
वाराणसी से मक्का तक, तीर्थयात्राओं ने दुनिया भर के 19 शहरों को कैसे बदल दिया
गंगा से मक्का, डेल्फी से ब्यूनस आयर्स और कर्बला से लूर्डेस तक, कैथरीन हरलॉक की 'पवित्र स्थल' दर्शाती है कि कैसे तीर्थयात्राओं ने विभिन्न महाद्वीपों के इतिहास को नया रूप दिया है।
Holy Places: How Pilgrimage Changed the World - हज़ारों सालों से लोग समुद्र पार कर, उन स्थानों की ओर जाते रहे हैं जिन्हें वे पवित्र मानते हैं।
कुछ लोग शांति या इलाज की तलाश में जाते हैं, कुछ माफी माँगने या धन्यवाद देने के लिए, और कई सिर्फ इसलिए, ताकि वे खुद से बड़े किसी आध्यात्मिक शक्ति के करीब महसूस कर सकें। हालांकि ये यात्राएं व्यक्तिगत और आध्यात्मिक होती हैं, लेकिन वे जिन शहरों और कस्बों में जाकर रुकती हैं, उन पर भी इन यात्राओं की गहरी छाप पड़ती है।
ब्रिटिश इतिहासकार कैथरीन हरलॉक की नई किताब — Holy Places: How Pilgrimage Changed the World — बताती है कि कैसे दुनिया के 19 अलग-अलग तीर्थस्थलों ने वहाँ बसे शहरों की पहचान, उनकी अर्थव्यवस्था, उनका भविष्य और यहाँ तक कि उनकी सड़कों का नक्शा तक बदल दिया।
भारत में वाराणसी और गंगा का महत्व
भारत में, गंगा नदी — खासकर वाराणसी से गुजरता उसका हिस्सा — व्यक्तिगत और सार्वभौमिक दोनों तरह का महत्व रखती है। माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं।
वाराणसी, जिसे मृत्यु का शहर कहा जाता है, गंगा के किनारे 88 घाटों के साथ बसा है और इसे दुनिया के सबसे पुराने बसे हुए शहरों में से एक माना जाता है।
हरलॉक लिखती हैं —
“सबसे पुराना घाट शायद 5वीं सदी का मणिकर्णिका घाट है, लेकिन ज्यादातर घाट 18वीं सदी में फिर से बनाए गए। वाराणसी भगवान शिव का निवास है, वही शिव जिन्होंने देवी गंगा को धरती पर लाने में मदद की थी। यह जगह दुनिया का केंद्र मानी जाती है (खासकर मणिकर्णिका घाट), इसलिए भारत के हज़ारों तीर्थों में से यह वह जगह है जहाँ एक हिंदू को जीवन में कम से कम एक बार जरूर आना चाहिए।”
वाराणसी: मृत्यु का शहर और तीर्थ का केंद्र
वाराणसी का पवित्र दर्जा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि इसके भौगोलिक स्थान से भी जुड़ा है। गंगा के प्राकृतिक घाट पर बसा होने के कारण यह यात्रियों और स्थानीय लोगों का प्रमुख केंद्र बना।
19वीं सदी तक इसे “भारत का पवित्र शहर” कहा जाने लगा। मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार के लिए लाखों लोग यहाँ आते रहे।
यात्रा ने एक व्यवस्थित अर्थव्यवस्था का रूप ले लिया —
- पंडा परिवार (पर्यटक मित्र) अपने ग्राहकों के लिए प्रतिस्पर्धा करते,
- ब्राह्मण धार्मिक अनुष्ठान संभालते,
- और शहर की लगभग 20% आबादी पुजारियों की होती थी।
यह दर्शाता है कि तीर्थयात्रा वाराणसी की पहचान और जीविका का कितना बड़ा हिस्सा रही है।
गंगा: पवित्र नदी, लेकिन खतरे में
जहाँ एक ओर गंगा ने शहर को जीवन दिया, वहीं दूसरी ओर यह नदी लगातार प्रदूषित होती गई।
- गंगोत्री में इसका जल निर्मल होता है, लेकिन वाराणसी पहुँचते-पहुँचते यह सीवेज, औद्योगिक कचरे और अधजले शवों से जहर बन चुकी होती है।
- 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे साफ करने का वादा किया था, लेकिन स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ।
- आस्था और यह विश्वास कि गंगा देवी होने के कारण भ्रष्ट नहीं हो सकतीं, सफाई में भी बाधा बने।
हरलॉक लिखती हैं —
