
जीते जी मौत के समान है ये स्थिति, जानें सीनियर न्यूरोलजिस्ट ने क्या कहा
'मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है!' अक्सर थकान के बाद या किसी समस्या से परेशान होकर हम लोग ये बात बोल देते हैं। लेकिन सोचिए, क्या होता है जब दिमाग सच में काम ना करे!
What Is Brain Dead Condition: अगर कोई व्यक्ति ब्रेन डेड हो जाता है तो इसका मतलब है कि उसका दिमाग हमेशा के लिए काम करना बंद कर चुका है। उसका शरीर वेंटिलेटर की मदद से जिंदा दिख सकता है लेकिन असल में वह कभी होश में नहीं आएगा। यही वजह है कि ब्रेन डेड को मेडिकल साइंस में मृत्यु (Death) माना जाता है। अक्सर लोग इसे कोमा से कन्फ्यूज़ कर देते हैं जबकि दोनों में बड़ा फर्क है। यहां जानें सीनियर न्यूरोलजिस्ट डॉक्टर अमित बत्रा ने इस बारे में क्या बताया...
क्या होता है ब्रेन डेड?
जब मस्तिष्क (Brain) पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है और उसकी सभी न्यूरल एक्टिविटीज़ खत्म हो जाती हैं तो उसे ब्रेन डेड कहा जाता है। इस स्थिति में -
- व्यक्ति अपनी सांस खुद नहीं ले सकता, उसे वेंटिलेटर की जरूरत होती है।
- उसकी आंखों की पुतलियां रोशनी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देतीं।
- वह दर्द भी महसूस नहीं कर सकता।
- शरीर के कुछ अंग जैसे दिल, किडनी और लीवर वेंटिलेटर की मदद से थोड़ी देर तक काम कर सकते हैं।
कोमा और ब्रेन डेड में क्या अंतर है?
अक्सर लोग कोमा और ब्रेन डेड को एक जैसा मान लेते हैं, लेकिन ये दोनों पूरी तरह अलग स्थितियां हैं...
कोमा में दिमाग की हल्की हलचल बची रहती है, जिससे रिकवरी का चांस होता है। लेकिन ब्रेन डेड में दिमाग हमेशा के लिए बंद हो जाता है।
कोमा के मरीज की आंखों की पुतलियां कुछ हद तक प्रतिक्रिया कर सकती हैं लेकिन ब्रेन डेड व्यक्ति की पुतलियां पूरी तरह निष्क्रिय हो जाती हैं।
कोमा में EEG टेस्ट (दिमाग की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी जांचने वाला टेस्ट) में कुछ हलचल दिख सकती है जबकि ब्रेन डेड में EEG पूरी तरह फ्लैट रहता है।
ब्रेन डेड कैसे होता है?
कई कारणों से कोई व्यक्ति ब्रेन डेड हो सकता है, जैसे—
- सिर में गंभीर चोट (Road accident या कोई और वजह)
- ब्रेन हेमरेज (दिमाग में ब्लीडिंग)
- ब्रेन ट्यूमर
- ऑक्सीजन की कमी (जैसे डूबने की स्थिति में)
- कोई घातक संक्रमण, जो दिमाग को प्रभावित करे
क्या ब्रेन डेड से कोई वापस आ सकता है?
साफ शब्दों में कहें तो नहीं। ब्रेन डेड की स्थिति में दिमाग को ऑक्सीजन और ब्लड सप्लाई मिलनी बंद हो जाती है, जिससे उसकी कोशिकाएं मर जाती हैं। यह प्रक्रिया स्थायी (Permanent) और अपरिवर्तनीय (Irreversible) होती है। हालांकि, अगर ब्रेन फेलियर दवा के ओवरडोज़, ज़हर, या किसी इंफेक्शन की वजह से हुआ है तो कुछ मामलों में व्यक्ति बच सकता है। लेकिन अगर ब्रेन किसी चोट या स्ट्रोक से डेड हुआ है तो कोई भी वर्तमान इलाज उसे वापस नहीं ला सकता।
ब्रेन डेड के बाद मरीज कितने समय तक जीवित रहता है?
