TRUMP 2.0: शांतिदूत बनने की चाह, लेकिन जंग के हितैषी भी...
Donald Trump किसी भी कीमत पर संयुक्त राज्य अमेरिका की सीमाओं का विस्तार करना और अमेरिका को फिर से महान बनाना' चाहते हैं.
Donald trump 2.0: दूसरी बार संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे तौर पर दुनिया को सचेत कर दिया है. मानो अमेरिका की समस्याओं के लिए बाकी दुनिया ही जिम्मेदार है. वास्तव में ट्रंप ने अमेरिका को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में वर्णित करके जो “पतन” की ओर अग्रसर है, अपने देश के भीतर आंतरिक रूप से सामना की जाने वाली कई बुराइयों पर अन्य सभी देशों के खिलाफ़ पलटवार करने का प्रयास किया है.
जैसा कि उनकी आदत है, अपने 2.0 अवतार में राष्ट्रपति ने अपनी बात को साबित करने के लिए पक्षपातपूर्ण जानकारी का सहारा लेने में संकोच नहीं किया. क्योंकि, ट्रंप के उद्घाटन भाषण से संकेत मिलता है कि वे बाकी दुनिया से नाराज़ हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि अमेरिका की उदारता से विशेष रूप से व्यापार में, उन्हें लाभ हो रहा है. जबकि उनका देश गरीबों और वंचितों को खिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है. “विसंगति” को ठीक करने के लिए, वे विशेष रूप से चीन, ब्राजील और भारत जैसे कुछ चुनिंदा देशों पर भारी आयात शुल्क लगाने की धमकी दे रहे हैं.
कौन जिम्मेदार है?
लेकिन, ऐसी स्थिति कैसे पैदा हुई कि अमेरिका को अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ा? पिछले तीन दशकों में पूंजीवादी विकास के हुक्म से प्रेरित अमेरिकी उद्योगपतियों ने अपनी मर्जी से यह पता लगा लिया कि अपने देश के मुकाबले विदेशों में माल बनाना सस्ता और इसलिए लाभदायक है. इसलिए, उन्होंने अमेरिकी श्रमिकों के हितों की अनदेखी करते हुए उत्पादन को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया. चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया विनिर्माण में बहुत बड़े लाभार्थी थे. जबकि भारत और फिलीपींस, अन्य देशों के अलावा, सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग में कहीं अधिक लागत प्रभावी साबित हुए. इस प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी के तत्कालीन उभरते युग में दुनिया का बैक ऑफिस बन गए. अगर आज चीन अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने के लिए काफी बड़ा हो गया है तो इसका श्रेय लगभग पूरी तरह से अमेरिकी पूंजीवाद को जाता है. स्वाभाविक रूप से, अमेरिकी विनिर्माण को नुकसान हुआ और सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में इसके नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी कम हुए. मुद्दा यह है कि अन्य देशों ने काम नहीं छीना और अमेरिकियों को बेरोजगार नहीं बनाया. यह अमेरिकी पूंजीवाद का निर्माण था. जो अमेरिकी राज्य का आधार है.
अमेरिकी हस्तक्षेप
आज, यह मानते हुए कि अमेरिका गिरावट पर है. जैसा कि ट्रंप कहते हैं, बाकी दुनिया भी गिरावट पर है. अमेरिका की तुलना में यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं, जिनमें जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, अभूतपूर्व अनुपात के संकटों का सामना करते हुए बदतर स्थिति में हैं. अगर आज दुनिया में संघर्ष हैं तो वे या तो अमेरिकी उकसावे या हस्तक्षेप का सीधा परिणाम हैं. उदाहरण के लिए यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध नहीं हुआ होता, अगर कीव के नाटो में शामिल होने के सवाल पर अमेरिका ने उकसाया न होता. जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन को अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन की सदस्यता दी जाएगी तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप युद्ध अपने तीसरे वर्ष के करीब पहुंच गया.
युद्ध दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए दुर्बल करने वाला साबित हुआ है और यूरोप को आर्थिक रूप से सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. इसके विपरीत अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ मिलकर यूक्रेन को अरबों डॉलर की धनराशि देकर युद्ध को बढ़ावा दे रहा है. कुछ लोगों का अनुमान है कि यह धनराशि 175 अरब डॉलर है.
