
केंद्र की डाटा सेंटर नीति में 20 साल की टैक्स छूट का प्रस्ताव है, लेकिन इसे लेकर राज्यों के अधिकार, कॉर्पोरेट लाभ और सरकारी प्राथमिकताओं पर सवाल उठे हैं।
केंद्र सरकार ने अपनी नई डाटा सेंटर नीति का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसमें कंपनियों को 20 साल की टैक्स हॉलिडे (कर छूट) और जीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट देने का प्रस्ताव है। यह छूट तभी मिलेगी जब कंपनियां बिजली उपयोग दक्षता, क्षमता वृद्धि और रोजगार सृजन से जुड़ी शर्तों को पूरा करेंगी। पहली नज़र में यह प्रस्ताव आकर्षक लगता है, लेकिन इसमें कई गंभीर खामियां हैं, जिनमें सबसे अहम है राज्यों के अधिकारों पर केंद्र का अतिक्रमण।
टैक्स छूट का अधिकार किसका?
भारत के संविधान ने केंद्र को यह जिम्मेदारी दी है कि वह कंपनियों और व्यक्तियों से आयकर वसूले। पर इसका यह मतलब नहीं कि यह कर पूरी तरह केंद्र का है। आयकर संग्रह इसलिए केंद्र के पास है ताकि उसका बंटवारा सभी राज्यों में हो सके। उदाहरण के लिए, यदि केवल महाराष्ट्र या गुजरात को आयकर संग्रह का अधिकार दिया जाए, तो वहां मुख्यालय वाली कंपनियों पर पूरा टैक्स उन्हीं राज्यों का हो जाएगा, जबकि उनका कारोबार पूरे देश में फैला है। यही तर्क सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) पर भी लागू होता है।
वर्तमान में वित्त आयोग हर पांच साल पर तय करता है कि केंद्र द्वारा वसूले गए कर का कितना हिस्सा राज्यों को मिलेगा। अभी यह हिस्सा 41% है। सवाल यह है कि जब इतनी बड़ी हिस्सेदारी राज्यों की है, तो क्या उन्हें टैक्स हॉलिडे और छूट पर राय देने का अधिकार नहीं होना चाहिए?
केंद्र का एकाधिकार और राज्यों की अनदेखी
फिलहाल केंद्र एकतरफा फैसले लेकर टैक्स छूट देता है। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर बिना किसी परामर्श के जीएसटी छूट की घोषणा कर दी थी। आदर्श स्थिति में यह फैसला अंतर-राज्य परिषद की टैक्स सब-कमेटी के जरिए होना चाहिए, जिसमें राज्यों को बराबरी का अधिकार मिले।
डाटा सेंटर को प्रोत्साहन की जरूरत नहीं
आज की तारीख में डाटा सेंटर बनाना निवेशकों के लिए सबसे आकर्षक अवसर है। बड़े-बड़े कारोबारी समूह खुद ही इसमें निवेश करना चाहते हैं। ऐसे में टैक्स छूट देना वैसा ही है जैसे किसी छात्र को आईआईटी में दाखिला लेने पर इनाम देना—जबकि वहां प्रवेश के लिए पहले से ही भारी प्रतिस्पर्धा है। साफ है कि यह छूट वास्तविक जरूरत से ज्यादा, कुछ चुनिंदा कॉर्पोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए है।
भारी निवेश, नगण्य मुनाफा
द इकॉनमिस्ट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2025-28 के बीच एआई सेक्टर में 2.9 ट्रिलियन डॉलर का निवेश होने वाला है, जबकि इसकी संभावित आमदनी सिर्फ 50 बिलियन डॉलर है। यानी निवेश तो समुद्र जैसा, मुनाफा मात्र बूंद के बराबर। डॉट-कॉम बूम की तरह यह भी एक असंतुलित चक्र साबित हो सकता है।
डाटा लोकलाइजेशन का महत्व
भारत की डाटा लोकलाइजेशन नीति कहती है कि भारतीय डाटा भारत में स्टोर होना चाहिए। हालांकि इसे पूरी तरह बाहर भेजने पर रोक नहीं होनी चाहिए, लेकिन भारतीय सरकार और कंपनियों को इस डाटा तक सीधा अधिकार और पहुंच जरूरी है। इससे डाटा सेंटर की मांग अपने आप बढ़ेगी। निजी पूंजी इस मांग को पूरा कर सकती है। सरकार का असली काम होना चाहिए—पर्याप्त बिजली और कुशल मानव संसाधन उपलब्ध कराना।
सरकारी फंड का सही इस्तेमाल
यदि केंद्र सरकार के पास अतिरिक्त धन है तो उसे डाटा सेंटर में टैक्स छूट देने के बजाय चिप डिजाइन, सेमीकंडक्टर निर्माण, और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने पर लगाना चाहिए। खासकर एआई के दौर में लोगों के लिए सबसे बड़ी पूंजी होगी—तेजी से सीखने और आलोचनात्मक सोचने की क्षमता।
डाटा सेंटर नीति के जरिए केंद्र सरकार निवेश आकर्षित करने का दावा कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि इस क्षेत्र को प्रोत्साहन की कोई जरूरत नहीं। इसके बजाय यह कदम राज्यों के अधिकारों पर सीधा अतिक्रमण है और सार्वजनिक धन को गलत दिशा में लगाने जैसा है। असली चुनौती है—गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अनुसंधान और तकनीकी आत्मनिर्भरता—जहां निवेश होना चाहिए।
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