Surendra Prasad Singh

भारत के 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य की गंभीर चुनौतियां


भारत के 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य की गंभीर चुनौतियां
x
वैश्विक बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों को अपनी उपज को पांव जमाने के लिए गुणवत्ता पर जोर देना होगा

नीतिगत संशोधन और उन पर तत्काल क्रियान्वयन की जरूरत ह। किसान संगठनों के विरोध के चलते सुधारों से सरकार पीछे हट चुकी है। मांग आधारित खेती और बाजार का पूरा समर्थन चाहिए। वर्ष 2030 तक कृषि निर्यात को दोगुना करने की तैयारियां अधूरी हैं।

वैश्विक निर्यात बाजार से जुड़ना और उसमें आगे बढ़ना न एक दिन का काम है और न ही बहुत आसान है। इसके लिए सतत प्रयास की जरूरत है, जिसमें सरकार को खेत से लेकर उसकी नीतिगत तैयारियां आवश्यक होती हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश का कृषि निर्यात लक्ष्य 100 बिलियन (अरब) डॉलर निर्धारित किया है जो फिलहाल 50 बिलियन डॉलर तक सीमित है।

कृषि उत्पादों के इस निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने में पसीने छूट सकते हैं। नीतिगत संशोधनों और उस पर तत्काल प्रभाव से अमल करना जरूरी है, तब कहीं उस रास्ते पर जा सकते हैं। कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के निर्माण और मांग आधारित खेती के साथ घरेलू व वैश्विक बाजार का समर्थन चाहिए। वैश्विक स्तर पर भारतीय उत्पादों की मांग को चिन्हित करना और उसके अनुरूप खेती का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा। जबकि देश में फिलहाल नीति नियामकों, उद्योग क्षेत्र, विदेश व्यापार और कृषि क्षेत्र के बीच समन्वय का अभाव है जिससे निर्यात के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने लेकर संदेश पैदा होता है।

वैश्विक बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों को अपनी उपज को पांव जमाने के लिए गुणवत्ता पर जोर देना होगा। वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनने के लिए घरेलू कृषि को आधुनिक होने के साथ उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करना होगा। भारत ने कृषि पैदावार में जिस गति से वृद्धि हुई है, उससे अधिक उपज की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। कृषि उत्पादकता के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कंपीटीटिव होना जरूरी है। कृषि निर्यात को दोगुना करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी, जिसकी तैयारियां अधूरी हैं। जहां कृषि उत्पादों के निर्यात की मंशा है वहीं इसके विपरीत भारत सेब, काजू, बादाम, अखरोट और कई अन्य तरह की सब्जियां और फल आयात करता है। कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए घरेलू उत्पादकता बढ़ाकर पैदावार बढ़ानी होगी। इसके अलावा नीतिगत स्तर पर निर्यात से जुड़ी नीतियों में स्थायित्व बनाए रखना अत्यावश्यक है।

कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिए सभी स्टैक होल्डर्स को एक वैल्यू चेन के रूप में संगठित होना होगा। लेकिन इसकी राह की चुनौतियां बहुत गंभीर हैं। उत्पादन बढ़ाने, गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने, मांग आधारित उत्पादों को तैयार करना और बाजार में प्रतिस्पर्धी होना आवश्यक है। इसके लिए सबसे पहले किसानों को प्रशिक्षित करना होगा ताकि वे निर्यात की मांग और गुणवत्ता के अनुरूप उत्पादन करने में सक्षम हो सकें। देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्र (क्लाइमेटिक जोन) के हिसाब से उत्पादों की खेती और स्थानीय स्तर पर ही एक्सपोर्ट सेंटर स्थापित करने की जरूरत है। फिलहाल देश में ऐसे सेंटरों की संख्या बहुत सीमित है।

भारत में आमतौर पर घरेलू जरूरतों से अधिक (सरप्लस) हुई पैदावार का ही निर्यात किया जाता है। जबकि आयातकों की मांग को गैर जरूरी समझा जाता है। यही वजह है कि देश में कुछ सीमित वस्तुओं की निर्यात हो पाता है। खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर ही जूझती भारत सरकार ने वर्ष 2018 में पहली बार कृषि निर्यात नीति की घोषणा की थी। उससे पहले भारत की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य घरेलू आबादी को पेट भरने तक सीमित था। निर्यात नीति इस उद्देश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है।

