Vivek Katju

अलास्का शिखर वार्ता: बदलेगा यूक्रेन का भविष्य या बनने जा रहा है नया वैश्विक संतुलन?


अलास्का शिखर वार्ता: बदलेगा यूक्रेन का भविष्य या बनने जा रहा है नया वैश्विक संतुलन?
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अलास्का में ट्रंप और पुतिन की यह बैठक केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है। इससे यूक्रेन संकट, यूरोप की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संतुलन पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

अलास्का में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई शिखर बैठक को समाप्त हुए 30 घंटे हो चुके हैं। यह वर्ष 2025 की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक मानी जा रही है। इस वार्ता का न केवल यूक्रेन संकट, बल्कि पूरे यूरोप की सुरक्षा और वैश्विक घटनाक्रमों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में आने वाले सप्ताह इस बैठक के परिणामों के लिहाज से अहम होंगे, खासकर 17 अगस्त को यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की की व्हाइट हाउस यात्रा के साथ।

नेताओं की बयानबाजी से मिले संकेत

बैठक के बाद पुतिन और ट्रंप दोनों ने मीडिया को संबोधित किया। इसके अलावा ट्रंप ने फॉक्स न्यूज़ के एंकर और उनके समर्थक सीन हैनिटी को अलास्का में ही एक इंटरव्यू दिया। इन बयानों और इंटरव्यू से शिखर बैठक की तैयारी और उसके निष्कर्षों की स्पष्ट तस्वीर सामने आती है। इस बैठक को लेकर मीडिया विश्लेषण और वैश्विक नेताओं की टिप्पणियों के बावजूद दोनों नेताओं के बयानों और ट्रंप के इंटरव्यू के निष्कर्षों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पुतिन और ट्रंप, दोनों के बयानों से स्पष्ट है कि इस बैठक से पहले दोनों नेताओं ने अपने वरिष्ठ सलाहकारों को व्यापक मुद्दों पर बातचीत के निर्देश दिए थे। दोनों के बीच कई बार टेलीफोन पर भी चर्चा हो चुकी थी।




पुतिन ने कहा कि सामान्य तौर पर मेरी और राष्ट्रपति ट्रंप की सीधी बातचीत बहुत अच्छी रही है। हम कई बार बात कर चुके हैं। हमने फोन पर खुले तौर पर चर्चा की। राष्ट्रपति के विशेष दूत मिस्टर विटकॉफ़ कई बार रूस आए। हमारे विदेश मंत्रालयों और सलाहकारों के बीच लगातार संपर्क बना रहा। हम भलीभांति जानते हैं कि यूक्रेन की स्थिति इस बैठक का केंद्रीय मुद्दा थी हालांकि, ट्रंप ने सीधे तौर पर पुतिन के इस बयान की पुष्टि नहीं की, लेकिन उन्होंने परोक्ष रूप से इस बात को स्वीकार किया। ट्रंप ने कहा कि वे अब जेलेंस्की और अन्य यूरोपीय नेताओं से इस बातचीत के बारे में चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें उन बातों से सहमत होना होगा, जो विदेश मंत्री मार्को रुबियो, विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ और ट्रंप प्रशासन के अन्य प्रमुख लोगों—जैसे वित्त मंत्री स्कॉट बिसेंट और सीआईए निदेशक जॉन रैटक्लिफ ने की हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन हमारे पास कुछ बेहतरीन नेता हैं। वे शानदार काम कर रहे हैं।

यूक्रेन संघर्ष से संबंधित मुख्य बिंदु क्षेत्रीय नियंत्रण, यूक्रेन की भविष्य में अपनी सुरक्षा नीतियों को लेकर स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता और यूक्रेन को यह सुरक्षा आश्वासन देने से जुड़े हैं कि रूस किसी भी संभावित समझौते का पालन करेगा, जो इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है। स्वाभाविक रूप से, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ट्रंप न तो यूक्रेन के लिए और न ही उन यूरोपीय देशों के लिए निर्णय ले सकते हैं, जो यूरोप की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। असली सवाल यह है कि क्या इन मुद्दों पर ट्रंप और पुतिन के बीच कोई आपसी समझ बनी है।




पुतिन ने दिए शांति के संकेत

राष्ट्रपति पुतिन ने अपने बयान में कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि आज हुई सहमतियां न केवल यूक्रेनी मुद्दे के समाधान की शुरुआत होंगी, बल्कि रूस और अमेरिका के बीच व्यावसायिक और व्यावहारिक संबंधों को भी सामान्य बनाने में मदद करेंगी। मैं आशा करता हूं कि हमने जो समझौते किए हैं, वे हमें यूक्रेन में शांति की दिशा में करीब लाएंगे। हम अपेक्षा करते हैं कि कीव और यूरोपीय देश इस पहल को रचनात्मक रूप से लेंगे और इसमें अड़चन डालने या पर्दे के पीछे साज़िश करके इस प्रारंभिक प्रगति को पटरी से उतारने की कोशिश नहीं करेंगे।

पुतिन के इन बयानों से दो अहम बातें सामने आती हैं। पहला उन्होंने कहा कि कुछ समझौते हुए हैं, जिससे संकेत मिलता है कि प्रारंभिक स्तर पर बातचीत सफल रही है। दूसरा उन्होंने यह भी कहा कि यह एक “शुरुआत का बिंदु” है, यानी अभी अंतिम और निर्णायक समझौता नहीं हुआ है, बल्कि आगे की वार्ताओं की नींव रखी गई है।

दूसरी तरफ राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट किया कि अभी कोई अंतिम सौदा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि मैं कहूंगा कि कुछ अहम मुद्दों पर अभी हम वहां तक नहीं पहुंचे हैं, लेकिन हमने कुछ प्रगति जरूर की है। जब तक कोई सौदा न हो, तब तक कोई सौदा नहीं है।

