है। हिपोकैंपस से यादों को कॉर्टेक्स तक स्थानांतरित करता है और न्यूरॉन्स की मरम्मत करता है। इसलिए लगातार खराब नींद लेने वालों में अर्थात उन लोगों में जो 7 से 8 घंटे की पूरी नहीं लेते और जिनके सोने-जागने का कोई निश्चित समय नहीं होता, उनके MRI स्कैन पर हिपोकैंपस का सिकुड़ना स्पष्ट रूप से देखा गया है। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि नींद सिर्फ आराम नहीं,
दिमाग की संरचनात्मक सुरक्षा प्रक्रिया है।
क्या हिपोकैंपस दोबारा मजबूत हो सकता है?
न्यूरोसाइंस की सबसे आशावादी खोज यह है कि हिपोकैंपस उन गिने-चुने हिस्सों में से है, जहां नए न्यूरॉन्स बन सकते हैं। इससे जुड़े कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि कुछ बेहद सरल गतिविधियों और नियमित जीवनशैली को अपनाया जाए तो हिपोकैंपस को फिर से स्वस्थ बनाया जा सकता है...
नियमित शारीरिक गतिविधि करें। हर दिन 30 मिनट की वॉक और व्यायाम।
ध्यान और माइंडफुलनेस। इनसे फोकस बढ़ेगा और मन शांत रहेगा।
गहरी और नियमित नींद लें। हर दिन 7 से 8 घंटे अवश्य सोएं।
भावनात्मक दबाव में कमी करें। इसके लिए ऊपर बताई तीनों विधियों को अपनाएं और हर किसी को खुद पर हावी ना होने दें। अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं।
इन सभी स्टेप्स को अपनाने से हिपोकैंपस में ग्रे मैटर डेंसिटी बढ़ सकती है और हिपोकैंपस के छोटा होने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। और जब ऐसा होगा तो चिढ़चिढ़ापन, मूड स्विंग्स और याददाश्त की कमजोरी जैसी समस्याएं नहीं होंगी तो आपका सामाजिक जीवन भी खुशहाल होगा।
व्यवहार में होने वाले ये नकारात्मक परिवर्तन कई बार इस बात का संकेत होते हैं कि हिपोकैंपस थक चुका है, सिकुड़ रहा है और मदद मांग रहा है। जो लोग समय रहते इस संकेत को समझ लेते हैं, वे सिर्फ याददाश्त नहीं बल्कि पूरे मानसिक संतुलन को बचा लेते हैं।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

