दिल्ली-NCR में मौसमी बीमारी से बड़ी समस्या है पीलिया,अनदेखी मुख्य कारण
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क्यों दिल्ली-एनसीआर में अधिक फैलता है पीलिया, जानें कारण और बचाव

दिल्ली-NCR में मौसमी बीमारी से बड़ी समस्या है पीलिया,अनदेखी मुख्य कारण

पेयजल और सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं हो पाया। इससे कई स्थानों पर पाइपलाइन के पास ही सीवेज लाइनें चलती हैं, जहां से सीवेज का रिसाव पेयजल तक पहुंच जाता है।


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दिल्ली-एनसीआर में पीलिया (जॉन्डिस) अब केवल मौसम संबंधी बीमारी नहीं रह गई है बल्कि एक लगातार बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। अब गुलाबी सर्दी में भी लोग पीलिया का शिकार हो रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में हर वर्ष हजारों लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं और आंकड़े दिखाते हैं कि इस क्षेत्र में पीलिया के मामले देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्षेत्र में ये समस्या इतनी आम क्यों है? मौसम? पानी? खान-पान? या हमारी जीवनशैली? इस बारे में जब हमने सूचना एकत्र करना प्रारंभ किया तब असली कहानी सामने आई, जो हमारी सोच से कहीं अधिक गहरी और वैज्ञानिक है...


दिल्ली-एनसीआर में पीलिया का कारण क्या है?

दिल्ली-एनसीआर में पीलिया यानी जॉइंडिस बढ़ने की सबसे बड़ी वजह है पानी और सीवेज सिस्टम का टकराव। साथ ही दिल्ली-एनसीआर की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उस गति से सीवेज और पेयजल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं हो पाया। इसके परिणाम स्वरूप कई स्थानों पर पाइपलाइन के पास ही सीवेज लाइनें चलती हैं, जहां से सीवेज का रिसाव पेयजल तक पहुंच जाता है।

इस विषय में साल 2022 में इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित शोध में बताया गया कि दिल्ली के 33% पानी के नमूनों में फीकल कोलिफॉर्म (मल के बैक्टीरिया) पाए गए हैं, जो सीधे हेपेटाइटिस-A और हेपेटाइटिस-E संक्रमण और पीलिया से जुड़े हैं।



यमुना की गंदगी का दिल्ली-एनसीआर पर प्रभाव

दिल्ली-एनसीआर में यमुना की प्रदूषण स्थिति भी मुख्य रूप से हेपेटाइटिस की बीमारी को बढ़ावा देती है। यमुना आज दुनिया की सबसे दूषित नदियों में से एक मानी जा रही है। Central Pollution Control Board (CPCB) 2023 रिपोर्ट के अनुसार, यमुना के दिल्ली वाले हिस्से में अमोनिया, नाइट्रेट, फॉस्फेट, बीओडी और फीकल कोलिफॉर्म लेवल सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक पाए गए। हरियाणा से आने वाले औद्योगिक कचरे और दिल्ली के सीवेज डिस्चार्ज के कारण यमुना में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया पानी के संपर्क के माध्यम से पीलिया के केस बढ़ाते हैं।


बाहर के खाने का अधिक शौक और स्वच्छता की कमी

दिल्ली-एनसीआर में स्ट्रीट फूड की लोकप्रियता बहुत अधिक है। लेकिन खुली सड़क, धूल, दूषित पानी और बर्फ का उपयोग बीमारी फैलाने में अहम भूमिका निभाता है। एम्स (AIIMS) दिल्ली ने साल 2021 में किए एक अध्ययन में सड़क के भोजन में उपयोग किए गए पानी के 47% नमूनों में हेपेटाइटिस वायरस और फीकल बैक्टीरिया मिले। यह संक्रमण सीधे लिवर पर हमला करता है और पीलिया का रूप ले लेता है।


मानसून और पोस्ट-मॉनसून जॉइंडिस

दिल्ली-एनसीआर में जुलाई से अक्टूबर के बीच पीलिया के मामले अचानक बढ़ जाते हैं। इसका कारण है बारिश में पानी रुकना, पाइपलाइन लीक होना और दूषित पानी की सप्लाई। लेकिन यदि इन समस्याओं के सुधार पर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तब बिना मॉनसून के भी पीलिया का संक्रमण फैलता रहता है।

साल 2022 के नेशनल सैंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल (NCDC) डेटा के अनुसार, इस मौसम में दिल्ली में पीलिया के कुल मामलों का लगभग 63% सामने आता है। हालांकि पूरे साल भी इस संक्रमण से पीड़ित लोगों की समस्या अच्छी-खासी होती है।



क्यों फैलता है पीलिया?

