Umakant Lakhera

दिल्ली का चुनावी दंगल: क्या CAG से शुरू और CAG पर खत्म हो जाएगा?


दिल्ली का चुनावी दंगल: क्या CAG से शुरू और CAG पर खत्म हो जाएगा?
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कैग रिपोर्ट पेश ना किए जाने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है।

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार के बाद उठा पर्दा। केजरीवाल और आप सरकार के पास जवाब नहीं कि राजकोष को 2026 करोड़ के नुकसान की क्षति के लिए कौन है जवाबदेह!

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनावों की कहानी बस इतनी सी है कि भाजपा दिल्ली प्रदेश में 25 साल से सत्ता से बाहर है और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में मात्र बारह बरस पूर्व बनी आम आदमी पार्टी के इर्दगिर्द पूरा चुनाव केंद्रित है। इस बार सारी नज़रें इस बात पर गड़ी हैं कि भाजपा की प्रचंड हिंदुत्ववादी राजनीति का मुकाबला करने के लिए केजरीवाल तीसरी बार फिर से अपनी सरकार बनाने की हैट्रिक लगा सकेंगे या नहीं।

केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के सामने पहली बार ऐसी चुनावी लड़ाई चुनौती बन कर खड़ी है। एक ओर उन्हें 10 साल के सत्ता विरोधी माहौल का सामना करना पड़ रहा है तो दूसरी ओर आप के कई लोगों से जनता में नाराज़गी और बेरुखी दोनों दिख रहे हैं। लोगों को इंतज़ार है कि क्या भाजपा को पटखनी देने की उनकी किलेबंदी इस बार भी कितनी कारगर हो पाती है। इसलिए भी कि आम आदमी पार्टी 2015 में प्रचंड मोदी लहर में भाजपा को मात्र तीन सीटों पर समेट दिया था। दूसरी बार 2020 के चुनावों में भाजपा मात्र आठ सीटें ही हासिल कर सकी थी।

इन दिनों जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर है तो भाजपा ने आम आदमी पार्टी ( Aam Aadmi Party) के खिलाफ हमलों को तेज़ करने की खातिर लेखा महानियंत्रक सीएजी (CAG Report) की कथित रिपोर्ट का ऐसा तीर निकाला, जिससे आप की बेचैनी बढ़े। करीब तेरह साल पूर्व इसी तर्ज पर यूपीए सरकार में टूजी स्पेक्ट्रम व कोल ब्लॉक आवंटन पर सीएजी रिपोर्ट और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के बाद अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली में मुख्यमंत्री बने थे। तब कांग्रेस के बाहरी समर्थन से 49 दिन सरकार चलाने के बाद केजरीवाल 67 सीटें जीतकर सत्ता में आए थे। तब से कांग्रेस को लगातार दो बार हुए चुनावों में एक भी सीट नसीब नहीं हुई।

भाजपा और आप के बीच सीएजी की कथित रिर्पोट जिसमें दिल्ली के राजस्व को निरस्त हो चुकी आबकारी नीति (Delhi Excise Policy) के कारण 2026 करोड़ की क्षति पर जुबानी जंग छिड़ी है। 6 जनवरी को भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा और बाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने सीएजी रिपोर्ट का खुलासा कर मामला सनसनीखेज करने की चेष्टा की। जबकि सीएजी (CAG)की ओर से खुद इस तरह की किसी रिपोर्ट के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया और ना ही इस तरह की कोई रिपोर्ट विधानसभा में रखी गई। बिना सोचे समझे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) तक इस लड़ाई में कूद पडे़। दूसरी ओर आप ने भाजपा के आरोप को चुनौती दी है। पार्टी प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने भाजपा के दावे को मनगढंत और आधारहीन बताया है। उनका दावा है कि इस तरह की किसी भी रिपोर्ट को ना तो दिल्ली के मुख्यमंत्री और ना ही उपराज्यपाल ने सत्यापित किया है और ना ही सीएजी ने इसे अपनी वेबसाइट पर डाला है।

आबकारी नीति (Delhi Excise Policy) ऐसा मुद्दा है जिसे भाजपा ने केजरीवाल और उनकी पार्टी के प्रमुख नेताओं के खिलाफ विगत वर्षों में एक अहम राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। इसी के चलते केजरीवाल समेत उनकी पार्टी के कई नेताओं को जेलों में डाला गया। उनके कई और नेताओं और करीबियों को भी रडार पर लिया गया। ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स जैसी केन्द्रीय एजेंसियों की छापेमारी और अंतहीन पूछताछ हुई। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और अंततः केंद्र सरकार के कई दावों को खारिज किया गया।

रोचक यह है कि इस बहाने भाजपा से आप ने अब उल्टे सवाल दाग दिए कि उसे 10 अगस्त 2023 को सार्वजनिक हुई द्वाराका एक्सप्रेस वे पर सीएजी का जवाब देना होगा जो भाजपा के राज में मात्र 7.5 करोड़ की अनुमानित लागत के बजाए 705 करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुआ। इसी क्रम में आयुष्मान भारत योजना में हुए बड़े घपले पर भी आप प्रवक्ताओं ने भाजपा को घेरा।

