Cals Refineries: एक सपना, एक घोटाला और एक ग़ायब DRHP
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Cals Refineries: एक सपना, एक घोटाला और एक ग़ायब DRHP

SEBI की पूर्व अध्यक्ष मधु पूरी बुच के खिलाफ मुंबई ACB कोर्ट ने FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं लेकिन वो मामला क्या है और कब का है, इस पर गौर करना जरुरी है.


भारतीय बिज़नेस जगत में कंपनियाँ आती हैं, कंपनियाँ जाती हैं। कुछ ऐसा छोड़कर जाती हैं जो इतिहास में दर्ज हो जाता है, और कुछ ऐसा लेकर जाती हैं जो कभी वापस नहीं आता—आपका पैसा। Cals Refineries भी एक ऐसी ही कंपनी थी। पहले आई, फिर ख़बरों में छा गई, फिर शेयर बाज़ार में धूम मचाई, और फिर ग़ायब हो गई। पीछे सिर्फ़ कुछ अधूरी ख़बरें, कुछ भटके हुए निवेशक और कुछ सवाल छोड़ गई। कोई पूछे भी तो किससे? कंपनी के प्रमोटर? वे तो हमेशा की तरह आगे बढ़ चुके होंगे। सरकार? उसने तो फ़ाइल बंद कर दी। स्टॉक मार्केट? वहाँ अब कोई इसे याद भी नहीं करता।

लेकिन अगर यह सिर्फ़ एक कंपनी की कहानी होती, तो इसे भूल भी दिया जाता। यह एक सिस्टम की कहानी है, जो हर कुछ साल में एक नई Cals Refineries को जन्म देता है। अगर किसी कंपनी को बिज़नेस में कुछ करना हो, तो वह फ़ैक्ट्री लगाती है, मशीनें लगाती है, श्रमिकों को रोज़गार देती है। अगर किसी कंपनी को सिर्फ़ बाज़ार में खेलना हो, तो वह सपने बेचती है। Cals Refineries ने यही किया।
कहानी एक हार्डवेयर कंपनी से शुरू होती है। नाम था Cals Refineries, मालिक थे सर्वेश गूरहा। लेकिन जल्दी ही यह कंपनी गगन कुमार रस्तोगी और स्पाइस ग्रुप के हाथों में चली गई। नया नेतृत्व आया, नया सपना गढ़ा गया—“हम भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट रिफ़ाइनरी बनाएँगे!”
हल्दिया में 50 लाख मीट्रिक टन की रिफ़ाइनरी बनेगी। विदेशी निवेश आएगा। तेल का खेल बदलेगा। नया भारत खड़ा होगा। बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार उस वक़्त औद्योगीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही थी। सरकार को भी यह आइडिया भाया। काल्स को सरकार की पेट्रोकेमिकल इन्वेस्टमेंट रीजन (PCPIR) योजना में शामिल कर लिया गया। बस, कहानी सेट थी। निवेशकों की भीड़ उमड़ पड़ी। शेयर बाज़ार में हलचल मच गई। जो लोग जानते भी नहीं थे कि रिफ़ाइनरी कैसे बनती है, वे भी इसमें निवेश करने को तैयार थे। लेकिन फ़र्क़ यह था कि Cals कभी रिफ़ाइनरी बनाना ही नहीं चाहती थी। उसे सिर्फ़ अपने स्टॉक की क़ीमत बढ़ानी थी।

2007 शुरू होती है शेयर बाज़ार की कहानी
2007 में कंपनी ने 200 मिलियन डॉलर (1600 करोड़ रुपये) का ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स (GDR) जारी किया। ख़बर उड़ी कि विदेशी निवेशकों ने काल्स रिफ़ाइनरीज़ पर भरोसा जताया है। कंपनी के शेयर चढ़ने लगे। सबको लगा कि अब पैसा लगाना चाहिए। लेकिन असलियत में सिर्फ़ एक ही निवेशक था—ऑनर फाइनेंस लिमिटेड। यह कंपनी थी संजय मल्होत्रा की। उसने GDR ख़रीदने के लिए Banco Efisa बैंक से लोन लिया। और उस लोन की गारंटी किसने दी? ख़ुद Cals Refineries ने। मतलब? पैसा कहीं से आया ही नहीं। कंपनी ने अपने ही पैसों को इधर से उधर घुमाया और दिखाया कि उसने बाहर से निवेश जुटाया है। यह वही जादूगरी थी, जो बाज़ार को सपनों में जीने पर मजबूर कर देती है।

कुछ यूँ हुआ इधर का माल उधर
अब सवाल उठा कि यह पैसा कहीं न कहीं इस्तेमाल भी तो होना चाहिए। दिखाना पड़ेगा कि कंपनी में काम चल रहा है। तो कंपनी ने कहा—“हमने 92 मिलियन डॉलर (740 करोड़ रुपये) का ऑर्डर दे दिया है। रिफ़ाइनरी के उपकरण आ रहे हैं।” किसे दिया? एशिया टेक्स इंटरप्राइज़ लिमिटेड को। यह कंपनी किसकी थी? गगन कुमार रस्तोगी की। और हुआ क्या? कुछ नहीं। ना कोई मशीन आई, ना कोई रिफ़ाइनरी बनी। पैसा घूमकर वहीं पहुँच गया, जहाँ से निकला था।
बाजार में कुछ चीज़ें हर किसी को दिखती हैं, लेकिन जब तक कोई उन्हें आधिकारिक तौर पर कह न दे, तब तक वे सिर्फ़ फुसफुसाहट बनी रहती हैं। 5 जून 2009 को सेबी ने 26 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया—जिनका नाम सुनते ही समझ आ जाता था कि ये केतन पारेख से जुड़ी हैं। ये वही संस्थाएँ थीं, जो कैल्स रिफाइनरीज, कॉन्फिडेंस पेट्रोलियम इंडिया, बैंग ओवरसीज़, श्री प्रीकोटेड स्टील्स और टेम्पटेशन फूड्स जैसे शेयरों में गहरी पैठ बना चुकी थीं। सेबी ने जो कहा, वो नया नहीं था। सबको पता था कि केतन पारेख अब भी बाजार में थे। 2003 में जब उन पर और उनके साथियों पर 14 साल का प्रतिबंध लगा था, तब भी वे खेल में बने हुए थे—छोटे और मझोले शेयरों की कीमतें ऊपर-नीचे करने की वही पुरानी बाजीगरी जारी थी।

