दिल्ली में सरकार बनाना भाजपा के लिए अब भी दूर की कौड़ी! जानें क्यों?
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दिल्ली में सरकार बनाना भाजपा के लिए अब भी दूर की कौड़ी! जानें क्यों?

भाजपा ने 2014 में दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जा का वायदा किया था, 2021 में संसद में कानून लाकर बुनियादी अधिकार ही छीन लिए।


Delhi Assembly Elections 2025: देश की राजधानी दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में इन दिनों जहरीली हवा का स्तर भले भले ही एक्यूआई के 494 के खतरनाक स्तर को पार कर गया हो लेकिन यहाँ आगामी विधानसभा के लिए रणभेरी बज चुकी है। तीनों प्रमुख दलों आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करनी शुरू कर दी है। चुनाव आगामी फरवरी के शुरू में होगें। 14 फरवरी, 2025 के पहले नई सरकार बागडोर संभालेगी।

भाजपा के लिए 70 सदस्यीय केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में 10 साल से ज्यादा केंद्र सरकार में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को इस बात का गहरा मलाल है कि तमाम तरह की तिकड़मों के बावजूद वे दिल्ली में भाजपा सरकार नहीं बनवा पा रहे। इसलिए दिल्ली में केजरीवाल सरकार के लिए अनेकों रोड़े खड़े करना मोदी सरकार का पिछले पांच साल का मुख्य एजेंडा बन गया। दिल्ली भाजपा संगठन के भीतर इस बात को लेकर खूब नाराजगी है कि अपनी साख बनाकर मजबूत जमीन तैयार करने के मिशन में जुटने के बजाय भाजपा ने पिछले साल दिल्ली सरकार के अधिकारों में और ज्यादा कटौती कर पूर्ण राज्य के दर्जे की अपनी पुरानी मांग की ही तिलांजलि दे डाली।

एजेंसियों का इस्तेमाल

दिल्ली सरकार और (आप) के प्रमुख नेताओं का पीछा करने के लिए मोदी सरकार ने ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग को लगा दिया गया। गृहमंत्री अमित शाह तो कई दिनों तक सारे काम छोड़कर दिल्ली सरकार की किलेबंदी में जुट गए। कभी गुजरात में एक निजी कंपनी में मामूली नौकरी करने वाले विनय कुमार सक्सेना को दिल्ली के उपराज्यपाल जैसे अहम पद पर बिठा दिया गया। सक्सेना के बारे में दिल्ली भाजपा के एक नेता व्यथित नेता की बात मानें तो इस शख्स का यही काबिलियत है कि वे गुजरात से ताल्लुक रखते हैं और अमित शाह और मोदी के करीबी हैं।

दिल्ली में उप राज्यपाल द्वारा आए दिन आप सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते रहने को भी भाजपा के लोग पार्टी के लिए अभिशाप मानते हैं। इनमें से कुछ पुराने भाजपा नेताओं का कहना है कि उपराज्यपाल द्वारा आप सरकार को आए दिन परेशान करने से आप नेताओं और केजरीवाल सरकार की विफलताओं पर उलटा पर्दा ही पड़ता रहा।

क्या दिल्ली के उपराज्यपाल बन गए हैं पार्टी

कई मामलों में तो वीके सक्सेना संवैधानिक पद के बजाय भाजपा नेता की तरह बयानबाजी करने से भी दिल्ली भाजपा नेताओं की भी खासी किरकिरी होती रही। बहुतों की नजर में वे भाजपा नेता की तरह भूमिका निभाने लगे और कई मामलों में दिल्ली के भाजपा नेता आवश्यक दिशा निर्देश लेने के लिए राजभवन की नियमित परिक्रमा करने लगे। कई भाजपा नेताओं ने दिल्ली सरकार के कई विभागों में अपने अटके कामों को कराने के लिए सक्सेना के इई गिर्द अच्छा खासा घेरा बना दिया।

हाल में चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के ठीक पहले आप सरकार में मंत्री कैलाश गहलौत को भाजपा में शामिल कराने को लेकर सक्सेना के जरिए हुई गुप्त अंदरूनी डील की भी दिल्ली की सियासत में खासी हलचल है। गहलौत के खिलाफ ईडी और आयकर विभाग ने कई मामले दर्ज कर रखे हैं। बताया जाता कि आप छोड़ने के बदले में उनसे वायदा किया गया है कि उनके खिलाफ दर्ज सारे मामले वापस ले लिए जाएंगे।

क्या आप नेताओं को फंसाया गया

आप नेताओं को फंसाने के इसी अभियान के तहत पहले आप सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को पूरे तीन साल जेल में रखा गया। दिल्ली में नई शराब नीति में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों में मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत दूसरे नंबर के नेता व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जिनके पास आबकारी विभाग भी लंबे समय जेल में रखा गया।

उसके बाद पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी आबकारी नीति मामले में बिचौलियों के बीच कड़ी का काम करने के आरोप में जेल में डाला गया। रोचक बात यह है कि जिस तरह से इन नेताओं को मोदी सरकार ने बदले की भावना से जेल में डाला उसी गति से आरोप साबित न हो पाने के मामलों को लेकर मोदी सरकार की निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जजों की फटकार झेलनी पड़ी! हाल में दिल्ली के परिवहन मंत्री और कैलाश गहलौत और उसके पहले दिल्ली के पटेल नगर के विधायक राजकुमार आनंद भाजपा का दामन थामने और कुछ माह पूर्व जय किशन शर्मा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।

