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महिलाओं को यूरिन से जुड़ी समस्याएं अधिक क्यों होती हैं?

महिलाएं वॉशरूम अधिक जाती हैं? क्या इनका ब्लैडर पुरुषों से छोटा है?

लंबे समय तक यूरिन होल्ड करने का एक और खतरा है ब्लैडर का अत्यधिक फैल जाना। इसमें मूत्राशय फूल जाता है और सामान्य रूप से सिकुड़ने की क्षमता खो देता है।


Urine Infection: परिवार के साथ किसी टूर पर जाना हो या ऑफिस की तरफ से कोई ट्रिप प्लान करनी हो। महिलाएं अक्सर बाथरूम जाने की स्थिति को लेकर असहज हो जाती हैं। हालांकि वर्कप्लेस पर अब स्थितियां सुधरने लगी हैं लेकिन यह सुधार अभी बहुत सीमित है। वहीं फैमिली ट्रिप पर भी महिलाओं को इस तरह का निर्देश अक्सर दिया जाता है 'किसी को वॉशरूम जाना हो तो हो आओ नहीं तो बीच में गाड़ी रोकने के लिए मत कहना...' इस तरह की स्थिति महिलाओं को सायकॉलजिकली स्ट्रेसफुल बनाती है, जो समय के साथ इनके ब्लेडर की होल्डिंग कैपेसिटी को कम करती है।

यहां तक कि अब तो इस टॉपिक पर स्टैंडअप कॉमेडी में महिलाओं पर निशाना साधा जाता है। हालांकि वहां ये दिखाने का प्रयास भी किया जाता है कि महिलाओं का ब्लेडर पुरुषों की तुलना में छोटा होता है शायद, इसलिए इन्हें बार-बार वॉशरूम जाना पड़ता है। इस तरह की स्थितियों के क्या कारण हैं... हमने गायनेकॉलजिसट शुचि कालिया से जानने का प्रयास किया...

छोटा ब्लैडर है बड़ी गलतफहमी!

डॉक्टर शुचि कालिया बताती हैं 'ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का ब्लेडर छोटा होता है। पुरुष और महिलाओं दोनों के ब्लेडर में 400 से 600 एमएल मूत्र रोकने की क्षमता होती है। लेकिन दोनों की शारीरिक संरचना अलग होना और महिलाओं की परवरिश में अंतर होना, ये दो मुख्य कारण हैं, जिनके चलते महिलाओं को पुरुषों की तुलना में वॉशरूम अधिक बार जाना पड़ सकता है।'

डॉक्टर कालिया अपनी बात जारी रखती हैं 'महिलाओं और पुरुषों का ब्लैडर साइज में तो बराबर होता है। लेकिन अंतर इस बात से शुरू होता है कि ब्लैडर को घेरने वाले दूसरी बॉडी स्ट्रक्चर्स का दबाव कितना बनता है। जैसे, पुरुषों में ब्लैडर प्रॉस्टेट के ऊपर और रेक्टम के सामने होता है। लेकिन महिलाओं में ब्लैडर यूटेरस और वेजाइना के साथ एक कॉम्पैक्ट पेल्विक एरिया में होता है। यानी पुरुषों का ब्लेडर महिलाओं के ब्लेडर की तुलना में अपेक्षाकृत खुली जगह में होता है और उस पर दूसरे बॉडी पार्ट्स का दबाव आमतौर पर उतना नहीं बनता है। इस कारण पुरुषों को यूरिन का प्रेशर जल्दी फील नहीं होता, जितना जल्दी महिलाओं को होने लगता है। '

महिलाओं के शरीर की संरचना क्या अंतर बनाती है?

