Subir Bhaumik

बांग्लादेश–पाक सैन्य नज़दीकियां, भारत की बढ़ती चिंता


बांग्लादेश–पाक सैन्य नज़दीकियां, भारत की बढ़ती चिंता
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भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हाल ही में ढाका में अपने समकक्ष खलीलुर रहमान को ये चिंताएं विस्तार से बताईं। लेकिन संकेत यही हैं कि यूनुस प्रशासन इन मुद्दों पर कोई कदम नहीं उठाएगा।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के करीबी सहयोगी मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) फ़ज़लुर रहमान ने एक चौंकाने वाला सुझाव देते हुए कहा है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनती है तो बांग्लादेश को सैन्य आक्रमण कर भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र पर कब्जा कर लेना चाहिए।

रहमान को यूनुस ने 2009 में बांग्लादेश राइफल्स (BDR) विद्रोह की जांच आयोग का प्रमुख बनाया था। उसी विद्रोह में कई सैन्य अधिकारियों की हत्या हुई थी। 2001 में BDR प्रमुख रहते हुए वे मेघालय सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (BSF) से भिड़ंत भड़काने के लिए भी बदनाम रहे। रहमान बांग्लादेश के उन पूर्व सैन्य अधिकारियों के गुट का हिस्सा माने जाते हैं, जो कट्टरपंथी, खुले तौर पर पाकिस्तान-समर्थक और भारत-विरोधी माने जाते हैं।

पाकिस्तान से तेजं से बढ़ते सैन्य संबंध

इसी गुट की सलाह पर यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ सैन्य-से-सैन्य सहयोग को तेज़ी से बढ़ा रही है। अक्टूबर-नवंबर में पाकिस्तानी सेना के चार उच्चस्तरीय दल बांग्लादेश पहुंचे। इससे पहले बांग्लादेशी सेना के दल पाकिस्तान जा चुके थे। 6–9 अक्टूबर के बीच पाकिस्तान की जॉइंट स्टाफ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल तबस्सुम हबीब ने ढाका में वरिष्ठ सैन्य एवं खुफिया अधिकारियों से मुलाकात कर खुफिया साझेदारी और सुरक्षा सहयोग पर बातचीत की।

24–28 अक्टूबर को पाकिस्तान के चेयरमैन जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी जनरल साहिर शामशाद मिर्ज़ा ढाका पहुंचे—दशकों में सबसे वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी। उन्होंने यूनुस, बांग्लादेश के सेना प्रमुख वाकर-उज़-जमान और नौसेना व वायु सेना प्रमुखों से मुलाकात की। चर्चा में व्यापार, निवेश और रक्षा सहयोग शामिल था।

8–12 नवंबर के बीच पाकिस्तानी नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीन अशरफ़ का दौरा हुआ। इस दौरान महत्वपूर्ण सुरक्षा समझौतों पर चर्चा हुई। पाकिस्तानी नौसेना ने चटगाँव के पेकुआ नौसैनिक अड्डे पर अपने पनडुब्बियों के लिए बर्थिंग और रीफ़्यूल-रिफिट सुविधाएं मांगी हैं—1971 के युद्ध के बाद बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तान की यह सबसे बड़ी दिलचस्पी मानी जा रही है। इस बीच पाकिस्तान की हेवी इंडस्ट्रीज़ कॉर्पोरेशन के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शाकिर उल्लाह खट्टक भी बांग्लादेश पहुंच चुके हैं। वे ISI के पूर्व विश्लेषण महानिदेशक और 7वीं सेना डिवीजन के कमांडर रह चुके हैं।

मुख्य समझौते

1. खुफिया सहयोग—ISI और बांग्लादेश की DGFI द्वारा संयुक्त समितियों की रूपरेखा पर चर्चा।

2. सैन्य प्रशिक्षण—पाकिस्तानी प्रशिक्षकों द्वारा बांग्लादेशी सैनिकों को प्रशिक्षण और उनके अधिक अधिकारियों को पाक सैन्य अकादमियों में भेजना।

3. संयुक्त सैन्य अभ्यास—थल, नौसेना और वायु सेना के स्तर पर।

4. पाकिस्तान से हथियारों की खरीद बढ़ाना**—विशेषकर चीन-डिज़ाइन किए गए पाकिस्तानी हथियार।

एक शीर्ष बांग्लादेशी रक्षा अधिकारी के अनुसार दोनों देश पाकिस्तान-सऊदी रक्षा संधि जैसी परमाणु सुरक्षा ढाल** वाली संधि की संभावना भी तलाश रहे हैं। बताया जा रहा है कि यूनुस को इस दिशा में अमेरिकी अधिकारियों का भी अप्रत्यक्ष समर्थन मिला है।