करीब 12 साल पहले टूजी और कोल ब्लाक आबंटन (Coal Block Scam) में घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट को अन्ना हज़ारे (Anna Hazare) और केजरीवाल की मुहिम ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। लोग मानते हैं कि उसी देशव्यापी मुहिम के कारण मनमोहन सिंह सरकार काफी बदनाम हुई और कांग्रेस कांग्रेस को चुनाव में बुरी तरह पराजित होना पड़ा था। तत्कालीन सीएजी विनोद राय को अपनी उन आधारहीन और काल्पनिक रिपोर्टों के कारण आठ बरसों बाद 2021 में सार्वजनिक क्षमा मांगनी पड़ी थी। यह दीगर बात है कि सचाई पता लगने के बाद भी विनोद राय को मोदी सरकार ने फरवरी 2016 में बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो का चेयरमैन पद पर बिठाकर पुरस्कृत करने में देर नहीं की।

कांग्रेस में कई लोगों को हैरत है कि हाल में जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हुआ तो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने उन्हें देश का सबसे ईमानदार और स्वच्छ छवि का नेता बताया लेकिन उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार को दुष्प्रचार करके बदनाम करके सत्ता से हटाने के मामले में उनकी मृत्यु के बाद भी कोई क्षमा नहीं मांगी।

दस साल पहले तक दिल्ली में शीला दीक्षित की अगुवाई में लगतार तीन चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बना चुकी कांग्रेस को लगातार तीन बार हो चुके विधानसभा चुनावों में ज़ीरो पर आउट कांग्रेस अपना वजूद तलाश रही है। बीते लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के बैनर के नीचे कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन कोई भी सीट हासिल नहीं कर सके। दोनों की इस करारी बड़ी वजह यह भी है कि नीतिगत मामलों में एक दूसरे के खिलाफ खड़ी इन बेमेल पार्टियों द्वारा साथ चुनाव लड़ने पर मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया।

बीते साल हरियाणा और महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Election 2024)) में भाजपा ने एकतरफा जीत झटक ली। इस बार भाजपा ने पूरी ताकत दिल्ली में दस साल से चली आ रही आम आदमी पार्टी की सरकार को सत्ता से हर कीमत पर उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है। लोकसभा चुनावों में लगातार दूसरा मौका है जब भाजपा ने 2014 की मोदी लहर के बाद से 2024 के आम चुनावों तक लगतार तीसरी बार देश की राजधानी दिल्ली की सातों सीटों पर अपनी धमाकेदार जीत दर्ज की।

इसे पहेली कहें या विडंबना कि दिल्ली के मदतदाताओं की केंद्र में सरकार बनाने के लिए मोदी पहली पसंद हैं और दिल्ली में आम आदमी पार्टी। लोग इसकी बड़ी वजह मुफ्त बिजली, पानी, महिलाओं का डीटीसी बसों में मुफ्त सफर, सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदलना और मोहल्ला क्लीनिकों (Mohalla Clinic) में फ्री इलाज और दवाएं इत्यादि को बताते हैं। जो सुविधांए ले रहे हैं वे खुश दिखते हैं। आप सरकार और कार्यकर्ता इन योजनाओं के लाभार्थियों को यह समझाने में भी कामयाब हुए हैं कि भाजपा सत्ता में आई तो उन्हें मुफ्त में मिलने वाली सभी सुविधाएं बंद हो सकती हैं। इस बार आप ने महिलाओं को इक्कीस सौ रुपए प्रति माह देने का शिगूफा छोड़ा है।

आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए चुनाव लड़ती है तो मतदाता केंद्र में सरकार बनाने के उसके दावों पर कतई भरोसा नहीं करते। इसलिए मतदाताओं ने लगातार तीन लोकसभा चुनावों में केद्र में भाजपा और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को अपनी पहली पंसद बनाया। अधिकतर मतदाताओं को दोनों ही पार्टियों की वैचारिक राजनीति में बहुत फर्क नहीं दिखता। हालांकि कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक रहे मुसलिम वोट इसलिए भाजपा को हराने के लिए आम आदमी पार्टी की ओर मुड़ गए क्योकि कांग्रेस लगातार कई चुनावों में टक्कर से बाहर हो गई। इसलिए कि भाजपा की साप्रदायिक हिंदुत्व की राजनीति की काट के लिए केजरीवाल ने नरम हिंदुत्व और कभी मंदिरों में माथा टेकने के इवेंट प्रचार पाकर भाजपा की आक्रामक रणनीति का मुकाबला करने में अच्छी सफलता पाई है।

नई दुनिया उर्दु के संपादक व पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी कहते हैं, “आम आदमी पार्टी को दिल्ली के अल्पसंख्यक मुसलमानों का वोट इसलिए ज़्यादा पड़ता है क्योंकि सेक्युलर वजूद बनाते हुए व धार्मिक स्वतंत्रता, नरम हिंदुत्व या मिले जुले सेक्युलरिज्म से लोगों को ख़ास परहेज नहीं है। लोग इसे गलत भी नहीं मानते क्योंकि सामाजिक आर्थिक सवालों के साथ धर्म व जातियों की पहचान भारतीय समाज में कभी मिटाई नहीं जा सकती।“