क्योंकि महिलाओं का ब्लैडर अन्य बॉडी पार्ट्स जैसे, यूटेरस, वजाइना और कॉम्प्लैक्स पेल्विक एरिया से घिरा होता है, यही वजह है कि प्रेग्नेंसी के दौरान जब यूटेरस बढ़ता है तो अन्य बॉडी पार्ट्स के कारण उस पर दबाव भी बनता है, यही वजह है कि प्रेग्नेंसी में बार-बार यूरिन पास करने जाना एक आम स्थिति बन जाती है।

कुछ मामलों में गर्भावस्था के बिना भी महिलाओं का ब्लैडर स्पेस लिमिटेशन या हार्मोनल इफेक्ट्स के चलते जल्दी फुल होने का सिग्नल भेज सकता है। यानी ब्लैडर से फुल होने का संकेत आना, मतलब यूरिन पास करने जाने का प्रेशर बनना।

पेल्विक फ्लोर कैसे भूमिका निभाता है?

पेल्विक फ्लोर यानी मांसपेशियों की एक मजबूत परत जो मूत्राशय (ब्लैडर), बच्चेदानी (यूटेरस) और आंत (बाउल) को सहारा देती है। महिलाओं में ये स्ट्रक्चर समय के साथ या डिलीवरी के बाद पहले की तुलना में कमजोर हो सकता है। इसके कारण भी महिलाओं के ब्लैडर की यूरिन रोकने की क्षमता कम हो सकती है।

मूत्र को रोककर रखने में एक और अंग अहम रोल निभाता है और वह है बाह्य मूत्रद्वारी संवरणी पेशी यानी External Urethral Sphincter, ये एक तरह की मांसपेशी होती है, जो यूरिन को तब तक रोके रखने का काम करती है, जब तक आप टॉयलेट जाने के लिए सही वक्त और जगह नहीं पा जाते। ये मसल्स यूरिन को बाहर आने से रोककर रखती है, जैसे दरवाज़े पर एक गार्ड खड़ा हो, जो तब तक दरवाज़ा न खोले जब तक उसे ऐसा करने की अनुमति न मिले। इसलिए इस मसल्स को भी मजबूत रखना बहुत आवश्यक होता है।

इंफेक्शन और आदतों का अहम रोल

महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक होता है। इसका कारण है कि महिलाओं की यूरेथ्रा (यूरिन को शरीर से बाहर निकालने वाली नली) पुरुषों की तुलना में छोटी होती है। यूटीआई बार-बार होने के कारण ब्लैडर हाइपर सेंसेटिव हो सकता है और एक बार जब ब्लैडर हाइपरसेंसिटिव हो जाए तो इन्फेक्शन ठीक होने के बाद भी पेशाब की फ्रीक्वेंसी बढ़ी हुई महसूस हो सकती है।

परवरिश का भी अपना रोल

महिलाओं और पुरुषों की यूरिन हैबिट्स में सामाजिक स्थितियां भी अहम रोल निभाती हैं। किसी भी सफर के दौरान लड़कियों को छोटी उम्र से ही इस बात के लिए ट्रेंड किया जाता है कि यहां बॉशरूम है तो यूरिन पास कर आओ, आगे पता नहीं कितनी देर बाद जाने को मिलेगा। ऐसे में बच्चियां और महिलाएं यूरिन का प्रेशर ना होने पर भी यूरिन पास करने जाती हैं। और जब ये स्थिति लगातार बनी रहती है तो महिलाओं के ब्लेडर की यूरिन होल्ड करने की क्षमता कम होने लगती है।

जबकि लड़कों के लिए इस तरह की स्थिति नहीं होती है। उन्हें इस बारे में ज्यादा फ्रीडम मिलती है कि वे टॉयलेट का टाइम खुद तय करें। ऐसे में उनके ब्लेडर की यूरिन होल्ड करने की क्षमता मजबूत बनती है।

कैसे बढ़ाएं ब्लेडर की क्षमता?

