हिंदू नेता की गिरफ्तारी, क्या ढाका ने सांप्रदायिक और भारत विरोधी कार्ड खेला?
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हिंदू नेता की गिरफ्तारी, क्या ढाका ने सांप्रदायिक और भारत विरोधी कार्ड खेला?

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक ऐसा तुरुप का पत्ता खेला है, जिसका इस्तेमाल देश के अलोकप्रिय नेता पहले भी कर चुके हैं.


Bangladesh communal polarisation: नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक ऐसा तुरुप का पत्ता खेला है, जिसका इस्तेमाल देश के अलोकप्रिय नेता पहले भी कर चुके हैं. इसको 'सांप्रदायिक ध्रुवीकरण' कहते हैं. इस्कॉन नेता चिन्मय कृष्णदास प्रभु को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करना और जमानत देने से इनकार करना, हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार इसका हिस्सा हैं. बांग्लादेश में पहले भी इस तरह के हमले हुए हैं. लेकिन उस देश में हिंदुओं ने शायद ही कभी सड़कों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया हो. जैसा कि अगस्त से हो रहा है.

हिंदू नेता की गिरफ्तारी

यह जानते हुए कि चिन्मय प्रभु ने प्रमुख शहरों में हिंदुओं को संगठित करने और लामबंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यूनुस प्रशासन को पता था कि उनकी गिरफ्तारी से नाराज हिंदुओं द्वारा और अधिक विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएगा. ऐसे देश में जहां मुस्लिमों की संख्या लगभग 93 प्रतिशत है, वहां बढ़ती भीड़ के साथ हिंदू विरोध प्रदर्शनों से संभावित प्रतिक्रिया उत्पन्न होने की संभावना है. क्योंकि वर्तमान में यहां छात्र-युवा समूहों के मुखौटे के पीछे सक्रिय इस्लामी कट्टरपंथियों का बोलबाला है. तो जब सरकार को अपनी स्पष्ट विफलताओं, जैसे आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने में असमर्थता या कानून और व्यवस्था में तीव्र गिरावट को रोकने में असमर्थता से ध्यान हटाने की जरूरत हो तो सांप्रदायिक उन्माद को भड़काने से बेहतर और क्या हो सकता है?

ध्यान भटकाने का प्रयास

चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी और चटगांव में एक मुस्लिम वकील की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या के बाद हुए हिंदू विरोध प्रदर्शनों ने यूनुस सरकार के तात्कालिक उद्देश्य को पूरा किया है. अचानक बांग्लादेश में सारा ध्यान इस्कॉन पर केंद्रित हो गया है, जिसके साथ चिन्मय प्रभु का लंबे समय से जुड़ाव रहा है और सांप्रदायिक आदान-प्रदान बढ़ गया है, जो सोशल मीडिया पोस्ट के कारण और बढ़ गया है. इसने लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से ध्यान हटा दिया है. इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने के लिए अदालती याचिकाएं और चिन्मय प्रभु पर मुकदमा चलाने की सरकार की योजना, अन्य खबरों को सुर्खियों से दूर रखने में मदद करेगी.

धर्मनिरपेक्ष लोकाचार पर हमले

जैसे-जैसे सांप्रदायिक भावनाएं बढ़ेंगी, पहले से ही सिकुड़ता जा रहा धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक स्थान बंगाली राष्ट्रवादी ताकतों को हाशिए पर धकेल देगा और इस प्रकार इस्लामी दलों को अपनी नई-नई बढ़त को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इन पार्टियों ने पहले ही यूनुस सरकार को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की विरासत को कमजोर करने के लिए उकसाया है, ताकि इसके भाषाई-धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को कमतर आंका जा सके. मुक्ति संग्राम संग्रहालय में तोड़फोड़ की गई है और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया है. ये कट्टरपंथी तत्व जो युनुस को घेरे हुए हैं और पश्चिम को नियंत्रित करने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्होंने भिक्षु की गिरफ्तारी का आदेश देते समय "भारत कारक" की भी गणना की है.

भारत से मुकाबला

वे जानते थे कि चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी से भारत में विशेषकर हिंदुत्ववादी ताकतों में नाराजगी पैदा होगी. दरअसल, यूनुस सरकार को भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा गिरफ्तारी पर कड़ी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी. क्योंकि मोदी सरकार ढाका के साथ अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाती रही है. भारतीय वक्तव्य पर यूनुस सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया, हिंदू विरोध प्रदर्शनों को संगठित करके प्रशासन को कमजोर करने के गुप्त भारतीय प्रयासों की छवि को बढ़ावा देकर भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए एक सुनियोजित प्रयास की ओर इशारा करती है.

