Nilanjan Mukhopadhyay

ऑपरेशन 'सिंदूर': नामकरण से लेकर महिला अधिकारी की मौजूदगी तक उठे सवाल


ऑपरेशन सिंदूर: नामकरण से लेकर महिला अधिकारी की मौजूदगी तक उठे सवाल
x

सरकार के दो फ़ैसलों से दो तरह की कहानियां उभरी हैं, जिन पर टिप्पणी की जानी चाहिए। पहला है ऑपरेशन का नाम - सिंदूर। दूसरा है कर्नल सोफिया कुरैशी को सैन्य हमलों के बारे में मीडिया को जानकारी देने के लिए बुलाने का फ़ैसला।

भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ चलाए गए सैन्य अभियान "ऑपरेशन सिंदूर"** को लेकर जहां एक ओर देश में सैन्य प्रतिक्रिया की सराहना हो रही है। वहीं, इसके नामकरण और एक महिला सैन्य अधिकारी की प्रेस ब्रीफिंग को लेकर नैतिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बहस भी छिड़ गई है।

पुलवामा जैसे हमलों के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई अब एक स्थायी रणनीति बनती दिख रही है। इस बार भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पीओके में 9 आतंकवादी अड्डों पर सटीक हमले किए। लेकिन इस ऑपरेशन का नाम 'सिंदूर' रखना कई विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को विवादास्पद लगा है।

‘सिंदूर’ नाम पर सांस्कृतिक असहमति

सिंदूर का इस्तेमाल भारत में मुख्यतः हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो शादीशुदा होने का सामाजिक प्रतीक माना जाता है। आलोचकों का कहना है कि किसी सैन्य ऑपरेशन को "सिंदूर" नाम देना न सिर्फ एक विशेष धर्म की सांस्कृतिक परंपरा को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर थोपने जैसा है, बल्कि यह महिलाओं के वस्तुकरण (objectification) को भी दर्शाता है।

सामाजिक विश्लेषकों का मानना है कि सिंदूर, मंगलसूत्र और कन्यादान जैसे प्रतीक, भारतीय समाज में महिला की पहचान को पति के साथ जोड़ते हैं। इसी कारण किसी सैन्य प्रतिक्रिया को 'सिंदूर' कहना महिलाओं की भूमिका को प्रतीकात्मक रूप से सीमित करने जैसा है।

कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रेस ब्रीफिंग

इस अभियान की जानकारी देने के लिए भारतीय सेना की मुस्लिम महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को प्रेस वार्ता में प्रस्तुत किया गया। इसे जहां कुछ लोगों ने समावेशिता और विविधता का प्रतीक बताया। वहीं, कई लोगों ने इसे सरकारी प्रचार का हिस्सा करार दिया।

विशेषज्ञों का कहना है कि सेना जैसे संस्थानों में धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सेवा ही प्रमुख होती है। ऐसे में किसी विशेष समुदाय से आने वाली अधिकारी को आगे कर देना "कॉस्मेटिक या दिखावटी कदम" के रूप में देखा जा रहा है, खासकर तब जब भारत में मुस्लिम और कश्मीरी समुदाय के लोग धार्मिक असुरक्षा की भावना से जूझ रहे हों।

सरकारी रणनीति या सांस्कृतिक राजनीति?

विश्लेषकों का मानना है कि सरकार द्वारा ऐसे नामकरण और प्रेज़ेंटेशन के जरिए ‘संस्कृतिक राष्ट्रवाद’ (cultural nationalism) को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है, जो बहुलतावादी भारत की विचारधारा के विपरीत है। हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल आतंक के खिलाफ कार्रवाई में करना, देश के अन्य धार्मिक समुदायों की भावनाओं की अनदेखी करता है। एक तरफ यह कहा जा रहा है कि इस ऑपरेशन को 'सिंदूर' नाम इसलिए दिया गया. क्योंकि आतंकियों ने उन हिंदू पुरुषों को मारा जिनके सिंदूर पहने पत्नियां थीं। वहीं, दूसरी ओर यह तर्क दिया जा रहा है कि सिंदूर पूरे भारत का सांस्कृतिक प्रतीक नहीं, न ही यह हर धर्म या समुदाय में मौजूद है।

अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर

सरकार द्वारा यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भारत में हर धर्म और लिंग को बराबरी का दर्जा दिया जाता है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की धार्मिक ध्रुवीकरण की छवि पहले से ही प्रश्नों के घेरे में है। कई मानवाधिकार रिपोर्ट्स और मीडिया संस्थानों ने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती नफरत की आलोचना की है।

Next Story