वहीं, पुतिन ने अपने बयान में अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन और यूरोपीय देशों को चेतावनी भी दी कि वे इस प्रक्रिया में बाधा डालने से बचें। उन्होंने संकेत दिया कि कुछ ताकतें पर्दे के पीछे समझौतों को विफल करने की कोशिश कर सकती हैं। यह टिप्पणी यह दर्शाती है कि रूस किसी भी प्रकार की बाहरी राजनीतिक चालबाज़ी को लेकर सतर्क है।

न तो यूक्रेन और न ही यूरोपीय देश इस बात को आसानी से स्वीकार कर पाएंगे कि रूस को फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद मिली भू-राजनीतिक बढ़त का कोई भी हिस्सा वैध रूप में मिल जाए। असली सवाल यह है कि कितनी दूर तक व्यावहारिक सौदाबाज़ और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन पर दबाव बना सकते हैं कि वे संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और यूरोपीय सुरक्षा के "नए सामान्य" पर समझौते करें। असल में यूरोप को अब यह स्वीकार करना होगा कि वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका घटी है — भले ही वह इसे मानने से इनकार करता रहे। यह सच्चाई अगले कुछ हफ्तों, यदि नहीं तो दिनों में उजागर हो जाएगी।




पुतिन ने अपने बयान में ट्रंप के अहम को सहलाने का प्रयास किया। उन्होंने ट्रंप की उस बात से सहमति जताई कि यदि वे राष्ट्रपति होते तो यूक्रेन युद्ध होता ही नहीं। यह वही दावा है जो ट्रंप युद्ध शुरू होने के बाद से लगातार करते आ रहे हैं। पुतिन, जो कि एक चतुर रणनीतिकार माने जाते हैं, ने इस टिप्पणी से अपनी कूटनीतिक कुशलता का प्रदर्शन किया। दोनों नेताओं ने यह भी स्वीकार किया कि रूस-अमेरिका के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग की संभावनाएं व्यापक हैं।

ट्रंप ने सीन हैनिटी को दिए इंटरव्यू में जो दो बातें कहीं, उन पर विशेष रूप से भारतीय नीति-निर्माताओं को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।

डोनाल्ड ट्रंप ने रूस-चीन संबंधों को लेकर जो बयान दिया है, वह न सिर्फ मौजूदा वैश्विक समीकरणों पर बल्कि अमेरिकी कूटनीति की विफलताओं पर भी तीखा हमला है। उन्होंने कहा कि बाइडेन ने ऐसा काम किया जो सोच से परे था. उन्होंने चीन और रूस को एक साथ ला खड़ा किया। ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। अगर आप इतिहास के मामूली छात्र भी हैं तो आप जानते होंगे कि ये वही चीज़ है जो कभी नहीं होनी चाहिए थी, क्योंकि वे मूलतः एक-दूसरे के स्वाभाविक दुश्मन हैं। रूस के पास विशाल भूमि है, जबकि चीन के पास विशाल जनसंख्या और चीन को रूस की ज़मीन की ज़रूरत है। लेकिन पूरी मूर्खता के चलते, उन्हें एक साथ धकेल दिया गया और यही हकीकत है। मुझे नहीं लगता कि ये स्थिति स्थायी रहेगी, क्योंकि उनके बीच एक स्वाभाविक टकराव है।

यह सच है कि वर्तमान समय में रूस-चीन संबंध बेहद मजबूत हैं। रूस परंपरागत युद्ध की परिस्थितियों में अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए चीन पर निर्भर है। वहीं, चीन द्वारा रूसी ऊर्जा की खरीद ने रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है। लेकिन ट्रंप ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वे इस गठबंधन को तोड़ना चाहते हैं। आने वाले समय में ट्रंप इस दिशा में क्या कदम उठाते हैं, इस पर भारतीय रणनीतिक विश्लेषकों को बारीकी से नजर रखनी होगी।

फॉक्स न्यूज के एंकर सीन हैनिटी के साथ बातचीत में ट्रंप को 'शांति-स्थापक' बताया गया, जिन्होंने कई युद्धों को रोकने में भूमिका निभाई। इस दौरान हैनिटी ने हालिया भारत-पाकिस्तान के बीच हुई झड़पों का ज़िक्र किया, जिस पर ट्रंप ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को देखिए। वे एक-दूसरे के विमान गिरा रहे थे और ये संघर्ष शायद परमाणु युद्ध में बदल जाता। मैं कहूंगा कि यह परमाणु हो सकता था, लेकिन मैं उसे रोकने में सक्षम रहा। मेरे लिए सबसे पहले जीवन (लोगों की जान) है और उसके बाद सब कुछ। युद्ध बहुत बुरे होते हैं और अगर आप उन्हें टाल सकते हैं और लगता है मुझे उन्हें समाप्त करने और लोगों को साथ लाने की क्षमता है।

यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत के प्रति नाराज़गी की जड़ यह है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच हुई झड़पों को समाप्त करने में उनकी भूमिका को कभी औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया। यह मुद्दा अब ट्रंप के लिए पूरी तरह व्यक्तिगत हो गया है। पाकिस्तान ने न सिर्फ ट्रंप को इस 'युद्ध को रोकने' का श्रेय दिया, बल्कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया। यही कारण है कि ट्रंप की झुकाव अब पाकिस्तान की ओर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।

वहीं, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो पाकिस्तान जैसी रणनीति अपना सकते हैं और न ही वैसा तरीका जिसमें व्लादिमीर पुतिन ने ट्रंप के अहं को संतुष्ट किया। सवाल यह है कि आने वाले हफ्तों और महीनों में मोदी ट्रंप को लेकर क्या रणनीति अपनाएंगे?

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