Saurabh Kumar Gupta

वैकल्पिक राजनीति का हश्र, AAP की हार और उसका संदेश


वैकल्पिक राजनीति का हश्र, AAP की हार और उसका संदेश
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आम आदमी पार्टी हैट्रिक लगाने में चूक गई। 27 साल बाद बीजेपी का कमल खुलकर खिला है। ऐसे में आखिर वो कौन सी वजह रही कि 67, 62 सीट अपनी झोली में डालने वाली आप चुनाव हार गई।

Delhi Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) की हार केवल एक चुनावी घटना नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में वैकल्पिक राजनीति की धारणा पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी इस पार्टी ने पारंपरिक दलों के खिलाफ एक नई राजनीति की नींव रखी थी। लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद यह जरूरी हो जाता है कि समझा जाए, यह हार क्यों हुई और इसका भारत की राजनीतिक दिशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

हार के पीछे कई वजह
AAP की पराजय के पीछे कई कारण रहे। भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। जिस पार्टी ने खुद को ‘ईमानदार राजनीति’ का प्रतीक बताया था, वह शराब नीति घोटाले (Delhi Excise Scam) और सरकारी धन के कथित दुरुपयोग में फंस गई। इसके अलावा, केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई ने पार्टी की स्थिति को और कमजोर किया। प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की छानबीन के चलते मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) समेत कई बड़े नेताओं को कानूनी संकटों का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी की कार्यप्रणाली बाधित हुई और जनता में पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए।

बीजेपी की प्रभावी रणनीति

इस हार का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण भाजपा की प्रभावी चुनावी रणनीति और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लोकप्रियता थी। 2024 के आम चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत के बाद, दिल्ली में पार्टी की पकड़ और मजबूत हो गई। मोदी सरकार की ‘डबल इंजन’ नीति, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार होने के फायदे गिनाए गए, ने मतदाताओं को प्रभावित किया। इसके अलावा, AAP की मुफ्त योजनाओं की राजनीति भी अब पहले जैसी प्रभावशाली नहीं रही। आर्थिक चुनौतियों और बजट की सीमाओं के कारण दिल्ली सरकार के लोकलुभावन वादों का असर कम हो गया।

वोटर्स का ध्रुवीकरण

AAP की हार का एक अन्य कारण दिल्ली की राजनीतिक बिसात पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) की हार में कांग्रेस की भूमिका अप्रत्यक्ष लेकिन प्रभावी रही। भले ही कांग्रेस सीधे सत्ता के लिए लड़ाई में शामिल नहीं थी लेकिन उसकी रणनीति ने भाजपा को मजबूत किया और अंततः AAP को नुकसान पहुंचाया।

कांग्रेस की रणनीति

पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस का दिल्ली में प्रभाव लगातार घटता गया था। 2013 में AAP के उदय के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक धीरे-धीरे खत्म होने लगा। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस लगभग अप्रासंगिक हो गई थी। लेकिन 2025 के चुनाव में कांग्रेस ने एक नई रणनीति अपनाई—न तो आक्रामक प्रचार किया और न ही पूरी ताकत से चुनाव लड़ा। इस निष्क्रियता का सीधा लाभ भाजपा को मिला।

कांग्रेस के इस रवैये से कई असर पड़े। पहला, उसका पारंपरिक मुस्लिम और दलित वोट बैंक, जो कभी AAP की तरफ शिफ्ट हुआ था, अब बंट गया। कांग्रेस ने भले ही सीटें न जीती हों, लेकिन उसने AAP के संभावित वोटों में सेंध लगा दी। इससे कई सीटों पर वोटों का विभाजन हुआ और भाजपा को फायदा हुआ। कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता भी भाजपा के पक्ष में मौन समर्थन देते नजर आए, क्योंकि वे AAP को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानते थे।

इसके अलावा, 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने दिल्ली में संगठन को मजबूत करने की कोशिश की, जिससे वह AAP के लिए एक चुनौती बन गई। हालांकि वह पूरी तरह वापसी नहीं कर पाई, लेकिन उसने AAP के वोट बैंक को प्रभावित कर दिया। दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस के ध्रुवीकरण ने AAP को राजनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया। कांग्रेस ने चुनावी प्रचार में खुद को ज्यादा आक्रामक नहीं दिखाया, जिससे भाजपा को AAP के खिलाफ एकतरफा लड़ाई का फायदा मिला।

इस तरह, कांग्रेस की रणनीतिक निष्क्रियता और उसके वोट बैंक में हुई हलचल ने AAP की हार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह परिदृश्य दिखाता है कि राजनीति में हार और जीत केवल दो बड़े दलों के बीच सीधी लड़ाई से तय नहीं होती बल्कि तीसरे खिलाड़ी की भूमिका भी चुनावी नतीजे बदल सकती है।

