Oral cancer in India Tobacco use statistics Smokeless tobacco effects Gutka and cancer link India cancer survival rate
x
डरा रहे हैं बढ़ते ओरल कैंसर के आंकड़े, देश में स्थिति चिंताजनक है।

देश में हर तीसरा कैंसर मरीज Oral Cancer की गिरफ्त में,औसत उम्र 5 साल

ब्रेस्ट कैंसर के बाद होंठ और मुंह का कैंसर, दूसरा सबसे आम प्रकार का कैंसर है। अकेले 2022 में ओरल कैंसर के 1.43 लाख मामले सामने आए और 79,979 डेथ रिपोर्ट की गईं।


Oral Cancer: भारत में मौखिक कैंसर का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है और इसकी सबसे बड़ी वजह है तंबाकू और शराब का सेवन। हाल ही JAMA Network Open में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, भारत में हर तीन ओरल कैंसर मरीजों में से एक पांच वर्षों के भीतर अपनी जान गंवा देता है। देश में ऐसे मरीजों की पांच वर्ष तक जीवित रहने की दर केवल 37.2% है, जो विश्व स्तर पर बेहद चिंताजनक आंकड़ा है।

वैश्विक आँकड़ों में भारत की बड़ी भागीदारी

साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में जितनी मौतें ओरल कैंसर के चलते हुईं, उनकी 32.9% डेथ केवल हमारे देश में हुईं। साथ ही दुनिया में ओरल कैंसर के जितने नए केस पूरी दुनिया से सामने आए, उसके 28.1% नए मामले हमारे देश में देखने को मिले। वहीं, साल 2022 में, भारत में 14.13 लाख कैंसर मामले और 9.16 लाख मौतें दर्ज की गईं। ब्रेस्ट कैंसर के बाद होंठ और मुंह का कैंसर, दूसरा सबसे आम प्रकार का कैंसर है। अकेले 2022 में ओरल कैंसर के 1.43 लाख मामले सामने आए और 79,979 डेथ रिपोर्ट की गईं।

क्षेत्रीय विषमताएं: कहां कितनी उम्मीद?

जहां अहमदाबाद जैसे शहरी क्षेत्रों इस कैंसर से पीड़ितों के जीवित रहने की दर 58.4% है, वहीं मणिपुर में यह गिरकर केवल 20.9% रह जाती है। केरल के तिरुवनंतपुरम और कोल्लम में क्रमश: 44.6% और 43.1% जीवित रहने की दर देखने को मिली, जिसका श्रेय मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और बेहतर स्क्रीनिंग को जाता है। शहरी क्षेत्रों में इस तरह के कैंसर की स्क्रीनिंग की दर औसतन 48.5% है। जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल 34.1% है।

उम्र, कैंसर का स्टेज और प्रकार: कौन ज्यादा खतरे में?

45 साल से कम उम्र के पुरुषों में जीवित रहने की दर 54.1% रही, जबकि 65+ आयु के रोगियों के लिए यह 39.1% पर सिमट गई। अगर कैंसर का पता शुरुआती अवस्था में चल जाए, तो 70% मरीज पांच साल तक जीवित रहते हैं, लेकिन जब यह शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल जाता है, तो दर केवल 9% रह जाती है। करीब 89% मामलों में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा पाया गया।

धूम्ररहित तंबाकू और गुटखे का बढ़ता खतरा

डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि गुटखा और पान को होठों या जीभ के नीचे रखने से मसूड़ों, होंठों और जीभ का कैंसर विकसित हो सकता है। साथ ही, मानव पेपिलोमा वायरस (HPV) और आनुवंशिक कारण भी भूमिका निभाते हैं। गुटखा में मौजूद रसायन लार के साथ मिलकर लाल रंग का घोल बनाते हैं, जिससे झूठी ऊर्जा, भूख में कमी और उत्साह की अनुभूति होती है- यही कारण है कि यह निम्न वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय है।

गुटखा विज्ञापन और सांस्कृतिक प्रभाव

विज्ञापन कंपनियां तंबाकू पर लगे प्रतिबंधों को चकमा देकर वैकल्पिक उत्पादों के नाम पर गुटखा और पान मसाला का प्रचार कर रही हैं। फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों द्वारा इन ब्रांड्स का समर्थन, कम आय और शिक्षा स्तर वाले लोगों में इसकी लोकप्रियता को बढ़ाता है। यह प्रवृत्ति न केवल स्वास्थ्य के लिए घातक है बल्कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी भारी बोझ डाल रही है।

दक्षिण एशिया में तंबाकू की महामारी

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS) के अनुसार, भारत में 19.94 करोड़ लोग धूम्ररहित तंबाकू का सेवन करते हैं। यह समस्या विशेष रूप से दक्षिण एशिया में गंभीर है, जहां इस विषय पर शोध की कमी है। क्योंकि अधिकांश अध्ययन अमेरिका और यूरोप केंद्रित होते हैं, जहां यह समस्या नगण्य है।

तेलंगाना: तंबाकू पर सबसे ज्यादा खर्च

वर्ष 2023–24 के घरेलू उपभोग सर्वे के अनुसार, तेलंगाना दक्षिण भारत में पान, तंबाकू और नशे पर सबसे अधिक खर्च करने वाला राज्य है। ग्रामीण इलाकों में ₹396 प्रति व्यक्ति प्रति माह खर्च किया जाता है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। यहां पुरुषों में तंबाकू सेवन की दर 26.6% और महिलाओं में 7.2% है, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

नीतियों में कमी और भविष्य की चुनौती

हालांकि भारत में राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम जैसे प्रयास हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर स्क्रीनिंग बेहद कम है। केवल 2% वयस्कों की कभी ओरल कैंसर की जांच हुई है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जहां तंबाकू और शराब का उपयोग ज्यादा है, वहां पुरुषों में जीवित रहने की दर और कम है। मौजूदा नीतियां या तो कमजोर हैं या उनका पालन सही से नहीं हो रहा।

तंबाकू नियंत्रण आज की जरूरत

भारत को तंबाकू और धूम्ररहित तंबाकू के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की सख्त जरूरत है। नीति, शिक्षा, जागरूकता, स्क्रीनिंग और सेलेब्रिटी जवाबदेही को मिलाकर ही इस जटिल समस्या का समाधान किया जा सकता है। अन्यथा, ओरल कैंसर यानी मुंह का कैंसर न केवल आवाज छीनता रहेगा बल्कि ज़िंदगियों को भी लीलता रहेगा।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

Read More
Next Story