
शरीर को अंदर से खोखला कर रहा है प्रदूषण, ब्रेन पर गंभीर प्रभाव
वायु में मौजूद प्रदूषक दिमाग तक दो तरीकों से पहुंच सकते हैं, रक्त प्रवाह के माध्यम से या फिर सीधा नाक के रास्ते घ्राण तंत्र (olfactory pathway) को पार करके...
प्रदूषण केवल हवा को गंदा नहीं कर रहा, यह इंसान को अंदर से बीमार भी बना रहा है। और सबसे पहले चोट वहां लगती है, जहां हम महसूस भी नहीं कर पाते अर्थात हमारे मस्तिष्क में। हम हमेशा मानते आए हैं कि प्रदूषण फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, खांसी, सांस की दिक्कत और गले में जलन दिखाई भी दे जाती है। इसलिए हम उन पर ध्यान दे देते हैं लेकिन असली खतरा चुपचाप नसों में, दिमाग में और दिल की धड़कनों में पनपता है...
दिमाग पर प्रदूषण का प्रभाव
प्रदूषण से भरपूर हवा मस्तिष्क में सूजन पैदा करने वाली हवा है, जो कोशिकाओं पर हमला करती है, रक्त नलिकाओं को टाइट कर देती है और दिमाग तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन को घटा देती है। हालांकि यह समस्या अचानक नहीं आती पहले छोटे-छोटे संकेत भेजती है, जिन्हें हम सामान्य मानकर अनदेखा कर देते हैं...
वर्ष 2024 में प्रकाशित Air Pollution and Neurological Diseases - Current State Highlights नामक समीक्षा-अध्ययन ने साफ बताया कि प्रदूषण केवल फेफड़ों या हृदय से जुड़ी बीमारी नहीं बल्कि सीधे मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला बड़ा कारक है। इस शोध के अनुसार, हवा में मौजूद सूक्ष्म कण, विशेषकर PM2.5, दिमाग में सूजन (neuro-inflammation), ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और रक्त-नलिकाओं के संकुचन जैसे बदलाव उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण मस्तिष्क तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन कम हो जाती है। इनमें से कोई भी परिवर्तन अचानक दिखाई नहीं देता, इसलिए लोग इसे सामान्य सिरदर्द, भारीपन या चक्कर जैसे हल्के लक्षण मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। शोध यह भी बताता है कि यही प्रक्रियाएँ धीरे-धीरे स्मृति में कमी, एकाग्रता में गिरावट और डिमेंशिया जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
इसके बाद 2025 में प्रकाशित Air Pollution and Brain Health - Environmental Health Review ने यह समझ को और मजबूत किया कि वायु में मौजूद प्रदूषक दिमाग तक दो तरीकों से पहुंच सकते हैं या तो रक्त प्रवाह के माध्यम से या फिर सीधा नाक के रास्ते घ्राण तंत्र (olfactory pathway) को पार करके। इस अध्ययन में बताया गया कि PM2.5 और उससे भी छोटे कणों के लगातार संपर्क में रहने से मस्तिष्क की संरचना में बदलाव दिखाई देते हैं, जैसे ग्रे मैटर और व्हाइट मैटर की मात्रा में कमी, जो बाद में मानसिक कमजोरी, अवसाद, याददाश्त में गिरावट और संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive abilities) में कमी को जन्म देते हैं। यह रिसर्च बताती है कि यह क्षति अक्सर चुपचाप बढ़ती है, बिना किसी अचानक और स्पष्ट लक्षण के। इसलिए इसका पता तभी चलता है जब नुकसान काफी बढ़ चुका होता है।
इसी क्षेत्र की अन्य शोधों ने और भी चिंताजनक संकेत दिए हैं। साल 2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क से मस्तिष्क कोशिकाओं में तनाव उत्पन्न करने के अलावा एपिजेनेटिक बदलाव भी उत्पन्न हो सकते हैं। यानी प्रदूषण शरीर के जीन अभिव्यक्ति (gene expression) को बदल सकता है, जो भविष्य में न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों जैसे, अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया की पूरी प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा देता है।
वहीं ScienceDirect पर 2024 में प्रकाशित शोध ने दिखाया कि जिन लोगों के आसपास PM2.5 का स्तर लगातार बना रहता है, उनमें ब्रेन स्ट्रक्चर में असामान्य बदलाव और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की आशंका काफी अधिक होती है, भले ही उनके फेफड़ों में कोई गंभीर समस्या दिखाई पड़े या न पड़े।
इन सभी अध्ययनों की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदूषण दिमाग पर धीरे-धीरे और लगातार हमला करता है। शुरुआत छोटे संकेतों से होती है जैसे, सिरदर्द, थकान, मानसिक धुंध (brain fog), चक्कर, ध्यान में कमी या नींद में असंतुलन। लेकिन यदि प्रदूषण का स्तर लगातार खराब रहे तो ये शुरुआती चेतावनियां आगे चलकर मस्तिष्क की लंबी अवधि वाली बीमारियों का कारण बन सकती हैं।