“20वीं सदी की शुरुआत में ही लोग इसके प्रदूषण को लेकर चिंतित हो उठे थे। The Lancet मेडिकल जर्नल में एक पत्र में गंगा को ‘एक विशाल सीवर’ कहा गया था।
खासतौर पर कानपुर के कारखानों का कचरा सीधे नदी में जाता था। अब तो यह और भी बढ़ गया है। हर दिन करीब 18 अरब लीटर बिना साफ किया गया सीवेज गंगा में गिरता है। भारी धातुएं, रासायनिक कचरा और खेती से बहकर आने वाले रसायनों से यह ‘जहरीला घोल’ बन चुकी है।
वाराणसी तक पहुँचते-पहुँचते, गंगा एक खुले नाले में बदल जाती है। हर साल लगभग 40,000 शव, जिनमें से कई अधजले होते हैं, गंगा में प्रवाहित कर दिए जाते हैं।”
हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक: तीर्थ से बदले शहर
गंगा के किनारे बसे हरिद्वार, प्रयागराज, शिप्रा नदी के किनारे बसे उज्जैन और गोदावरी के तट पर बसे नासिक — जहाँ कुंभ मेला होता है — तीर्थयात्रा की वजह से ही विशाल तीर्थ नगरों में बदल गए।
कुंभ के दौरान यहाँ एक साथ 3 करोड़ तक श्रद्धालु पहुँचते हैं। उनके लिए अस्थायी शहर बनाए जाते हैं —
- शौचालय,
- परिवहन,
- भोजन,
- स्वास्थ्य सेवाएं।
विश्व के अन्य पवित्र स्थल और उनकी कहानियाँ
- चीन का ताई शान पर्वत — जहाँ सम्राट और आम लोग स्वास्थ्य और शांति के लिए पूजा करते हैं।
- डेल्फी (यूनान) — जहाँ भविष्यवाणी करने वाली अपोलो की देवी का मंदिर राज्य की नीति निर्धारण तक में असर डालता था।
- जेरूसलम (इज़राइल) — यहूदी, ईसाई और मुसलमानों के लिए पवित्र, लेकिन संघर्ष और विवाद का केंद्र।
- मक्का (सऊदी अरब) — हज के लिए दुनियाभर से आने वाले लाखों मुसलमानों के कारण आधुनिक सुविधाओं से युक्त तीर्थनगर बना दिया गया।
- रोम (इटली) — ईसाइयों का केंद्र, वेटिकन सिटी से लेकर विश्व प्रसिद्ध चर्च तक।
- इस्तांबुल (तुर्की) — ईसाई, ऑर्थोडॉक्स, और फिर इस्लामिक इतिहास की परतें समेटे हुए।
- आयोना (स्कॉटलैंड) — शांति चाहने वालों का एकांत स्थल।
- कर्बला (इराक) — इमाम हुसैन की याद में लाखों शिया मुसलमानों की ‘अरबईन’ यात्रा।
- चीचेन इट्ज़ा (मेक्सिको) और बियर ब्यूट (अमेरिका) — उपनिवेशवाद ने जिनकी धार्मिक परंपराएं बाधित कीं, पर अब वे फिर से आध्यात्मिक केंद्र बन रहे हैं।
- मुक्सिमा (अंगोला) — जहाँ गुलाम बनाए गए लोगों को जबरन ईसाई बनाया गया, आज भी एक तीर्थ स्थान।
- अमृतसर (भारत) — स्वेच्छा से खरीदी ज़मीन पर बना स्वर्ण मंदिर, जो आज सिख पहचान का प्रतीक है।
- लूर्डेस और सेंट्स-मैरी-डी-ला-मेर (फ्रांस) — एक तरफ गंभीर इलाज की कामना से आने वाले तीर्थयात्री, तो दूसरी तरफ संगीत और नृत्य से भरी आस्थावान यात्राएं।
- राताना पा (न्यूजीलैंड) और ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) — जहाँ आध्यात्मिकता राजनीति से जुड़ गई है।
यात्रा जो दुनिया को बदलती है
हरलॉक की किताब यह दिखाती है कि तीर्थयात्रा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से भी दुनिया को बदलती है।
- सड़कें बनती हैं,
- कानून बदलते हैं,
- होटल खुलते हैं,
- सीमाएं खिसकती हैं।
आस्था सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि शहरों और समुदायों की रचना में भी बसती है।
गंगा के घाटों से लेकर जापान के मंदिरों तक — हर श्रद्धालु की यात्रा अपने पीछे केवल पदचिह्न नहीं, बल्कि एक नई जीवनशैली छोड़ जाती है।
यह किताब यही बताती है — आज भी, तकनीक और तेज रफ्तार वाली दुनिया में, तीर्थयात्रा इंसान और समाज दोनों को गहराई से प्रभावित करती है।