बिजली, सड़क पानी बन गया मुद्दा

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) की हार के पीछे कई कारक जिम्मेदार रहे लेकिन बिजली, पानी और सड़क जैसे, बुनियादी मुद्दों पर जनता की बदलती राय भी इसमें अहम रही। ये वे ही मुद्दे थे, जिन पर AAP ने अपनी राजनीति की बुनियाद रखी थी, लेकिन 2025 तक आते-आते इन योजनाओं का असर कमजोर पड़ गया।

AAP की सरकार ने मुफ्त बिजली और पानी को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनाया था, लेकिन 2025 के चुनाव से पहले ही इस मॉडल की सीमाएं उजागर होने लगीं। दिल्ली में बिजली सब्सिडी को लेकर लगातार विवाद रहे। सरकार के पास पर्याप्त राजस्व की कमी होने के कारण, मुफ्त बिजली की सुविधा पहले जैसी प्रभावी नहीं रही। कई उपभोक्ताओं को शिकायत थी कि बिलों में अनियमितता बढ़ गई है और सब्सिडी योजना के तहत आने वाले उपभोक्ताओं की संख्या भी सीमित कर दी गई। विपक्षी दलों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और जनता में यह धारणा बनी कि AAP सरकार अब अपने ही वादों को निभाने में सक्षम नहीं है।

खराब पानी और जलसंकट

पानी की गुणवत्ता और सप्लाई को लेकर भी असंतोष बढ़ा। दिल्ली के कई इलाकों में जल संकट गहराने लगा, खासकर अनधिकृत कॉलोनियों और बाहरी क्षेत्रों में। AAP सरकार ने पाइपलाइन विस्तार के दावे किए, लेकिन जमीनी हकीकत यह रही कि दिल्ली जल बोर्ड की वित्तीय स्थिति खराब थी, जिससे पानी की आपूर्ति सुचारु नहीं रह पाई। पानी की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठे, जिससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी।

इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी

सड़कों और बुनियादी ढांचे को लेकर AAP ने कई घोषणाएं की थीं लेकिन 2025 के चुनाव से पहले कई परियोजनाएं अधूरी रह गईं। दिल्ली में सड़क सुधार और नए फ्लाईओवर निर्माण की योजनाएं धीमी रहीं, जिससे ट्रैफिक की समस्या बनी रही। बारिश के दौरान जलभराव और टूटी सड़कों की समस्या ने भी सरकार के दावों पर सवाल खड़े कर दिए। विपक्षी दलों ने इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुए प्रचार किया कि AAP सरकार के पास अब नई योजनाओं की कोई ठोस रणनीति नहीं है।

कुल मिलाकर, बिजली, पानी और सड़क जैसे बुनियादी मुद्दों पर AAP सरकार की विफलता ने जनता का विश्वास कमजोर कर दिया। भाजपा ने इन असंतोषों को भुनाया और वादा किया कि डबल इंजन सरकार आने के बाद दिल्ली को बुनियादी सुविधाओं में और सुधार मिलेगा। वहीं, कांग्रेस ने भी AAP को घेरते हुए कहा कि उसकी नीतियां अस्थायी समाधान थीं, जो लंबी अवधि तक नहीं टिक पाईं। इन सब कारणों से मतदाता धीरे-धीरे AAP से दूर होते गए और 2025 के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

क्या वैकल्पिक राजनीति का द एंड?

लेकिन क्या AAP की हार का मतलब यह है कि भारत में वैकल्पिक राजनीति का अंत हो गया? शायद नहीं। यह हार बताती है कि सिर्फ ‘वैकल्पिक’ होने से कोई पार्टी सफल नहीं होती बल्कि उसे लगातार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना पड़ता है। राजनीति में शून्य नहीं होता और संभव है कि भविष्य में कोई नया आंदोलन या दल इस जगह को भरने के लिए उभरे। क्षेत्रीय दलों की भूमिका भी बनी रहेगी, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में चाहे भाजपा और कांग्रेस का दबदबा हो, लेकिन राज्यों में स्थानीय दलों की अहमियत खत्म नहीं हुई है।

क्या है संदेश?
AAP के लिए यह हार आत्ममंथन का अवसर है। अगर पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाना चाहती है, तो उसे अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। भ्रष्टाचार के आरोपों से पारदर्शी ढंग से निपटना, मुफ्त योजनाओं के बजाय विकास की ठोस नीतियां लाना और राष्ट्रीय स्तर पर खुद को पुनर्गठित करना उसके लिए अनिवार्य होगा। केवल दिल्ली तक सीमित रहने से पार्टी का भविष्य अस्थिर ही रहेगा।

इस चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा संदेश यही है कि भारतीय राजनीति में कोई भी दल स्थायी नहीं होता। सत्ता में बने रहने के लिए लगातार खुद को जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप ढालना पड़ता है। आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) को जनता ने एक मौका दिया था लेकिन शायद पार्टी उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि वह हर पार्टी को सत्ता में आने का अवसर देता है लेकिन जो भी जनता की अपेक्षाओं से भटकेगा, उसे सत्ता से बाहर होने में देर नहीं लगेगी।

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