गुप्त कार्रवाई का खतरा बढ़ा

विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी संधि भविष्य में भारत के लिए दो-मोरचे वाले पारंपरिक युद्ध का खतरा बढ़ा सकती है, पर तत्काल चिंता इससे भी बड़ी है—दो-मोरचे वाले गुप्त आतंकवादी हमले। पाकिस्तान समर्थित इस्लामी आतंकवादी समूहों द्वारा भारत के पूर्व और पूर्वोत्तर में हमले की आशंका को सुरक्षा एजेंसियाँ गंभीर मान रही हैं। हर पाकिस्तानी सैन्य दल में ऐसे ISI अधिकारी शामिल थे जो पहले कश्मीर-पंजाब में आतंक फैलाने में शामिल रहे हैं। ढाका में उन्होंने कुछ सेवानिवृत्त बांग्लादेशी सैन्य अधिकारियों से गुप्त बैठकें कीं, जिनके संबंध कट्टरपंथी इस्लामी समूहों से हैं।

इन बैठकों के तुरंत बाद यूनुस ने नेशनल आर्म्ड रिज़र्व बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी—जिसे आलोचक इस्लामी सरकारी मिलिशिया की ओर पहला कदम बता रहे हैं। यह प्रस्ताव सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर अब्दुल्लाहिल अज़मी (जमात-ए-इस्लामी नेता ग़ुलाम आज़म के पुत्र) की पहल बताया जाता है।

दहशत बढ़ी

यूनुस प्रशासन ने अब तक कई कुख्यात इस्लामी कट्टरपंथियों को रिहा कर दिया है, जिनमें अंसरुल्लाह बांग्ला टीम के सरगना जाशिमुद्दीन रहमानी भी शामिल हैं—जो LeT और JeM से जुड़ा रहा है। ISI से जुड़े कई पाकिस्तानी आतंकी सरगनाओं ने इस साल फरवरी और अक्टूबर में बांग्लादेश के आठ सीमा जिलों में लंबा समय बिताया—राजशाही, चपाइनवाबगंज और रंगपुर सहित। सलाफी सम्मेलन में पाकिस्तान के अहेले-हदीस नेता इब्तिसाम इलाही ज़हीर ने भी उग्र भाषण दिए और स्थानीय कट्टरपंथियों से नेटवर्क बनाया।

पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता

भारतीय खुफिया एजेंसियों ने रोहिंग्या शरणार्थी कैंपों में ISI व पाक-समर्थित आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों का पता लगाया है। ARSA (अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी) में पाकिस्तानी मूल के रोहिंग्या बड़ी संख्या में सक्रिय हैं और LeT की संस्था फ़लाह-ए-इंसानियत लंबे समय से इन कैंपों में गुप्त रूप से सक्रिय है। सूत्रों के मुताबिक, 15,000 से अधिक युवा रोहिंग्या लड़ाके ARSA जैसे समूहों में भर्ती हो चुके हैं। यूनुस के सत्ता संभालते ही पाकिस्तानी प्रशिक्षक फ़लाह-ए-इंसानियत के guise में अलीकदम और रूम (चिटगांग हिल ट्रैक्ट्स) के पहाड़ी इलाकों में हथियार प्रशिक्षण दे रहे हैं। स्थानीय चकमा समुदाय का दावा है कि यह सब बांग्लादेशी सेना की 10वीं इन्फैंट्री डिविजन की जानकारी में हो रहा है।

भारतीय एजेंसियों का कहना है कि ISI बंगाली और रोहिंग्या युवाओं दोनों को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए तैयार कर रही है—साथ ही पाकिस्तान के हार्डकोर जिहादियों को भी बांग्लादेश के सुरक्षित ठिकानों से भारत में हमले कराने की योजना है।

भारत की चिंताएं और ढाका का मौन

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हाल ही में ढाका में अपने समकक्ष खलीलुर रहमान को ये चिंताएं विस्तार से बताईं। लेकिन संकेत यही हैं कि यूनुस प्रशासन इन मुद्दों पर कोई कदम नहीं उठाएगा। यूनुस और उनके सलाहकार न केवल भारत को लेकर कठोर रुख अपना रहे हैं, बल्कि पूर्वोत्तर भारत की संवेदनशीलताओं को भी बार-बार उभार रहे हैं—खासतौर पर उस समय जब भारत ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके सहयोगियों को आश्रय दिया हुआ है, जिसे कट्टरपंथी इस्लामी गुट भारत विरोधी मुद्दे के रूप में भुना रहे हैं।

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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