कई दूसरे लोग मानते हैं कि आम जनता खास तौर पर दिल्ली की सैकड़ों झुग्गी-झोपड़पट्टियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले निम्न मध्यमवर्ग के लोगों को मूलभूत सुविधाएं जुटाने की दिशा में पहले के मुकाबले कुछ काम हुए हैं। यही वजह है कि 10 वर्षों में कई विवादों और अंतर्विरोधों के बाद भी लोग भाजपा के बजाय दिल्ली में सरकार बनाने के लिए आप ही बेहतर विकल्प मानते हैं।

बहरहाल आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और भाजपा (BJP) के बीच ज़्यादातर सीटों पर कांटे का मुकाबला है। कांग्रेस तय कर चुकी है कि वह आम आदमी पार्टी से किसी भी राज्य में कोई तालमेल नहीं करेगी इसलिए करीब दर्जन भर सीटों पर कांग्रेस की मौजूदगी कांटे के मुकाबले को और रोचक बना रही है। कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा अपने लिए फायदा देख रही है। लेकिन असली तस्वीर सामने आने में अभी वक्त बचा है। दिल्ली (Delhi Assembly Election 2025) की सभी 70 सीटों पर मतदान तीन फरवरी को होगा और नतीजे 5 फरवरी को आएंगे। नई सरकार 12 फरवरी से पहले गठित होने के आसार हैं।

दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथित घपले और इस वजह से सरकारी राजस्व को हुए 2026 करोड़ रुपए के घाटे का मामला बीच चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी के गले की नई फांस बन चुका है। सोमवार को दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार के बाद इस बात से पूरी तरह पर्दा उठ गया कि आगामी चुनावों में बदनामी के डर से केजरीवाल और सितंबर में बनी नई मुख्यमंत्री आतिशी कई महीनों से सीएजी रिपोर्ट जानबूझकर दबाए हुए थे।

हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ा करने के बाद विपक्षी भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस के हाथ आप सरकार पर हमले का एक बड़ा हथियार हाथ लग गया है। कांग्रेस ने कहा कि कोविड 19 के दौरान जब लोग इलाज के बिना मर रहे थे तब दिल्ली सरकार ने एक के बदले एक फ्री शराब की बोतलें बेचकर राजस्व को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया।

सीएजी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि उसने अपनी विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली सरकार के मुखिया यानी उपराज्यपाल को काफी पहले भेज दी थी। ज्ञात रहे कि सीएजी केंद्र सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्था है तथा वह केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं, परियोजनाओं और टेंडर प्रक्रियाओं में अनियमितताओं की जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपती है। सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं की सूचनाओं के बाद सीएजी ने इस मामले के सभी पहलुओं की विस्तृत पड़ताल की थी। सरकार का यह संवैधानिक दायित्व होता है कि वह जनहित में इस रिपोर्ट को संसद या विधानसभा में पेश करे।

बहरहाल इस बात पर विवाद बना हुआ है कि सीएजी की रिपोर्ट कहां से लीक हुई, लेकिन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि लीक हुई इस रिपोर्ट में जो भी रहस्य उजागर किये गये हैं, वे सभी अंश तथ्यों पर आधारित हैं।

इस बीच दिल्ली विधानसभा के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि नियमानुसार इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करना चाहिए था लेकिन आप सरकार ने राजनीतिक कारणों से इसे पेश करने के बजाय दिल्ली विधानसभा चुनाव कार्यक्रम घोषित होने का इंतजार किया। जबकि कई महीनों से आप सरकार के पास धूल फांक रही इस रिपोर्ट को पेश करने के लिए पर्याप्त समय था। दिल्ली हाई कोर्ट के जज सचिन दत्ता की अदालत में सोमवार को हुई सुनवाई विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता की याचिका पर की गई। भाजपा के छह और विधायकों की ओर से पेश इस याचिका पर सुनवाई हुई थी। दिल्ली सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों को इस बात के लिए भी कोर्ट की नाराजगी झेलनी पड़ी कि जिस तरह से आप सरकार ने इस मामले में कदम पीछे खींचे, उससे सरकार की मंशा पर संदेह होता है।

इसमें नियम यह है कि सदन में पेश करने के पहले इस तरह की कोई भी रिपोर्ट सभी विधायकों के सुपुर्द करनी आवश्यक है।

हालांकि सितंबर 2024 में जेल से छूटने के बाद आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था और आतिशी ने 21 सितंबर 2024 को मुख्यमंत्री का पदभार संभाल लिया था। उपराज्यपाल सक्सेना ने ढाई महीने की प्रतीक्षा के बाद आतिशी को 17 दिसंबर को पत्र लिखकर उनसे विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग की थी। साथ ही यह भी आरोप लगाया था कि दोषपूर्ण आबकारी नीति के कारण आप सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए जानबूझकर इसे पेश नहीं करना चाहती।

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