भाजपा 25 साल से सत्ता से बाहर

विगत पांच सालों में केंद्र की भाजपा सरकार ने 2014 में दिल्ली की जनता से किया गया कोई भी वायदा पूरा नहीं किया। यहां तक कि फरवरी 2021 को संसद में कानून पारित कर दिल्ली की निर्वाचित सरकार के अधिकारों में बेरहमी से कटौती कर दी गई। चुनी हुई सरकार के बजाय सारे अहम अधिकार उपराज्यपाल के पास होंगे। कानूनन दिल्ली सरकार का मतलब ही उपराज्यपाल मान लिया गया। ज्ञात रहे कि भाजपा 25 साल से ज्यादा समय से दिल्ली राज्य की सत्ता बाहर है। पहले 15 साल तक शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार भाजपा को सरकार बनाने के करीब तक नहीं फटकने दिया। उस दौर में जब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के दौर में उसके पास विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी जैसे कद्दावर नेताओं की लंबी फेहरिस्त थी।भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की सबसे बड़ी बाधा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी है। आप विगत 10 साल से तीन चुनावों का सामना करने के बाद दिल्ली की सत्ता में वापस लौटी है। उस दौर में जब देश में प्रचंड मोदी लहर थी, तब भी दिल्ली के लोगों ने दिल्ली में सरकार बनाने के लिए केजरीवाल को ही वोट दिया। हैरत तो यह है कि भाजपा को वोट देने वालों में हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए समर्पित उन लोगों के परिवार भी होते हैं जो जनसंघ के दौर से भाजपा को वोट देते आए हैं।

'आप' के पक्ष में क्या है
आम आदमी पार्टी के पक्ष में दो बड़ी वजहें बताई जाती हैं। पहली तो यह कि दिल्ली के लोगों को बिजली के बिलों 200 यूनिट की राहत, और दूसरा लड़कियों-महिलाओं को डीटीसी की बसों में मुफ्त सफर की सुविधा, मोहल्ला क्लीनिक और मूलभूत सुविधाएं जुटाना। दिल्ली में आधिकारिक तौर पर 1797 अनधिकृत कॉलोनियां हैं। हालांकि मोटे तौर पर इनकी तादाद अधिक बताई जाती है। करीब 60 लाख से ज्यादा आबादी इन कॉलोनियों में रहती है। लेकिन भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने के बावजूद इन कॉलोनियों को नियमित करने के बारे में कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।

दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र छह माह पहले बनी आम आदमी पार्टी ने 29 सीटें जीतकर पहली बार बड़ी दस्तक दी। हालांकि मात्र छह माह में ही कांग्रेस विधायकों के समर्थन पर टिकी केजरीवाल सरकार को विदा होना पड़ा था। उसके बाद देश में 2014 में प्रचंड मोदी लहर के बीच केजरीवाल के नेतृत्व में आप सरकार ने 67 सीटें जीतकर नया रिकार्ड बना दिया। केंद्र में भाजपा और मोदी सरकार द्वारा दिल्ली के तीन उपराज्यपालों के जरिए आम सरकार को लगातार अस्थिर करने की तिकड़मों के बावजूद फरवरी 2020 में केजरीवाल सरकार ने दोबारा अपना शानदार प्रदर्शन दोहराते हुए 70 सदस्यीय विधानसभा में 62 सीटों पर जीत की वापसी की.

डोल रहा आत्मविश्वास

2014 से अब तक विगत दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज की लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास कोई चेहरा न होने के कारण दिल्ली में चुनावों के पहले न केवल भाजपा का आत्मविश्वास डोल रहा है, बल्कि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि पार्टी हाईकमान ने पूरी तरह सरेंडर ही कर दिया। भाजपा द्वारा पिछले दिनों कराए गए एक सर्वे के अनुसार भाजपा अपने 8 विधायकों की वर्तमान संख्या को अधिकतम 13 या 14 सीटों तक ही ले जा सकती है।

दिल्ली में कानून व्यवस्था केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में है। ऐसी सूरत में दिल्ली में घटित कई सनसनीखेज आपराधिक घटनाओं पर भाजपा संगठन के भीतर से मुखरता से आवाज उठनी शुरू हो चुकी है।दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष रहे और करीब 4 दशक से भाजपा में सक्रिय रहे जगदीश ममगाईं कहते हैं, "देश की राजधानी दिल्ली जो अपनी विशेषताओं के अनुसार एक अंतर्राष्ट्रीय शहर है, वहां व्यापारियों व नागरिकों से रंगदारी मांगने और स्कूलों को बमों से उजाड़ने की कई हैरतअंगेज घटनाएं होना आम बात हो गई है। वे इस बात से आहत हैं कि पहली बार दिल्ली में बेखौफ अपराधियों की दहशत व्याप्त है। ऐसे में दिल्ली के उपराज्यपाल जिनके नियंत्रण में दिल्ली पुलिस है वे केंद्र सरकार की सही नुमाइंदगी करने में नाकाम साबित हुए हैं।

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