Basmati GI Tag: बासमती जीआई टैग के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। वहीं घरेलू स्तर पर मध्य प्रदेश का विरोध झेलना पड़ रहा है।
Basmati GI Tag: बासमती के ज्योग्राफिक इंडिकेशन (GI) टैग के लिए मध्य प्रदेश को शामिल करने की मुहिम थम थम कर जोर मारने लगती है। मध्य प्रदेश की इस हरकत के विरोध में खुद भारत सरकार खड़ी है। जबकि इसके लिए कई मर्तबा जांच परख और जहां तहां के दस्तावेज खंगाले जा चुके हैं। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार अपने यहां बासमती खेती को जीआई टैग दिलाने को लेकर जबर्दस्त पैरवी कर रही है। मध्य प्रदेश से राजनीतिक ताल्लुक रखने वाले श्री नरेंद्र सिंह तोमर पहले और अब शिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गज राजनीतिक केंद्रीय कृषि मंत्री के पद पर आसीन है, फिर भी मामला बन नहीं पा रहा है।
भारत सरकार की मुश्किल दोतरफा
भारत सरकार की मुश्किलें भी दोतरफा है। वैश्विक बाजार में बासमती की पैठ को मजबूत बनाने की भारत की कोशिश को पाकिस्तान जैसा देश लगातार अड़ंगेबाजी कर रहा है। पाकिस्तान ने अपना यहां बासमती की खेती दायरा बढ़ा हुआ बताकर उसे जीआई टैग दिलाना चाहता है। उसे रोकने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है। जबकि घरेलू स्तर पर उसे मध्य प्रदेश का विरोध झेलना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के चक्कर में भारत की वैश्विक लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। मध्य प्रदेश सरकार कानूनी लड़ाई के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच कर एक बार फिर मद्रास हाईकोर्ट को विचार के लिए लौटा दिया गया है।जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिल जाने से असली बासमती चावल होने का प्रमाण मिल जाएगा।
पाकिस्तान ने ठोंका है दावा
पाकिस्तान ने वैश्विक स्तर पर बासमती पर दावा ठोंकते हुए अपना दायरा 14 जिलों से बढ़ाकर 44 कर लिया है। भारत इसका विरोध कर रहा है। बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। पाकिस्तान ने 2022 में यूरोपीय यूनियन (ईयू) में बासमती के जीआई के लिए आवेदन किया था। तब पाकिस्तान के आवेदन पर आपत्ति जताते हुए भारत ने इसे रद्द करने की मांग रखी।
पाकिस्तान ने अपने आवेदन में 44 जिलों में बासमती उगाने का दावा किया है। हैरानी इस बात की है कि उसने इस सूची में बलूचिस्तान जैसे क्षेत्र को भी शामिल कर लिया है। जहां धान की खेती करना ही फिलहाल संभव नहीं है। भला ऐसी जगहों पर बासमती की खेती कैसे हो सकती है? भारत को असहज करने के लिए पाकिस्तान ने जिलों की सूची में पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिलों को शामिल कर लिया है।
पाकिस्तान के दावे पर भारत को आपत्ति
पाकिस्तान के आवेदन पर भारत आधिकारिक रूप से अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है। उसमें भारत में बासमती उत्पादन के पारंपरिक क्षेत्र की बात भी कही गई है। इस मामले में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ जो रुख अपनाया गया है उसके चलते मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादन क्षेत्र में शामिल करने का कोई तर्क नहीं रह जाता है। अगर अब भारत बासमती क्षेत्र में मध्य प्रदेश को शामिल करता है तो इससे पाकिस्तान के खिलाफ दलील कमजोर होगी। भौगोलिक संकेत (जीआई) की अवधारणा के हिसाब से भी मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक क्षेत्र घोषित करने का कोई पुख्ता आधार नहीं है।
वर्ष 2008 में बासमती धान के जीआई के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान की एक संयुक्त बैठक हुई जिसके बाद एक अध्ययन दल का गठन किया गया था। इसमें दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी शामिल थे। अध्ययन दल ने तय किया गया था कि बासमती के लिए पाकिस्तान के 14 जिलों को उत्पादन क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा। जबकि भारत के सात राज्यों पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर को बासमती उत्पादक क्षेत्र माना जाएगा। बैठक में यह भी तय किया गया था कि दोनों देश संयुक्त रूप से बासमती के जीआई टैग के लिए आवेदन करेंगे। लेकिन बीत कुछ वर्षों के दौरान दोनों देशों के बीच परस्पर राजनयिक संबंध बिगड़ गए और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इतना ही नहीं, भारत को चिढ़ाने के लिए उसने पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिलों को भी जोड़ दिया। इस तरह जिलों की संख्या 44 के बजाए 48 हो गई। पाकिस्तान में जीआई टैग के लिए आवेदन को पब्लिक करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसी वजह से भारत को पाकिस्तान के इस हरकत की जानकारी नहीं मिल पाई। लेकिन ईयू में आवेदन के बाद जब पाकिस्तान के आवेदन को आपत्तियों के लिए सार्वजनिक किया गया तो भारत को बासमती पर पाकिस्तान की चाल का पता लगा।
एक बार फिर कोशिश
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री बनने के बाद मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग दिलाने की कोशिशें जोर पकड़ने लगी है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश सरकार के आग्रह पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) को इस मुद्दे पर अपनी राय देने के लिए कहा था। कृषि मंत्रालय में इस मुद्दे पर दो बार बैठकें हो चुकी हैं। मध्य प्रदेश को बासमती क्षेत्र में शामिल करने का प्रयास कर रहा संगठन और राज्य सरकार इस मुद्दे पर बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) और मद्रास हाई कोर्ट में सफलता नहीं मिली थी।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर के समय भी मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक क्षेत्र में शामिल करने की कोशिश की गई थी, लेकिन बात नहीं बनी। मौजूदा सरकार में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मध्य प्रदेश से हैं। यह मामला उनके पास भी पहुंचा और करीब छह माह पहले उन्होंने इसे आईसीएआर के माध्यम से आईएआरआई के पास भेज दिया था।
भारत में जहां बासमती चावल के भौगोलिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश को शामिल करने की कोशिशें जारी हैं वहीं, दूसरी तरफ यूरोपीय यूनियन में बासमती के ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) मामले में पाकिस्तान के आवेदन पर भारत ने आपत्ति दर्ज करते हुए भारत के उन्हीं सात राज्यों को उत्पादन क्षेत्र बताया है जो जीआई में शामिल हैं। आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि भारत द्वारा पाकिस्तान में नये क्षेत्रों को शामिल करने के पुरजोर विरोध के बाद देश में नये क्षेत्र शामिल करना लगभग असंभव है।
कोर्ट में भारत के साथ पाकिस्तान भी कर रहा विरोध
जब मध्य प्रदेश का मामला बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड में पहुंचा तो मध्य प्रदेश की ओर से कई पैरोकार थे। लेकिन भारत सरकार इसके विरोध में थी और उसके साथ ही पाकिस्तान भी इसमें पक्षकार था। आईपीएबी में प्रतिकूल फैसले के बाद मध्य प्रदेश की ओर से मद्रास हाई कोर्ट में मामला दायर किया लेकिन वहां भी सफलता नहीं मिली। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा आया। सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर भी बहस हुई कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पूरे राज्य में बासमती पैदा नहीं होता है लेकिन बासमती उत्पादक क्षेत्र के तौर पर पूरे राज्यों को चिन्हित किया गया है। इस मुद्दे पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस मद्रास हाई कोर्ट भेज दिया और अभी मामला उसी स्तर पर है।