गाजा में नरसंहार
एक बार फिर गाजा में, जिसने 15 महीनों तक लगातार असहाय फिलिस्तीनियों पर इजरायली खून-खराबे को देखा है, अमेरिका सीधे तौर पर इसमें शामिल है- इजरायल को उच्च-स्तरीय हथियार और धन मुहैया कराकर, जिसे कई लोग "नरसंहार" कह रहे हैं. इजरायली हवाई हमलों में 46,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं, गाजा खंडहर में तब्दील हो चुका है और व्यावहारिक रूप से रहने लायक नहीं है. जबकि लगभग दो मिलियन की पूरी आबादी अपने घरों से विस्थापित हो गई है और तंबुओं में रह रही है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने इजरायल के हमले को समाप्त करने के लिए कम से कम चार प्रस्तावों पर वीटो लगा दिया है. 19 जनवरी से एक अस्थायी युद्धविराम लागू है.
शांति निर्माता के शब्द नहीं
इन सबके बीच ट्रंप ने घोषणा की है कि वह एक "शांति निर्माता" के रूप में याद किए जाना चाहेंगे. लेकिन उनके कार्य उनके शब्दों के विपरीत हैं. उन्होंने एकतरफा घोषणा की कि अमेरिका मेक्सिको से पनामा नहर का नियंत्रण वापस ले लेगा और "मेक्सिको की खाड़ी" का नाम बदलकर "अमेरिका की खाड़ी" करने का फैसला किया. ये शांतिदूत के संकेत नहीं हैं. ये युद्ध-प्रेमी के संकेत हैं. पहले दिन से ही "शांतिदूत" पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकल गया है, डेनमार्क से ग्रीनलैंड पर कब्ज़ा करना चाहता है और कनाडा को 51वें राज्य के रूप में अमेरिका में समाहित करने की बात करता रहा है. उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ट्रंप को पूरी तरह से उनके शब्दों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. अतीत में, उन्होंने अपने कुछ फैसलों से मुकर गए हैं. जैसे कि चुनिंदा देशों के मुसलमानों को अमेरिका में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाने का उनका प्रचारित इरादा. ट्रंप ने सत्ता संभालने के एक दिन बाद यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करने का वादा किया था. एक दिन बीत चुका है. लेकिन युद्ध के खत्म होने का कोई संकेत नहीं है.
अवैध लोगों को निर्वासित करना
अमेरिका में अवैध प्रवासियों को सामूहिक रूप से उनके मूल देशों में निर्वासित करने की उनकी धमकी, ऑपरेशन के पैमाने को देखते हुए बयानबाजी हो सकती है. उदाहरण के लिए, प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि 2022 तक अमेरिका में 7,25,000 अवैध भारतीय रह रहे हैं- मैक्सिकन और साल्वाडोर के बाद तीसरा सबसे बड़ा समूह. अक्टूबर 2024 में, कई सौ अवैध भारतीय प्रवासियों को "निष्कासन उड़ानों" के माध्यम से भारत वापस भेजा गया, प्रत्येक उड़ान में 100 अवैध व्यक्ति थे.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर में समाप्त हुए अमेरिकी वित्तीय वर्ष 2024 के दौरान 1,000 से अधिक भारतीय नागरिकों को इसी तरह निर्वासित किया गया. यह देखते हुए कि सात लाख से अधिक भारतीय अवैध प्रवासी हैं, उन सभी को घर भेजने के लिए अमेरिका को एक बहुत बड़ा अभियान चलाना होगा. ट्रंप का कहना है कि वह ऐसा करने का इरादा रखते हैं, न केवल भारतीयों के मामले में, बल्कि मैक्सिकन और बाकी लोगों के मामले में भी. उनका प्रशासन अमेरिका के भीतर से अवैध रूप से रह रहे "विदेशियों" को बाहर निकालने के लिए आक्रामक तरीके से तैयारी कर रहा है, उन्होंने अन्य देशों को व्यापार शुल्क और संबंधित नीतियों पर अमेरिकी हुक्म चलाने की धमकी दी है, वे किसी भी कीमत पर संयुक्त राज्य अमेरिका की सीमाओं का विस्तार करना चाहते हैं और "अमेरिका को फिर से महान बनाना" चाहते हैं. स्वयंभू "शांति निर्माता" के दिमाग में शांति के अलावा कुछ भी नहीं है.