महिलाएं अपने ब्लैडर को ट्रेनिंग देकर यूरिन होल्डिंग की क्षमता बढ़ा सकती हैं। इसके लिए धीरे-धीरे टॉयलेट जाने के बीच का समय बढ़ाना और पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़ करना काफी सहायक होता है।

नेशनल हेल्थ सर्विसेज (NHS) और ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजिकल सर्जन्स की सलाह के अनुसार, यूरिन होल्ड करने की क्षमता बढ़ाने में यूरिन पास करने जाने के बीच का समय बढ़ाकर और पेल्विक फ्लोर एक्सर्साइज करके ब्लेडर को ट्रेंड किया जा सकता है। यह तरीका खासतौर पर उन महिलाओं के लिए फायदेमंद है, जिन्हें ओवर ऐक्टिव ब्लेडर सिंड्रोम (Overactive Bladder Syndrome) या स्ट्रेस इनकॉन्टिनेंस (Stress Incontinence) यानी तनाव असयंम है।

डॉक्टर कालिया इसे एक्सप्लेन करते हुए बताती हैं 'ब्लैडर ट्रेनिंग और पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़, उन महिलाओं के लिए बहुत असरदार होते हैं, जिन्हें बार-बार पेशाब जाने की शिकायत रहती है, जिसे मेडिकल भाषा में ओवरऐक्टिव ब्लैडर सिंड्रोम कहते हैं। इसमें ब्लैडर बिना जरूरत के भी पेशाब का सिग्नल देने लगता है।

इसके अलावा ये उपाय उन महिलाओं के लिए भी मददगार हैं, जिन्हें स्ट्रेस इनकॉन्टिनेंस की परेशानी होती है। इसमें खांसने, छींकने, हँसने या भारी चीज़ उठाने पर अचानक यूरिन लीक (पेशाब टपक जाना) हो जाता है क्योंकि ब्लैडर पर दबाव पड़ता है और कंट्रोल नहीं रह पाता।

इन दोनों ही समस्याओं में ब्लैडर और मसल्स को कंट्रोल करना सिखाना बहुत जरूरी होता है, जो इन दोनों उपायों को अपनाकर किया जा सकता है। साथ ही यदि आपको इससे आराम ना मिले तो गाइनेकॉलजिस्ट से मिलकर आप मदद लें। सही गाइडेंस और दवाओं के सहारे यूरिन से जुड़ी इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।'

लंबे समय तक यूरिन रोकने के नुकसान

डॉक्टर कालिया बताती हैं कि जो लोग अक्सर यूरिन को लंबे समय तक रोककर रखते हैं, उनके ब्लेडर की मसल्स कमजोर हो सकती हैं। महिलाएं अक्सर ऐसा करती हैं, ऐसे में एक समय बाद ये दिक्कत आने लगती है कि लंबे समय तक पेशाब रोकने की आदत के कारण कमजोर हुई मसल्स के चलते ब्लेडर खुद को पूरी तरह खाली नहीं कर पाता है।

ऐसे में यूरिन इंफेक्शन होने या किडनी डैमेज होने तक का खतरा बढ़ सकता है। क्योंकि लंबे समय तक यूरिन रोकने से बैक्टीरिया कई गुना बढ़ जाते हैं, जो यूटीआई का कारण बनता है। इसके साथ ही यूरिन में जलन होना, यूरिन पास करते समय दर्द होना और बार-बार यूरिन जाने का प्रेशर बनने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

लंबे समय तक यूरिन होल्ड करने का एक और खतरा है ब्लैडर का अत्यधिक फैल जाना (distension)। इसमें मूत्राशय यानी ब्लैडर जरूरत से ज्यादा फूल जाता है और सामान्य रूप से सिकुड़ने की क्षमता खो बैठता है। बार-बार पेशाब रोककर रखने की आदत मूत्राशय को ज़रूरत से ज्यादा खींच देती है, जिससे इसकी सिकुड़ने की क्षमता घट जाती है और मूत्र पूरी तरह से बाहर नहीं निकलता, जिससे पेशाब रुकने या जमा होने की समस्या हो सकती है।

डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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