
ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले को 'भारत रत्न' के विचार की इनसाइड स्टोरी
भाजपा ने सामाजिक और शैक्षणिक क्रांति लाने वाले महापुरुष दंपति फुले को भारत रत्न देने की सिफारिश की है, जबकि उनका सारा जीवन भाजपा की वैचारिकी के खिलाफ रहा है।
आज (11 अप्रैल) भारत महात्मा ज्योतिराव फुले की 198वीं जयंती मना रहा है। ज्योतिराव (1827-1890) और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले (1831-1897) को भारत का पहला "आधुनिक" क्रांतिकारी दंपति माना जाता है, जिन्होंने सामाजिक क्रांति की शुरुआत की।
यह क्रांति विशेष रूप से उच्च जातियों, जिन्हें फुले "शेटजी-भटजी" कहते थे, अर्थात ब्राह्मण और बनिया वर्ग, को अत्यंत अप्रिय थी। इसलिए यह आश्चर्य की बात है कि भारतीय जनता पार्टी (जो लंबे समय तक "ब्राह्मण-बनिया पार्टी" मानी जाती थी) ने महाराष्ट्र विधानसभा में यह प्रस्ताव रखा, वह भी उस समय जब वहां एक "भटजी" (देवेंद्र फडणवीस) मुख्यमंत्री हैं। प्रस्ताव ये है कि कि 19वीं सदी के इस शूद्र क्रांतिकारी दंपति को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। यह प्रस्ताव 24 मार्च को सर्वसम्मति से पारित हुआ।
सुधार आंदोलनों की विरासत
फुले की प्रसिद्ध पुस्तक गुलामगिरी (1873) ने भारतीय इतिहास और धार्मिक संस्थानों का मूल्यांकन शूद्र और अतिशूद्र दृष्टिकोण से किया। इस दंपति ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जो आर्य समाज, ब्रह्म समाज और सार्वजनिक सभा जैसे ब्राह्मण केंद्रित संगठनों के समानांतर एक क्रांतिकारी मंच था।
जहाँ अन्य संगठन ब्राह्मण समाज के भीतर सुधारों पर केंद्रित थे, विशेषकर महिलाओं के लिए, सत्यशोधक समाज ने जाति-विरोधी और पितृसत्ता-विरोधी सुधारों की शुरुआत की। भारत के क्षत्रिय वर्ग इन सुधारों पर चुप रहा, और वैश्य वर्ग ने भी गांधी के आगमन तक कोई बौद्धिक हस्तक्षेप नहीं किया।
विरोधी विचारधाराएं
फुले दंपति ही ऐसे पहले विचारक थे जिन्होंने अस्पृश्यता और शूद्र किसानों के दमन का ऐतिहासिक रूप से विरोध किया। यह संभव है कि उन्हें भारत रत्न मिलने वाले पहले 19वीं सदी के समाज सुधारक बनें, क्योंकि आज तक किसी अन्य सुधारक को यह सम्मान नहीं मिला है। यह फैसला आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की स्वीकृति के बिना संभव नहीं होता।
गुलामगिरी और सावरकर की हिंदुत्व विचारधाराएं एक-दूसरे के विपरीत खड़ी हैं। फुले के लिए मुसलमान सहयोगी थे, जबकि सावरकर के लिए वे मुख्य शत्रु। सावित्रीबाई की सहकर्मी फातिमा शेख थीं, जो अस्पृश्य लड़कियों को पढ़ाती थीं। वहीं, सावरकर के एजेंडे में दलितों और शूद्रों के शैक्षिक पिछड़ेपन और जातीय उत्पीड़न से मुक्ति की कोई चर्चा नहीं थी।
सुधारकों की विरासत को अपनाना
तो फिर हिंदुत्ववादी भाजपा का अचानक फुले दंपति के प्रति यह प्रेम क्यों? कांग्रेस और वामपंथी बुद्धिजीवी उन्हें लंबे समय तक नजरअंदाज क्यों करते रहे? संभवतः भाजपा/आरएसएस अब फुले की विरासत को अपनाने का प्रयास कर रही है, जैसा कि उन्होंने अंबेडकर और सरदार पटेल के साथ किया।
आरएसएस की ऐतिहासिक विचारधारा इन सुधारों के खिलाफ रही है, और सावरकर ने कभी ऐसी जाति-विरोधी विचारधारा को स्वीकार नहीं किया, जैसी फुले ने महाराष्ट्र में शुरू की थी। अंबेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Who Were the Shudras फुले को समर्पित की थी।
ओबीसी को साधने की रणनीति?
जब से एक ओबीसी नेता नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, भाजपा ओबीसी समुदाय की प्रमुख पसंद बन गई, विशेषकर उत्तर और पश्चिम भारत में। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के जाति जनगणना और आरक्षण केंद्रित अभियान ने भाजपा/आरएसएस की वोटबैंक को झकझोर दिया।
तेलंगाना में हुई जाति जनगणना और ओबीसी आरक्षण 42% तक बढ़ाने का प्रस्ताव इस संकेत की तरह था कि ओबीसी भाजपा से दूर हो सकते हैं। महाराष्ट्र चुनाव में ओबीसी को अधिक सीटें और सत्ता में भागीदारी दी गई और भाजपा गठबंधन ने जीत दर्ज की।
जाति जनगणना का विरोध करने वाली भाजपा को ओबीसी समर्थन बनाए रखने के लिए कुछ बड़ा करना था, और फुले दंपति को भारत रत्न देने की सिफारिश दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगती है।
कांग्रेस की असहज स्थिति
इस कदम ने कांग्रेस को असहज स्थिति में डाल दिया है। पार्टी ने कभी किसी ओबीसी नेता, विचारक, सांस्कृतिक प्रतीक या समाज सुधारक को भारत रत्न नहीं दिया। तमिलनाडु के शूद्र नेता कामराज नाडर को भारत रत्न तो मिला, लेकिन उन्हें ओबीसी विचारधारा में व्यापक स्वीकृति नहीं मिली।
कांग्रेस ने इस पुरस्कार की शुरुआत के बाद से कई ब्राह्मण नेताओं को सम्मानित किया, जैसे कि सी. राजगोपालाचारी (1954)। वहीं भाजपा ने भी अटल बिहारी वाजपेयी, लता मंगेशकर, प्रणब मुखर्जी और लालकृष्ण आडवाणी को यह सम्मान दिया। बिहार में ओबीसी वोट साधने के लिए लो-प्रोफाइल ओबीसी नेता कर्पूरी ठाकुर को भी यह सम्मान दिया गया।
इस प्रकार, भारत के सामाजिक और शैक्षिक बदलाव में महान योगदान देने वाले फुले दंपति के लिए भारत रत्न की सिफारिश को भाजपा द्वारा किया गया राजनीतिक निर्णय जरूर कहा जा सकता है, लेकिन यह स्वागत योग्य कदम है — विशेषकर इसलिए क्योंकि यह पहली बार है जब इस क्रांतिकारी दंपति को भारत रत्न के योग्य माना गया है।