
राजनीति में अब दर्द भी रणनीति के हिस्से हैं. लोग पीड़ितों से ज़्यादा पीड़ित होने की अदाकारी में माहिर हैं. सत्ता में रहते हुए उसके दोष गिनवाना अब आत्मालोचना नहीं, अवसरवाद है और चिराग पासवान इसका सबसे ताज़ा उदाहरण.
गया की एक युवती के साथ एंबुलेंस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना पर चिराग पासवान का दुख ज़ाहिर करना ज़रूरी भी था और सुविधाजनक भी. उन्होंने कहा, “मुझे दुख है कि मैं उस सरकार का हिस्सा हूं जहां अपराध बेलगाम हो चुका है.”
लेकिन सवाल यह है कि अगर आपको यह सरकार इतनी ही शर्मनाक लगती है तो आप उसका हिस्सा क्यों हैं? राजनीति में यह दुख अक्सर त्याग नहीं सौदेबाज़ी का संकेत होता है. यह वही चिराग हैं जो कुछ महीने पहले तक नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहने से परहेज़ नहीं करते थे. अब चुनाव करीब है तो उन्हें वही नीतीश कुमार अपराध के संरक्षक नज़र आने लगे.
राजनीति में स्मृति क्षीण होती है लेकिन वक्त की गंध तेज़. यह कथन किसी निर्दोष नागरिक की व्यथा नहीं, एक चतुर राजनेता का सिग्नल है दिल्ली तक और पटना के गलियारों तक. संदेश साफ़ है कि मैं अभी साथ हूं लेकिन कभी भी विकल्प खोल सकता हूं. मैं गठबंधन में हूं लेकिन दिल से नहीं.
चिराग ने यह भी कहा कि अगर ये अपराध सरकार को बदनाम करने की साज़िश हैं तब भी सरकार ज़िम्मेदार है. यह बयान अपने आप में अजीब इसलिए भी है क्योंकि अगर आप मानते हैं कि सरकार के खिलाफ साज़िश हो रही है तो आप उसका बचाव कर रहे हैं. लेकिन अगर आप मानते हैं कि अपराध हो रहे हैं तो आप उसके हिस्सेदार हैं.
यह दोमुंही भाषा उस नए किस्म की राजनीति की मिसाल है जिसमें नेता शोक भी व्यक्त करता है और सत्ता से चिपका भी रहता है. वह अपराध को कोसता है लेकिन कुर्सी को नहीं छोड़ता. उसका दुख सच्चा हो सकता है लेकिन उसका लाभांश भी तय है.
बिहार की राजनीति में ये कोई नया दृश्य नहीं. सत्ता से नाराज़गी जताना और उसी सत्ता में टिके रहना एक कला बन चुकी है. इस कला में चिराग अब पारंगत होते जा रहे हैं. दुख का इस्तेमाल अब विपक्ष की भाषा नहीं, सत्ता में हिस्सेदारी का तोल-मोल बन गया है.
गया की घटना पर दुःख जताना ज़रूरी है लेकिन उसे राजनीतिक मुद्रा में बदल देना, उस युवती के साथ हुआ अन्याय नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के साथ छल है. यह वही बिहार है जहां महिलाओं को शक्ति का प्रतीक बताया गया और अब वे भर्ती की कतार से सीधे अस्पताल की एंबुलेंस तक अपमानित की जा रही हैं. चिराग का बयान पीड़ा नहीं, पैंतरा है. वह राजनीतिक रुदन है जो आंखों में आंसू के साथ जीभ पर रणनीति रखता है.