WHO report public health Sustainable Development Goals mortality rate quality of life
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यही स्थिति बनी रही तो आने वाली पीढ़ियों की बढ़ जाएगी मुसीबत!

WHO हेल्थ रिपोर्ट कार्ड 2024: आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर चेतावनी!

गैर-संक्रामक बीमारियां (NCDs) जैसे हृदय रोग, डायबिटीज़, कैंसर और सांस से जुड़ी समस्याएं अब सिर्फ हेल्थ इश्यू नहीं हैं, ये एक बढ़ता वैश्विक संकट हैं...


Non-Communicable Diseases: कभी सोचा है कि बीमारियां सिर्फ शरीर पर नहीं, आपके पूरे जीवन, आपकी कमाई, आपके समाज और यहां तक कि आपके देश की अर्थव्यवस्था पर भी चोट करती हैं? WHO के चीफ़ टेड्रॉस अधानोम घेब्रेयेसस ने ताज़ा हेल्थ रिपोर्ट (World Health Statistics 2024) पेश करते हुए जो कहा, वो हम सभी के लिए एक वेकअप कॉल है...

“गैर-संक्रामक बीमारियां (NCDs) जैसे हृदय रोग, डायबिटीज़, कैंसर और सांस से जुड़ी समस्याएं अब सिर्फ हेल्थ इश्यू नहीं हैं, ये एक बढ़ता वैश्विक संकट हैं।”

डेटा क्या कहता है?

रिपोर्ट में 2022 तक के आंकड़े शामिल हैं, और तस्वीर थोड़ी डरावनी है। अगर यही ट्रेंड चलता रहा, तो 2050 तक हर साल मरने वाले 9 करोड़ लोगों में से 86% की मौतें NCDs से होंगी। यानी 2019 की तुलना में 90% ज़्यादा मौतें। और ये संख्या सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, हर नंबर के पीछे एक ज़िंदगी है।

पुरानी प्रगति पर ब्रेक लग गया है

साल 2000 से 2015 तक हमने हेल्थ इंडिकेटर्स में अच्छी प्रगति की थी। जैसे...

माँ और बच्चे की मौत में भारी गिरावट

HIV, TB, मलेरिया जैसी बीमारियों पर काबू

एवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी 67 से बढ़कर 73 साल तक पहुंची। लेकिन कोविड ने ये पूरी स्पीड तोड़ दी। फिर साल 2020-2021 के बीच कोविड के कारण 336.8 मिलियन सालों का जीवन खो गया। यानी हर अतिरिक्त मौत का मतलब औसतन 22 साल की ज़िंदगी कम हो गई।

हेल्थ सिस्टम पर प्रेशर

महामारी के बाद से रुटीन टीकाकरण में गिरावट आई है। अच्छे हेल्थकेयर की पहुंच असमान हो गई है। नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिज़ीज़ (NTDs) का इलाज घटा है। टीबी और मलेरिया में जो सुधार था, वो उल्टा हो गया है।

प्रगति की रफ्तार धीमी क्यों?

WHO का कहना है कि बहुत से हेल्थ रिस्क तो कम हुए हैं। जैसे, धूम्रपान, शराब सेवन, बच्चों का कुपोषण, गंदा पानी और सफाई की कमी। इत्यादि। लेकिन वायु प्रदूषण अब भी हाई लेवल पर है और मोटापा (Obesity) लगातार बढ़ रहा है। हेल्थकेयर का खर्च कम करने में कोई ठोस सफलता नहीं मिली है। जबकि हेल्थ सर्विसेज़ तक पहुंच भी धीमी हो गई है। यानी 2015 से पहले जैसी तेज़ी अब नहीं दिखाई दे रही है।

जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य

साल 2024 की इस रिपोर्ट में पहली बार जलवायु परिवर्तन को हेल्थ से जोड़कर देखा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि वायु प्रदूषण, हीटवेव्स और क्लाइमेट क्राइसिस का सीधा असर आपके हार्ट, फेफड़ों और दिमाग़ पर पड़ रहा है। WHO ने कहा है कि आने वाले सालों में यह मुद्दा और बड़ा बनेगा।

अब क्या करें?

डॉ. समीरा अस्मा (WHO की असिस्टेंट DG) साफ कहती हैं “प्रगति कभी सीधी लाइन में नहीं चलती। ये गारंटी भी नहीं है कि आगे सब अच्छा ही होगा। हमें अब हर देश में सॉलिड, मीज़रबल एक्शन लेना होगा।”

हेल्थ को सिर्फ हॉस्पिटल का मामला न समझें। यह स्कूल, घर, काम और पर्यावरण, हर जगह की जिम्मेदारी है। हेल्थ इंवेस्टमेंट को खर्च नहीं, भविष्य की पूंजी समझिए। अगली बार जब आप जंक फूड चुनें या एक्सरसाइज़ छोड़ें, सोचिए कि आप अपनी लाइफ की उम्र काट रहे हैं। आपके हर एक फैसले में एक पूरी पीढ़ी की सेहत छुपी है। अब सोच बदलनी होगी, नहीं तो आँकड़े हमारी कहानी लिख देंगे!


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

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