
किशोर उम्र के बच्चे क्यों हो रहे अवसाद के शिकार, डिजिटल दुनिया वजह तो नहीं
'एडोलसेंस' भारतीय दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो रहा है, वहीं शिक्षक किशोरों की पहचान, आत्म-सम्मान पर सोशल मीडिया की पकड़ के बारे में चेतावनी दे रहे हैं
नेटफ्लिक्स की हिट सीरीज़ Adolescence, जो यूके की पृष्ठभूमि पर आधारित है, भारत में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में किशोरों, युवा वयस्कों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच। हालांकि भारत में सोशल मीडिया का मनोवैज्ञानिक असर कुछ हद तक अलग है क्योंकि यहां परिवार और संबंधों की जड़ें गहरी हैं, फिर भी इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों में कई समानताएं दिखती हैं।
किशोरों का नकली डिजिटल व्यक्तित्व
आज की डिजिटल पीढ़ी में, 14 साल की एक स्कूली छात्रा अगर इंस्टाग्राम पर ऐसा प्रोफाइल फोटो लगाती है जिसमें वह भारी मेकअप में, ब्यूटी पार्लर से तैयार होकर, उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व दिख रही हो — तो यह कई सवाल खड़े करता है। जबकि वही छात्रा पढ़ाई में होशियार, ईमानदार, मेहनती और जिम्मेदार हो सकती है। ऐसे में, क्या कारण है कि वह एक ‘नकली पहचान’ बनाने के लिए मजबूर है?
डीपी बन गया पहचान पत्र
आज के युवाओं के लिए इंस्टाग्राम या फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर एक दैनिक पहचान पत्र जैसा हो गया है। वे खुद को डांसर, सेलिब्रिटी, फिल्म स्टार या एथलीट के रूप में प्रस्तुत करते हैं। कुछ किशोर अपने रंग-रूप को छिपाने के लिए फिल्टर का सहारा लेते हैं। शिक्षकों का मानना है कि ‘लाइक्स’ और ‘मान्यता’ की खोज ने युवाओं को बेचैन कर दिया है। सुंदरता के मानक बदल चुके हैं — सब कुछ त्वरित मान्यता और ध्यान पाने के लिए किया जा रहा है।
नकलीपन की थकावट और उसका खतरा
यह सतत नकली छवि बनाए रखना थकाऊ और तनावपूर्ण हो सकता है। यह युवाओं को निराशा, अवसाद और चिंता की ओर ले जा सकता है — खासकर तब जब वे एकल परिवारों या व्यस्त माता-पिता वाले घरों में रहते हैं। किशोरावस्था की हार्मोनल और शारीरिक उलझनों के बीच, यह दुनिया और भी खतरनाक हो जाती है क्योंकि यहां सिर्फ प्रेरणादायक लोग ही नहीं, बल्कि डिजिटल शिकारी भी मौजूद हैं।
स्नैपचैट: मासूम दिखने वाला खतरा
दिल्ली की एक निजी स्कूल की शिक्षिका आयुषी राणा बताती हैं कि स्नैपचैट का उपयोग एक खतरनाक खेल बन सकता है। स्नैप्स के गायब हो जाने से किशोरों को झूठा आत्मविश्वास मिलता है, जिससे वे ‘सेक्सटिंग’ जैसे जोखिम भरे व्यवहार की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। इसके अलावा, ‘Quick Add’ जैसे फीचर शिकारियों को निजी बातचीत तक आसानी से पहुंचने देते हैं।
साइबर धमकी और मानसिक दबाव
साइबर-बुलिंग, ब्लैकमेलिंग और ऑनलाइन शोषण अब सिर्फ डरावनी कहानियां नहीं हैं — वे हकीकत हैं। खासकर लड़कियों पर इसका भावनात्मक दबाव अधिक होता है। वे हर बार ‘पोस्ट’ करते समय अपनी ‘स्वीकृति रिपोर्ट’ का इंतजार करती हैं — ‘लाइक्स’ की बाढ़ आत्मविश्वास देती है, लेकिन नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मनोबल तोड़ सकती हैं।
समाधान: विश्वास, संवाद और प्रेम
शिक्षकों और विशेषज्ञों की राय है कि किशोरों को सजा देने या सोशल मीडिया से दूर रखने से समस्या हल नहीं होगी। उल्टा, वे गुपचुप डिजिटल दुनिया में घुस जाएंगे। उन्हें समझाने, भरोसा देने और बिना निर्णय लिए संवाद करने की आवश्यकता है। उन्हें यह एहसास कराया जाना चाहिए कि वे अकेले नहीं हैं, और यह दौर गुजर जाएगा। सोशल मीडिया को रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए।
अडोलेसेन्स (किशोरावस्था) से सीख
नेटफ्लिक्स की सीरीज़ Adolescence एक त्रासदी में समाप्त होती है एक स्कूली लड़के की दुखद मौत। यह हमें यह सिखाती है कि किशोरों को दोषी ठहराने के बजाय, उन्हें समझना, सुनना और प्रेम देना ही एकमात्र रास्ता है। उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि वे अद्भुत हैं, और उनका जीवन सुंदर हो सकता है अगर वे स्वयं को स्वीकार करना सीखें।