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हिंदू-मुस्लिम अधिकारी साथ, लेकिन राजनीति फिर भी बंटी हुई


हिंदू-मुस्लिम अधिकारी साथ, लेकिन राजनीति फिर भी बंटी हुई
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जब भारत को राष्ट्रीय एकता और महिला सशक्तिकरण को लोकतांत्रिक आधुनिकता के प्रतीक के रूप में पेश करने की आवश्यकता थी, तब सरकार ने वह अपनाया जिससे हिंदुत्व नफरत करता है।

भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर मीडिया को जानकारी देने के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को चुनना केवल पेशेवर निर्णय नहीं था। इसमें लिंग और धर्म के स्तर पर एक गहन संदेश छुपा था। इससे दो स्पष्ट संकेत दिए गए। पहला भारत एक ऐसा देश है, जहां महिलाएं न केवल सार्वजनिक जीवन में बल्कि सशस्त्र बलों में भी अहम भूमिका निभाती हैं. दूसरा, यह कि भारत की एकता किसी धर्म या पहचान की सीमाओं से परे है।

मुस्लिम और हिंदू अफसरों की साथ में प्रस्तुति

कर्नल कुरैशी (मुस्लिम) और विंग कमांडर सिंह (हिंदू) की साझा प्रेस वार्ता यह संकेत भी देती है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को एक समावेशी राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करना जरूरी है और हिंदुत्व की राजनीति की सीमाओं को दुनिया के सामने नहीं रखा जा सकता। हिंदुत्व की विचारधारा बार-बार मुसलमानों को राष्ट्र-विरोधी और पाकिस्तान के पक्षधर के रूप में दिखाने की कोशिश करती है। यह विचारधारा भारत की लोकतांत्रिक विविधता के मूल्यों के विपरीत है। जो संविधान द्वारा स्थापित की गई थी, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, समानता और साझी नागरिकता की बात कही गई है।

कानून में समानता की अनदेखी

हिंदुत्व की राजनीति संसद में कानूनों के माध्यम से अपने मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास करती है — चाहे वह वक्फ अधिनियम में संशोधन हो या नागरिकता अधिनियम में बदलाव। सड़कों पर इसका प्रभाव मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार और सांप्रदायिक भाषणों के रूप में सामने आता है। सोशल मीडिया पर बॉलीवुड के 'खान' अभिनेताओं को निशाना बनाया जाता है और कई धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़े किए जाते हैं।

हिंसा और नफरत की राजनीति

पहलगाम हमले के बाद एक व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम बिरयानी विक्रेता को गोली मार दी। यह उस चरम सोच का परिणाम था, जिसमें मुस्लिमों को दुश्मन और संभावित आतंकवादी के रूप में देखा जाता है। वहीं, भाजपा शासित मध्य प्रदेश के एक मंत्री ने कर्नल कुरैशी को "आतंकवादी बहन" करार दिया। जबकि प्रधानमंत्री की "रणनीतिक चतुराई" की सराहना की।

हिंदुत्व और अंध राष्ट्रवाद

हिंदुत्व समर्थक विमान, प्लास्टिक सर्जरी और शून्य की खोज जैसी प्राचीन उपलब्धियों को आधार बनाकर आधुनिक वैज्ञानिक तर्कों को खारिज करते हैं। वे किसी भी विरोध को राष्ट्रद्रोह मानते हैं और तर्कवादी आवाजों को ट्रोल करते हैं।

धर्मनिरपेक्ष राजनीति की भी आलोचना

हिंदुत्व के उभार में धर्मनिरपेक्ष राजनीति की खामियों का भी योगदान रहा है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर मुस्लिम समुदाय की कुछ प्राचीन परंपराओं को राजनीतिक संरक्षण मिला, जिसने आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाया और वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा दिया।

आर्थिक असमानता और नई चुनौतियां

वैश्वीकरण के बाद भारत में अवसर बढ़े। लेकिन समाज के एक बड़े वर्ग को अब भी उन तक पहुंच नहीं मिल पाई। इससे असंतोष और हताशा बढ़ी, जिसे हिंदुत्व की राजनीति ने कुशलता से भुनाया।

संकट में एकता की अहमियत

जब राष्ट्र पर संकट आता है, तब सत्तारूढ़ हिंदुत्व समर्थकों को यह समझना पड़ता है कि विभाजनकारी राजनीति से नहीं, बल्कि एकता और समावेश से ही देश की रक्षा संभव है। कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर सिंह की साझा उपस्थिति इसी सच्चाई को रेखांकित करती है।

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।)

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