
भारत‑अफगानिस्तान संबंधों में यह बदलाव रणनीतिक रुप से समय की मांग हो सकता है, लेकिन इसके साथ यह प्रश्न भी उठता है कि क्या भारत ने अपने आदर्शों को पीछे छोड़ दिया है? भविष्य में अगर कूटनीति पूरी तरह ट्रांज़ैक्शनल हो जाए तो “सहानुभूति” जैसा मूल्य खतम हो सकता है।
हाल के दिनों में अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा पर मीडिया में आई कूटनीतिक समीक्षाएं इस बात का संकेत हैं कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को नए आयाम देना शुरू कर दिया है। लेकिन इस रणनीतिक बदलाव ने देश की पारंपरिक विदेश नीति की भावना यानी “संकटग्रस्त देशी जनता के साथ एकजुटता” के साथ टकराव भी खड़ा कर दिया है।
व्यावहारिकता बनाम आदर्शवाद
मुत्ताकी की यात्रा का विश्लेषण करने वाले कूटनीतिक लेखक और एक सेवानिवृत्त भारतीय विदेश सेवा अधिकारी दोनों ने यह जताया कि भारत की इस नई कूटनीति में आदर्शों का क्षरण दिखाई देता है। इस दौरान सुनने में आया कि भारत अब दूसरे देशों की पीड़ा के प्रति सहानुभूति की नींव पर चलने की बजाय लेन‑देने वाले (ट्रांज़ैक्शनल) संबंधों की दिशा में आगे बढ़ रहा है। लिखित लेख और टीवी पर दिखाई गई तीखी टिप्पणियां यही दर्शाती हैं कि “मे‑फर्स्ट” नीति के तहत राष्ट्रवादी भावनाएं बढ़ती हैं और कूटनीति अधिक स्वार्थपरक ढंग से आकार ले रही है।
आलोचना के केंद्र में तालिबान‑भारत संपर्क
भारत‑तालिबान संवाद पर उठने वाली आपत्तियों का प्रमुख कारण यह रहा कि जिस क्रूर और महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के दमन के लिए जाना गया है, उस शासन से भारत इतनी सक्रियता से जुड़ रहा है— जबकि पहले भारत ने लोकतंत्र व मानवाधिकारों को प्राथमिकता दी थी। उदाहरण के लिए मुत्ताकी की मीडिया बैठक में महिला पत्रकारों को प्रवेश न मिलने की घटना ने भारत की “समान अवसर” वाली छवि पर सवाल खड़े कर दिए। तालिबान शासन की महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति रवैये को देखते हुए, ऐक‑मानुषिक शासन के साथ क़रीबी संवाद को कई लोगों ने मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत माना।
पाकिस्तान को संतुलित करने की रणनीति
विश्लेषकों के अनुसार, भारत इस कूटनीतिक बदलाव के माध्यम से मूलतः निम्नलिखित उद्देश्यों को साध रहा है:-
* पाकिस्तान‑अफगानिस्तान की खाई में फूट का लाभ उठाना।
* अफगानिस्तान में भारत के पुराने विकास निवेश और कारोबारी अवसरों को संरक्षित करना।
* चीन‑पाकिस्तान रणनीतिक गठजोड़ का मुकाबला करना और अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को मजबूत करना।
उदाहरणस्वरूप: भारत ने अफगानिस्तान के लिए विशेष क़रार किया जिसमें 160 ट्रक ड्राई फ्रूट्स आदि भेजे गए; साथ ही भारत ने काबुल में अपनी तकनीकी मिशन को पूर्ण दूतावास में अपग्रेड करने की योजना बनाई है।
सहज परिणाम और चिंताएं
हालांकि, इस रणनीति में स्पष्ट लाभ हैं, लेकिन इसके साथ कई गंभीर चिंताएं भी सामने आई हैं।
* मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की कथित उपेक्षा।
* भारत की वैश्विक छवि पर प्रभाव – क्या भारत अब सिर्फ “हित आधारित” रणनीति निभा रहा है?
* जनता में “सहानुभूति कम, लेन‑देने वाला संबंध ज़्यादा” का भाव बनने का डर।
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