अवामी लीग कारक

लेकिन बांग्लादेश में इस कहानी को क्यों समर्थन मिल रहा है- जो कि संयोग से यूनुस और उनके सलाहकार चाहते भी हैं? ऐसा इसलिए है. क्योंकि भारत शेख हसीना और उनके कई करीबी सहयोगियों को शरण दे रहा है, जिनमें कुछ पूर्व मंत्री और अवामी लीग के नेता भी शामिल हैं. जब यूनुस या उनकी सरकार में कोई भी अल्पसंख्यकों के विरोध प्रदर्शनों के बारे में "निहित स्वार्थों" की बात करता है तो उनके दिमाग में स्पष्ट रूप से अवामी लीग होती है. पिछले तीन महीनों में अवामी लीग एक क्रूर प्रतिशोध अभियान का शिकार होकर नीचे गिर गई है. लेकिन बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों और कम-से-कम विश्वसनीय आरोपों पर ढेर सारे मामलों के बावजूद कुछ दिग्गज नेताओं ने 15 अगस्त जैसे मौकों पर जमीनी स्तर पर समर्थकों को इकट्ठा करने की कोशिश की है, जिस दिन 1975 में बांग्लादेश के संस्थापक पिता शेख मुजीबुर रहमान की उनके लगभग पूरे परिवार के साथ हत्या कर दी गई थी.

क्रूर बल बनाम लोकतंत्र

लेकिन हसीना सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विद्रोह का नेतृत्व करने वाले छात्र-युवा समूहों द्वारा क्रूर बल के माध्यम से ऐसे प्रयासों को विफल कर दिया गया है. इन समूहों को इस्लामी दलों और उनके कट्टरपंथी कैडरों से मजबूत समर्थन प्राप्त है. हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद भारी नुकसान के बाद पुलिस बुरी तरह हतोत्साहित हो गई है और वह अक्सर मूकदर्शक बनी रही है. सेना भी ज्यादातर मौकों पर यही करती रही है. यूनुस और उनके साथियों को संदेह है कि अवामी लीग के कार्यकर्ता, जो अपनी पार्टी के बैनर तले रैली करने में असमर्थ हैं, अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मुद्दे पर उनकी सरकार को बदनाम करने के प्रयास में बड़ी संख्या में हिंदू विरोध रैलियों में शामिल हो सकते हैं.

सांप्रदायिक ताकतों को खुश करना

जब इसे अंतरिम प्रशासन द्वारा इस्लामी कट्टरपंथियों को दी गई विशेष सहायता के संदर्भ में देखा जाता है, जिसमें अंदरुल्लाह बांग्ला टीम के प्रमुख जशीमुद्दीन रहमानी जैसे दोषी आतंकवादियों की रिहाई भी शामिल है तो यूनुस शासन का असली चेहरा उजागर हो जाता है. यूनुस भारतीय प्रतिक्रियाओं को अतिशयोक्तिपूर्ण और निराधार बताकर खारिज कर सकते हैं. लेकिन जब अमेरिका के भावी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर संदेश भेजते हैं या उनकी दक्षिण एशिया सलाहकार लिसा कर्टिस देश में बढ़ते इस्लामी आतंकवाद की ओर इशारा करती हैं तो नोबेल पुरस्कार विजेता को उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए. क्योंकि, उनका शासन, जिसके पास कोई ठोस संवैधानिक आधार नहीं है, केवल पश्चिमी, विशेष रूप से अमेरिकी समर्थन के साथ ही चल सकता है.

बांग्लादेश पर ब्रिटिश चिंताएं

यूनुस सरकार ब्रिटिश सर्वदलीय संसदीय मंच की एक रिपोर्ट से परेशान है, जिसमें नई अंतरिम व्यवस्था की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की संस्कृति को समाप्त करने की तत्काल आवश्यकता है और मानवाधिकारों और कानून के शासन को कायम रखने की आवश्यकता है. ऐसा करने में विफलता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नए अंतरिम शासन पर अच्छा प्रभाव नहीं डालेगी. इसमें आगे कहा गया है कि हमें इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि पूर्व मंत्रियों, अवामी लीग के नेताओं, सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों, विद्वानों, वकीलों और पत्रकारों पर इतनी बड़ी संख्या में हत्या के आरोप लगाए जा रहे हैं कि उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं.

अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर ध्यान

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के विरोधियों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हत्या के आरोप लगाना "एक खतरनाक नई प्रवृत्ति" है. इसलिए, इस्कॉन नेता की गिरफ्तारी से यूनुस सरकार को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और भारत विरोधी बयानबाजी के जरिए शत्रुतापूर्ण जनमत को मोड़ने में मदद मिल सकती है. लेकिन अगर वह अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और लोकतंत्र की बहाली के मुद्दे को हल करने में विफल रहती है तो यह संदेह के घेरे में आ जाएगी. अन्यथा, जिन मुद्दों पर हसीना को फटकार लगाई गई थी, वे ही मुद्दे युनुस को भी परेशान करेंगे.

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