कृषि निर्यात नीति में कई विशिष्ट लक्ष्य भी शामिल थे। विश्व कृषि निर्यात में भारत की हिस्सेदारी को दोगुना करते हुए इसे वैश्विक मूल्य श्रृंखला से शीघ्र जोड़ना और भारत के कृषि निर्यात को 2022 तक दोगुना कर 60 अरब डॉलर तक पहुंचाना था। वहीं दूसरी तरफ सरकार ने 2016 में किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसे प्राप्त करने को लेकर संदेह है। निर्यात बास्केट को बढ़ाने अधिक मूल्य वाले एवं मूल्य वर्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना था। इसमें जल्दी नष्ट होने वाले उत्पादों पर विशेष ध्यान दिया जाना था।

वाणिज्य विभाग के डायरेक्टरेट जनरल ऑफ कॉमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCI&S) के आंकड़े दिखाते हैं कि कृषि और संबद्ध उत्पादों का निर्यात 2018-19 के लगभग 37 अरब डॉलर से बढ़कर 2024-25 (अप्रैल से फरवरी) में लगभग 46 अरब डॉलर हो गया। इसमें तकरीबन 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालांकि 2018 के बाद कृषि उत्पादों के निर्यात में यह वृद्धि न केवल कृषि निर्यात नीति में निर्धारित ‘2022 तक निर्यात दोगुना करने’ के लक्ष्य से काफी कम रही, बल्कि यह भारत की कुल निर्यात वृद्धि से भी कम थी। इस दौरान भारत का कुल निर्यात 30 प्रतिशत बढ़ा। भारत के कुल निर्यात में कृषि उत्पादों का हिस्सा 11-12 प्रतिशत के बीच बना रहा। सिर्फ 2020-21 में खाद्य उत्पादों को छोड़कर अन्य सभी उत्पादों के निर्यात में तेज गिरावट आई थी।

वर्ष 2024-25 में निर्यात के लिहाज से छह सबसे बड़े कमोडिटी समूह चावल, समुद्री उत्पाद, मसाले, भैंसे का मांस, चीनी और ऑयल मील (खली) का कृषि और संबद्ध उत्पादों के कुल निर्यात में लगभग 63 प्रतिशत हिस्सा रहा। 2018 में इन उत्पादों की हिस्सेदारी कुल कृषि और संबद्ध उत्पादों के निर्यात में लगभग दो-तिहाई थी। हालांकि इस कालखंड में चावल का निर्यात सबसे तेजी (48 प्रतिशत) की रफ्तार से बढ़ा। गैर-बासमती चावल के निर्यात में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई, जबकि जुलाई 2023 से सितंबर 2024 के बीच सरकार ने घरेलू बाजार को स्थिर करने के उद्देश्य से चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरी तरफ समुद्री उत्पादों का निर्यात 2017-18 से 2024-25 के बीच घटा है। जबकि भैंसे के मांस का निर्यात मामूली 3 प्रतिशत की दर से बढ़ा। उत्पादन चक्र से प्रभावित होने के बावजूद चीनी निर्यात में 37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। ऑयल मील का निर्यात 2017-18 से लगभग 19 प्रतिशत गिर गया।

प्रमुख कृषि उपज के उत्पादन में उतार-चढ़ाव से बड़ी अनिश्चितताएं उत्पन्न हो सकती हैं। चावल के अलावा अधिकांश फसलें पिछले कुछ वर्षों में उत्पादन चक्र से नहीं निपट पाईं, जिससे गंभीर आपूर्ति संकट उत्पन्न हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि बासमती चावल के निर्यात को छोड़कर भारत अन्य कृषि उपज का प्रमुख निर्यातक नहीं बन सका। फल और सब्जियां समेत प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों के निर्यात में निरंतर वृद्धि हुई है। 2017-18 और 2024-25 के बीच प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात लगभग दोगुना हो गया है।

Next Story