- यह पूरी तरह से वेंटिलेटर पर निर्भर करता है।
- आमतौर पर कुछ घंटे या कुछ दिन तक मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जा सकता है।
- लेकिन कुछ दिनों के बाद शरीर के दूसरे अंग भी फेल होने लगते हैं और मरीज पूरी तरह से मौत के करीब पहुंच जाता है।
कैसे तय होता है कि कोई ब्रेन डेड है?
ब्रेन डेड घोषित करने से पहले डॉक्टर कई तरह के टेस्ट करते हैं और एक लंबा प्रॉसेस फॉलो किया जाता है...
- मरीज की सांस खुद से चल रही है या नहीं चेक किया जाता है।
- उसकी आंखों की पुतलियों की प्रतिक्रिया जांची जाती है।
- EEG और दूसरे न्यूरोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं।
- यह टेस्ट 24 घंटे बाद दोबारा दोहराया जाता है।
- अगर दोनों बार रिपोर्ट एक जैसी रहती है और कोई दिमागी हलचल नहीं दिखती तो डॉक्टर मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर देते हैं।
ब्रेन डेड घोषित करने की प्रक्रिया और सावधानियां
- डॉक्टर अमित बताते हैं कि किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करने से पहले 24 घंटे बाद दोबारा जांच की जाती है। अगर इस दौरान भी रिपोर्ट पहले जैसी ही रहती है और कोई सुधार की संभावना नहीं दिखती तो माना जाता है कि मरीज कभी ठीक नहीं हो सकता।
- ऐसे में डॉक्टर या हॉस्पिटल स्टाफ मरीज के परिवार से बात करते हैं। उन्हें यह समझाने की कोशिश की जाती है कि उनके अपने की रिकवरी अब संभव नहीं है, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग अभी भी ठीक से काम कर रहे हैं। ऐसे में, अगर परिवार सहमत हो, तो इन अंगों को जरूरतमंद लोगों में ट्रांसप्लांट करके कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं, क्योंकि एक बार अंगों ने काम करना बंद कर दिया तो फिर कोई मौका नहीं बचेगा।
ब्रेन डेड घोषित करने में बरती जाने वाली सावधानियां
डॉक्टर बत्रा बताते हैं कि ब्रेन डेड घोषित करना एक बहुत बड़ी मेडिकल ज़िम्मेदारी होती है। इसलिए इसमें पूरी सावधानी बरती जाती है। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से ये स्टेप लिए जाते हैं...
- मरीज की जांच के लिए डॉक्टरों का एक पैनल बनाया जाता है, जिसमें अलग-अलग विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
- यह पैनल मरीज के सभी क्लिनिकल एग्जामिनेशन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दिमाग की कोई भी एक्टिविटी बाकी नहीं बची है।
- पहली जांच के बाद 24 घंटे बाद दोबारा परीक्षण किया जाता है। इसका मकसद यह देखना होता है कि मरीज की स्थिति में कोई बदलाव तो नहीं आया।
- अगर दोनों बार रिपोर्ट एक जैसी रहती है और मरीज में कोई न्यूरोलॉजिकल हलचल नहीं होती, तो पैनल पुष्टि करता है कि मरीज ब्रेन डेड है, न कि कोमा में।
- यह पूरी प्रक्रिया बेहद सख्त प्रोटोकॉल के तहत होती है, ताकि कोई भी गलती न हो और मरीज की स्थिति को सही तरीके से आंका जा सके।
ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजन क्या कर सकते हैं?
डॉक्टर अमित बत्रा एमडी, डीएम, सीनियर कंसल्टेंट न्यूरॉलजिस्ट हैं और पिछले 16 साल से मेडिकल क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। इनका कहना है कि ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर में हार्ट, लिवर, किडनी, फेफड़े जैसे कुछ अंग कुछ समय तक ठीक रहते हैं। यही वजह है कि ऑर्गन डोनेशन (अंगदान) का यह सबसे सही मौका होता है। अगर मरीज के परिवारजन सहमत हों तो उसके स्वस्थ अंगों को जरूरतमंद मरीजों में ट्रांसप्लांट करके कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।