पीलिया फैलने के मुख्य कारणों में स्वास्थ्य जागरूकता की कमी भी बड़ी वजह है। साथ ही इसके लक्षणों को पहचानने में हुई देरी इसके उपचार को कठिन बना देती है। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ (PGI- Chandigarh) के साल 2020 अध्ययन के अनुसार दिल्ली-एनसीआर के 52% लोग पीलिया के शुरुआती लक्षणों जैसे, थकान, हल्का बुखार, भूख कम लगना, शरीर पीला पड़ना को सामान्य कमजोरी मानकर इलाज देर से कराते हैं। जितनी देर संक्रमण शरीर में फैलता है, जिगर (लिवर) को उतना अधिक नुकसान होता है।



पीलिया बार-बार क्यों लौट आता है?

जहां दूषित पानी लगातार मिलता है, वहां संक्रमण रुकता नहीं। यही कारण है कि बहुत से परिवारों में हर साल किसी न किसी सदस्य को पीलिया हो जाता है। जब मूल कारण जैसे, पानी का शुद्धिकरण नहीं होता, तब तक बीमारी एक चक्र की तरह खुद को दोहराती रहती है।


पीलिया से बचाव के उपाय

दिल्ली-एनसीआर में पीलिया के मामलों को बढ़ने से रोकने के लिए डॉक्टर्स और शोध तीन अत्यधिक प्रभावशाली सुझाव देते हैं...

-उबलकर ठंडा किया हुआ पानी या RO/UV फिल्टर का पानी ही पिएं।

-बाहर के जूस, सड़क की बर्फ, गोल-गप्पे का पानी और खुले पेय पदार्थों का सेवन करने से बचें।

- हर साल हेपेटाइटिस-A और हेपेटाइटिस-E वैक्सीन और रोकथाम के बारे में कम से कम डॉक्टर से एक बार मिलकर जरूर बात करें।


हेपेटाइटिस-ए और ई में क्या अंतर है?

दोनों ही वायरस लिवर को संक्रमित करके पीलिया का संक्रमण पैदा करते हैं। लेकिन फिर भी Hepatitis-A और Hepatitis-E एक जैसे नहीं हैं। क्योंकि इनके फैलने का तरीका, गंभीरता, जोखिम-समूह और गर्भावस्था पर प्रभाव, सब अलग-अलग हैं...

हेपेटाइटिस-ए वायरस (HAV) बच्चों और युवाओं में अधिक फैलता है। ये भीड़-भाड़, स्कूल, हॉस्टल, रोड साइड फूड के कारण अधिक फैलता है। यह संक्रमण आमतौर पर हल्का रहता है और खुद ही ठीक हो जाता है। यह लिवर को भी अधिक नुकसान नहीं पहुंचाता है। प्रेग्नेंट महिलाओं में यह संक्रमण हो जाए तो आसानी से ठीक हो जाता है और बच्चे के लिए भी कोई खास जोखिम नहीं होता है।

हेपेटाइटिस-ई (HEV) वायरस युवाओं और वयस्कों में अधिक फैलता है। इसका संक्रमण मुख्य रूप से दूषित पानी वाले स्थानों के आस-पास या मॉनसून सीज़न में अधिक फैलता है।

इसका संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है, जिससे लिवर फेलियर का खतरा अधिक रहता है। यदि किसी प्रेग्नेंट महिला को यह संक्रमण हो जाए तो यह बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है। प्रीमेच्यॉर डिलिवरी का कारण बन सकता है। कई बार जानलेवा हो सकता है।



हेपेटाइटिस का इलाज क्या है?

हेपेटाइटिस-ए और ई के उपचार की बात करें तो ए के लिए टीका उपलब्ध है, जो बच्चों को भी लगाया जाता है। लेकिन हेपेटाइटिस-ई का टीका आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है क्योंकि यह कुछ विशेष परिस्थितियों में ही लगाया जाता है, इसके अपने चिकित्सा संबंधी कारण हैं।

दोनों ही हेपेटाइटिस के उपचार में एंटिबायोटिक नहीं लगते। क्योंकि ये वायरस-जनित हैं। इसलिए इनके उपचार का मुख्य उपाय होता है लिवर को आराम देना। साफ पानी पीना, हाई-कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन लेना, लगातार डॉक्टर निगरानी में रहना। लेकिन हेपेटाइटिस-ई में मरीज को अधिक समय तक और सख्त निगरानी की आवश्यकता होती है।


दिल्ली-एनसीआर में पीलिया कोई संयोग नहीं बल्कि पर्यावरण, पानी, इंफ्रास्ट्रक्चर और जीवनशैली से जुड़ी एक संयुक्त समस्या है। जब तक पानी सुरक्षित नहीं होगा, भोजन स्वच्छ नहीं होगा और जागरूकता नहीं बढ़ेगी तो यह बीमारी हर साल लौटती रहेगी। इसलिए सुरक्षा के लिए सतर्कता ही बहुत आवश्यक है। आप अपने स्तर पर जो कर सकते हैं, उसमें घर में पानी की टंकी की साल में दो बार सफाई कराना, बोरवेल/सप्लाई के पानी की टेस्टिंग की आवृत्ति बढ़ाना लाभकारी रहेगा।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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