मस्तिष्क पर प्रदूषण के प्रभाव के लक्षण
ब्रेन पर प्रदूषण का बुरा असर हावी हो रहा है, इसका पहला लक्षण है हर समय रहने वाला सिरदर्द या सिर में भारीपन, जो साधारण नहीं बल्कि दिमाग का SOS सिग्नल होता है। लोग अक्सर कहते हैं कि आजकल सिर भारी रहता है, चक्कर आते हैं, शायद मौसम की वजह होगी। हालांकि हवा में मौजूद PM2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड दिमाग की रक्त नलिकाओं में सूजन पैदा करते हैं, जिससे रक्त प्रवाह धीमा पड़ता है, ऑक्सीजन कम होती है और यही सिरदर्द व चक्कर का कारण बनती है। यदि यह लक्षण प्रदूषण बढ़ने वाले दिनों में बार-बार हों तो इन्हें हल्के में लेना सीधा स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाता है।
दूसरा संकेत है ऊर्जा का खत्म हो जाना है। जैसे, शरीर पूरी तरह धीमा पड़ गया हो। यह थकान नहीं बल्कि शरीर की लड़ाई का संकेत है। क्योंकि प्रदूषण ऑक्सीजन के उपयोग को बाधित करता है और कोशिकाओं की ऊर्जा घट जाती है। हम इसे आलस या कमजोरी समझकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन असल में शरीर प्रदूषण के खिलाफ लड़ते-लड़ते थक चुका होता है।
तीसरा चेतावनी संकेत है, सांस में परेशानी और सीने में जकड़न है। यह केवल फेफड़ों की समस्या नहीं है। छाती भारी हो जाना, गहरी सांस में तकलीफ या तेज खांसी उस श्रृंखला की शुरुआत है जहां फेफड़ों में जलन के बाद सूजन रक्त तक पहुंचती है और फिर दिल व दिमाग पर दबाव बढ़ा देती है, जिससे हार्ट डिज़ीज़ और स्ट्रोक का खतरा बनता है। आज यह लक्षण मामूली लगता है। लेकिन अनदेखा किया जाए तो अचानक गंभीर रूप ले सकता है।
चौथी चेतावनी है ब्लड प्रेशर का अचानक बढ़ जाना। कई लोग बताते हैं कि BP हमेशा सामान्य था लेकिन इन दिनों बिना कारण बढ़ जा रहा है। प्रदूषण रक्त नलिकाओं को कठोर बना देता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। और हाई BP स्ट्रोक के सबसे आम कारणों में से एक है।
पांचवा संकेत है त्वचा में जलन, सूजन और एलर्जी होना। इसे अक्सर मौसम का प्रभाव मान लिया जाता था। लेकिन प्रदूषण के खिलाफ सबसे पहले त्वचा ही लड़ाई लड़ती है। लालपन, खुजली, पित्ती और सूजन यह शुरुआती चेतावनी है कि प्रदूषक शरीर में प्रवेश कर चुके हैं और अंदर के अंगो भी इनके बुरे प्रभाव के दबाव में हैं।
सर्दी में स्वस्थ कैसे रहें?
सर्दी में बीमारी का असली कारण ठंडी हवा या प्रदूषण नहीं होता बल्कि बीमार होने का कारण होता है लापरवाही। और इस लापरवाही के साथ ही बीमारी के शुरुआती लक्षणों को अनदेखा करना। जैसे...
सिरदर्द को दवाई से दबा देना
थकान को आराम की आवश्यकता मान लेना
BP को तनाव समझ लेना
सीने की जकड़न को मौसमी समस्या मान लेना
त्वचा की जलन को एलर्जी कहकर टाल देना
यही सब कारण हैं, जहां बीमारी हमारे शरीर पर बढ़त बना लेती है। यदि ये लक्षण बार-बार उसी समय दिखाई दें, जब हवा खराब हो तो यह किसी बीमारी की शुरुआत नहीं बल्कि शरीर की चेतावनी होती है।
सर्दी में बीमारियों से कैसे बचें?
घर से बाहर जाते समय N95 मास्क का उपयोग करें।
सुबह की वॉक के बजाय दोपहर या शाम की वॉक करें।
घर में वेंटिलेशन बनाए रखें और धूल ना जमने दें।
संभव हो तो घर में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें
रोज पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं
इलेक्ट्रोलाइट्स और एंटीऑक्सिडेंट लेते रहें
भोजन में विटामिन C, ओमेगा-3 इत्यादि लें
खुद ही डॉक्टर ना बनें बल्कि डॉक्टर का काम उन्हें ही करने दें और थोड़ी-सी समस्या होने पर ही इनसे मिलें और सही सुझाव और दवाओं का सेवन करें। बीमारी तब शुरू नहीं होती जब हम इसका उपचार कराने जाते हैं बल्कि बीमारी तब शुरू होती है, जब शरीर चेतावनी भेजता है और हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं। जो लोग अपने शरीर की आवाज सुनते हैं, वे बीमारियों से लड़ते नहीं वे बीमारियों को आने ही नहीं देते। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि प्रदूषण से बचाव केवल सांस/श्वसन से जुड़े रोगों से सुरक्षा नहीं देता बल्कि यह मस्तिष्क के स्वास्थ्य, मानसिक क्षमता और संपूर्ण जीवन-गुणवत्ता को सुरक्षित रखने के लिए अनिवार्य है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

