
Second Opinion: मरीजों की AI पर बढ़ती निर्भरता से बिगड़ रहे इलाज के तरीके
पैनल का निष्कर्ष था कि AI से जानकारी लें, निर्णय नहीं। विश्वसनीय स्रोतों से तथ्य जांचें और डॉक्टर की सलाह को प्राथमिकता दें।
आजकल मरीज अपनी बीमारी की जानकारी के लिए सबसे पहले डॉक्टर नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स जैसे ChatGPT, Gemini और Grok की मदद ले रहे हैं। इंटरनेट पर लक्षण गूगल करना, दवाइयों की जानकारी खोजना और खुद ही बीमारी की पहचान करने की कोशिश अब आम बात हो गई है। हालांकि, यह चलन मरीजों को त्वरित और मुफ्त जानकारी देता है, लेकिन चिकित्सकों के लिए यह एक नई चुनौती बनता जा रहा है। मरीज अब अक्सर पहले से बनी धारणा के साथ डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जिससे इलाज में भ्रम और विश्वास की कमी पैदा हो रही है।
इलाज में AI से बढ़ रही जटिलता
Second Opinion नामक चर्चा मंच पर देश के विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टरों ने इस विषय पर अपने विचार रखे। पैनल में शामिल थे:-
⦁ डॉ. रेमंड डॉमिनिक (ऑन्कोक्रिटिकल केयर, अपोलो प्रीतम कैंसर सेंटर)
⦁ डॉ. ए. अशोक कुमार (इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, रेला हॉस्पिटल)
⦁ डॉ. अरविंद संतोष (स्त्री रोग विशेषज्ञ)
⦁ डॉ. सोमा सुंदर (ऑर्थोपेडिक एवं स्पाइन सर्जन, कावेरी हॉस्पिटल)
AI की सुविधा बन रही अति-निर्भरता का कारण
डॉ. रेमंड डॉमिनिक ने कहा कि AI की लोकप्रियता जानकारी की आसान उपलब्धता की वजह से बढ़ रही है। इंटरनेट अब लग्ज़री नहीं, ज़रूरत बन चुका है। जानकारी तक पहुंच अच्छी बात है, लेकिन उसे समझदारी से इस्तेमाल करना जरूरी है। उन्होंने चेताया कि मरीज सामान्य जानकारी को व्यक्तिगत सलाह मान लेते हैं, जिससे उलझन, घबराहट और इलाज में देरी होती है। डॉ. अरविंद संतोष ने कहा कि AI शुरुआती जानकारी दे सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाले अक्सर सही सवाल नहीं पूछते, जिससे गलत नतीजे निकलते हैं।
साइबरकॉन्ड्रिया
लगातार ऑनलाइन सर्च करने की आदत अब "साइबरकॉन्ड्रिया" का रूप ले रही है — यानी छोटी सी परेशानी को गंभीर बीमारी मान लेना। डॉ. डॉमिनिक ने बताया कि कुछ मरीज ऑनलाइन जानकारी के आधार पर डॉक्टर की सलाह मानने से इनकार कर देते हैं, या देर से अस्पताल पहुंचते हैं। डॉक्टरों ने इस बात पर सहमति जताई कि AI को एक पूरक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, डॉक्टर की राय का विकल्प नहीं।
कार्डियोलॉजी में बढ़ रही घबराहट और भ्रम
डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि आजकल लोग सीने में मामूली दर्द को भी दिल का दौरा समझ लेते हैं, क्योंकि गूगल पर ऐसे लक्षण सबसे पहले गंभीर बीमारी से जोड़े जाते हैं। 20 साल का युवा भी सीने में खिंचाव को हार्ट अटैक समझ बैठता है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर मिलने वाली जानकारी अधिकतर पश्चिमी देशों पर आधारित होती है, जो भारत जैसे देशों की लाइफस्टाइल या हेल्थ प्रोफाइल से मेल नहीं खाती।
ऑर्थोपेडिक्स में 'ओवर-डायग्नोसिस' की बढ़ती समस्या
डॉ. सोमा सुंदर ने बताया कि कई मरीज अब AI की मदद से खुद ही X-ray या MRI की व्याख्या करने लगते हैं। छोटी उम्र से जुड़ी सामान्य समस्याएं जैसे हल्का डिस्क स्लिप या घुटने का डीजेनेरेशन AI टूल्स द्वारा खतरनाक बता दी जाती हैं। इससे अनावश्यक डर पैदा होता है। उन्होंने कहा कि अब कई मरीज केवल AI से मिली जानकारी की पुष्टि करवाने आते हैं, न कि इलाज करवाने।
हेल्थकेयर में डिजिटल साक्षरता की ज़रूरत
सभी विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल हेल्थ लिटरेसी को बढ़ाना ज़रूरी है — ताकि AI का उपयोग जिम्मेदारी से किया जाए। डॉ. अरविंद संतोष ने सलाह दी कि AI का इस्तेमाल केवल यह समझने के लिए करें कि किस विशेषज्ञ से मिलना है, न कि खुद इलाज करने के लिए। डॉ. डॉमिनिक ने बताया कि कई अस्पताल अब AI आधारित मेडिकल रिकॉर्ड सिस्टम, डिस्चार्ज समरी और डेटा आधारित इलाज में AI का इस्तेमाल कर रहे हैं — लेकिन इसका उपयोग सावधानी से करना होगा।
जानकारी और डॉक्टर की सलाह के बीच संतुलन ज़रूरी
डॉक्टरों का कहना है कि AI मरीजों को भले ही जागरूक बना रहा हो, लेकिन इससे डॉक्टरों पर अविश्वास भी बढ़ रहा है। दवाओं के नाम सर्च करने पर जो रिएक्शन लिस्ट मिलती है, वो मरीजों को घबरा देती है — जबकि कई बार वो रिएक्शन बहुत दुर्लभ होते हैं। डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि AI के ज़रिए ग्लोबल डेटा तो मिलता है, लेकिन उसे स्थानीय स्वास्थ्य परिवेश में समझना ज़रूरी है। AI कभी भी डॉक्टर की व्यावसायिक समझ और अनुभव का स्थान नहीं ले सकता।