देख कर अनदेखी करने की आदत
अब ज़रा Cals Refineries को देखिए। जुलाई 2010 तक इसमें लाखों ट्रेड हो रहे थे। हर कोई देख रहा था, लेकिन कोई सवाल नहीं कर रहा था। इंटरनेट के फोरम और मैसेज बोर्ड इस शेयर के इर्द-गिर्द एक अलग ही दुनिया बना रहे थे। कोई नए निवेशकों को इसमें धकेल रहा था, तो कोई पुराने फंसे हुए निवेशकों को तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था। कुछ तो ऐसे भी थे, जो इस भ्रम में जी रहे थे कि कंपनी कोई धमाकेदार ऐलान करेगी और सबकी नैया पार हो जाएगी। निवेशक उम्मीदों से बंधे थे, और बाज़ार के खिलाड़ी अपना खेल खेल रहे थे। फिर सितंबर 2011 में सेबी ने एक और सर्जिकल स्ट्राइक की। असाही इंफ्रास्ट्रक्चर एंड प्रोजेक्ट्स, के सेरा सेरा और कैल्स रिफाइनरीज समेत सात कंपनियों पर रोक लगा दी गई—कोई नया शेयर नहीं, कोई नई पूंजी संरचना नहीं। वजह? जीडीआर यानी ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स के ज़रिए की गई गड़बड़ियाँ।2009-10 के दौरान सेबी के सिस्टम में कुछ नाम बार-बार उभर रहे थे—आईकेएफ टेक्नोलॉजीज, एवॉन कॉर्पोरेशन, असाही इंफ्रास्ट्रक्चर और के सेरा सेरा। बड़े पैमाने पर ऑफ-मार्केट सौदे हो रहे थे। पैटर्न साफ़ था, लेकिन फिर वही सवाल—अगर सब दिख रहा था, तो कोई कुछ कर क्यों नहीं रहा था? इन कंपनियों ने 2007 से 2009 के बीच जीडीआर जारी किए थे, जिससे वे डॉलर और यूरो में पूंजी जुटा रही थीं। विदेशी संस्थागत निवेशक(FII), इन जीडीआर को साधारण शेयरों में बदल रहे थे और भारतीय बाजार में बेच रहे थे। पर दिलचस्प बात यह थी कि ये cancellation किसी तयशुदा समय पर हो रहे थे—कंपनियाँ जीडीआर जारी करती थीं, और कुछ ही समय में उन्हें भुना लिया जाता था। यानी खेल बस नाम का बाजार था, असल में सबकुछ पहले से तय था।

ग़ायब DRHP और सिस्टम की चुप्पी
अगर कोई कंपनी स्टॉक मार्केट में उतरती है, तो उसे Draft Red Herring Prospectus (DRHP) जमा करना होता है। यह SEBI को बताने के लिए ज़रूरी होता है कि कंपनी की असली योजना क्या है। लेकिन Cals Refineries का DRHP कभी मिला ही नहीं। क्या यह कभी जमा हुआ था? अगर नहीं, तो SEBI ने इसे अनदेखा क्यों किया? अगर हुआ था, तो यह ग़ायब कैसे हो गया? आज तक इन सवालों के जवाब नहीं मिले। SEBI ने जाँच शुरू की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शेयर ज़मीन पर आ चुके थे। जिन लोगों ने अपनी बचत इसमें लगाई थी, वे स्क्रीन पर बस यह देख रहे थे कि अब उनका पैसा किसी काम का नहीं रहा।

डीलिस्ट की गयी Cals Refineries लेकिन गोरखधंधा जारी रहा
आख़िर में क्या हुआ? गगन कुमार रस्तोगी, संजय मल्होत्रा, देवनाथन सुंदरराजन, रवि चिलिकुरी और सर्वेश गूरहा को मार्केट में बैन कर दिया गया। 17 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा। Cals Refineries डीलिस्ट हो गई। और फिर? फिर वही हुआ जो हमेशा होता है—कंपनी के मालिकों ने नया नाम ढूँढा, नया धंधा बनाया और नया सपना बेचने में जुट गए। अगर आप आज गूगल करेंगे, तो आपको Cals Refineries के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलेगी। इसकी कोई वेबसाइट नहीं मिलेगी, कोई ऑफ़िस नहीं मिलेगा, कोई जवाब देने वाला नहीं मिलेगा। लेकिन सवाल तो फिर भी हैं—क्या जिन लोगों ने यह खेल खेला, वे आज भी बाज़ार में कोई और नाम लेकर मौजूद हैं? क्या सरकार को कभी एहसास हुआ कि उसने किसे “विकास का इंजन” समझ लिया था? क्या जिन निवेशकों के पैसे डूबे, उन्हें कभी न्याय मिलेगा?
शायद नहीं।


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