HMPV ने बढ़ाई दुनिया की चिंता? भारत में मिले अब तक इतने केस
HMPV न्यूमोविरिडे परिवार का एक प्रमुख श्वसन रोगज़नक़ है. जो रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस का करीबी रिश्तेदार है.
HMPV cases in India: भारत में धीरे-धीरे HMPV वायरस के मामले बढ़ रहे हैं और अब तक कुल 12 मामले सामने आ चुके हैं. चीन से शुरू हुए इस वायरस की जद में कई देश भी आ गए हैं. हालांकि, अब तक इस वायरस के गंभीर लक्षण या परिणाम देखने को नहीं मिले हैं. फिर भी भारत में कोविड-19 महामारी से सबक लेते हुए सावधानी बरतनी शुरू कर दी है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर HMPV वास्तव में क्या है और हमें इसकी कितनी चिंता करनी चाहिए?
HMPV का पूरा नाम ह्यूमन मेटा न्यूमो वायरस है. इसका संक्रमण होने पर खांसी, बुख़ार, नाक बंद होना, सांस लेने में तकलीफ़ होना और फ़्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं. हालांकि, अधिक गंभीर मामलों में ब्रोंकाइटिस या निमोनिया भी हो सकता है. यह एक संक्रामक बीमारी है, जो संपर्क में आने पर तेजी से फैल सकता है. ऐसे में सावधनी ही बचाव है. यह वायरस छींक से निकली बूंदों, क़रीबी संपर्क और दूषित जगहों को छूने के बाद मुंह, नाक या आंखों को छूने से भी फैलता है. इसका असर छोटे बच्चों, बुजुर्गों और कम इम्युनिटी वाले लोगों पर अधिक होता है.
दिल्ली के CSIR-IGIB में वरिष्ठ वैज्ञानिक जितेन्द्र नारायण ने बताया कि HMPV इन दिनों अपनी बढ़ते मामलों और गंभीर परिणामों के कारण चर्चा में बना हुआ है. भारत में भी HMPV मामलों की बढ़ती रिपोर्टों ने चिंता बढ़ाई है. HMPV न्यूमोविरिडे परिवार का एक प्रमुख सांस संबधी बीमारी है. यह रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV) का करीबी रिश्तेदार है. दोनों वायरस समान लक्षण होते हैं.
जोखिम
1. 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे: अपरिपक्व प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण ये सबसे संवेदनशील होते हैं.
2. बुजुर्ग: उम्र के साथ प्रतिरक्षा में गिरावट जोखिम को बढ़ाती है.
3. प्रतिरक्षा में कमी वाले व्यक्ति: कैंसर, अंग प्रत्यारोपण या एचआईवी जैसी स्थितियों वाले लोगों में इसका जोखि बढ़ जाता है.
उन्होंने बताया कि इसके अलावा HMPV अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी स्थितियों को बढ़ा सकता है. SARS-CoV-2 के साथ सह-संक्रमण से बीमारी की गंभीरता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है. साल 2001 में नीदरलैंड में खोजा गया HMPV एक RNA वायरस है, इसका जीनोम आठ जीनों को एनकोड करता है और इसे चार जीनोटाइप (A1, A2, B1, B2) और छह उप-वंशों में विभाजित किया गया है. चीन में HMPV संक्रमणों की पहचान पहली बार 2003 में हुई. बच्चों में तीव्र श्वसन संक्रमण के 1-15% मामले HMPV के कारण होते हैं. चीन में प्रमुख उप-वंश A2b, B1 और B2 हैं. ये आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि लगातार निगरानी और आनुवंशिक शोध की जरूरत है.
जितेन्द्र नारायण ने बताया कि HMPV का सटीक निदान न्यूक्लिक एसिड प्रवर्धन तकनीकों, विशेष रूप से RT-PCR, पर निर्भर करता है. हालांकि, इस वायरस के लिए न तो कोई वैक्सीन है और न ही लक्षित एंटीवायरल इलाज. सहायक देखभाल इस समय उपचार का मुख्य आधार बनी हुई है. जो रोग की रोकथाम की आवश्यकता को रेखांकित करती है.
महत्वपूर्ण सबक
1. डेटा की कमी: आनुवंशिक और महामारी विज्ञान डेटा की अनुपस्थिति HMPV और अन्य श्वसन रोगजनकों की समझ को बाधित करती है.
2. निदान संबंधी तैयारियां: भारत को तेज़ और प्रभावी नैदानिक उपकरण विकसित करने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया की आवश्यकता है.
3. वैश्विक सहयोग: देशों के बीच अनुसंधान सहयोग रोगजनक विविधता और प्रसार को समझने में मदद कर सकता है.
हालांकि, HMPV का मौसमी प्रकोप उल्लेखनीय है. लेकिन यह घबराहट का कारण नहीं होना चाहिए. इसके बजाय, यह वैज्ञानिक रूप से सूचित और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है.
सुझाए गए कदम
1. निगरानी में सुधार करें: व्यवस्थित डेटा संग्रह के माध्यम से HMPV और अन्य श्वसन रोगजनकों पर नजर रखें.
2. कमज़ोर आबादी की सुरक्षा करें: मास्क पहनना और स्वच्छता उपायों को प्रोत्साहित करें. अन्य संक्रमणों के खिलाफ़ वैक्सीनेशन बढ़ाएं.
3. शोध को प्राथमिकता: HMPV के रोगजनन, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और टीका विकास पर ध्यान केंद्रित करें.
जितेन्द्र नारायण ने बताया कि HMPV श्वसन रोगजनकों की जटिलता और उनके वैश्विक प्रभाव की याद दिलाता है. वर्तमान डेटा गंभीर चिंता का सुझाव नहीं देता. लेकिन सतर्कता आवश्यक है. वैज्ञानिक रूप से सूचित उपाय न केवल HMPV के प्रभाव को HMPV श्वसन रोगजनकों की जटिलता और उनके वैश्विक प्रभाव की याद दिलाता है. वर्तमान डेटा गंभीर चिंता का सुझाव नहीं देता. लेकिन सतर्कता आवश्यक है. वैज्ञानिक रूप से सूचित उपाय न केवल HMPV के प्रभाव को कम करेंगे, बल्कि भविष्य के प्रकोपों के लिए हमारी तैयारियों को भी बेहतर बनाएंगे.